Saphala Ekadashi 2024: सफला एकादशी की अद्भुत कथा और महत्व

साल 2024 में पड़ने वाली पहली एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जायेगा। हर एकादशी की तरह ये एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत रखकर श्रीहरि की पूजा करने से दुख-दरिद्रता का निवारण होता है। मान्यता है कि सफला एकादशी व्रत से सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है, इसीलिए इस एकादशी को ‘सफला एकादशी’ कहा गया है।

सफला एकादशी

सफला एकादशी

•बृहस्पतिवार, दिसम्बर 26, 2024 को

• 27 वाँ दिसम्बर को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय 07:09 ए एम से 08:49 ए एम

• पारण तिथि के दिन हार वासर समाप्त होने का समय 07:09 ए एम

• एकादशी तिथि प्रारम्भ दिसम्बर 25, 2024 को 10:29 पी एम बजे

• एकादशी तिथि समाप्त दिसम्बर 27, 2024 को 12:43 ए एम बजे

अन्य शुभ मुहूर्त

• ब्रह्म मुहूर्त- 04:54 ए एम से 05:48 ए एम तक

• प्रातः सन्ध्या- 05:21 ए एम से 06:42 ए एम तक

• अभिजित मुहूर्त- 11:38 ए एम से 12:20 पी एम तक

• विजय मुहूर्त- 01:44 पी एम से 02:27 पी एम तक

• गोधूलि मुहूर्त- 05:13 पी एम से 05:40 पी एम तक

• सायाह सन्ध्या 05:16 पी एम से 06:36 पी एम तक

• अमृत काल- 08:20 ए एम से 10:07 ए एम तक

• निशिता मुहूर्त- 11:32 पी एम से 12:26 ए एम, दिसम्बर 27 तक

एकादशी व्रत का पारण –

• एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना आवश्यक है।

• यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए।

• एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए।

• हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है।

• व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए।

• अगर कोई प्रातकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।

•जब एकादशी व्रत दो दिन होता है, तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए।

•दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं।

• सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए।

सफला एकादशी की कथा

नमस्कार दोस्तों! आज हम आपके लिए एकादशी की पौराणिक कथा लेकर आए हैं। आप पूर्ण प्राप्ति के लिए इस कथा को अंत तक जरूर सुने।

सफला एकादशी

एकादशी का महत्व

एक दिन युधिष्ठिर जी ने श्रीकृष्ण से पूछा कि, “हे प्रभु, आज आप कृपा करके मुझे बताएं कि पोस्ट मास की कृष्णपक्ष में कौन से एकादशी आती है और इसका महत्व क्या है?” श्रीकृष्ण ने कहा, “राजन, आपने बहुत ही सुंदर प्रश्न पूछा है। मैं आपको इसके बारे में विस्तार से बताता हूं।”

सफल एकादशी

पोस्ट मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को सफल एकादशी कहा जाता है। राजा की चार पुत्र थे, जिनमें से एक का नाम लंपक था। लंपक एक अधर्मी व्यक्ति था और हर प्रकार के पाप कर्मों में संलिप्त रहता था। राजा के विपरीत, उसका दुष्ट और कपटी व्यवहार पूरे राज्य को प्रभावित करने लगा।

राज्य से निष्कासन

राजा ने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। लंपक के किसी मित्र या संबंधी ने उसकी सहायता नहीं की और वो राज्य के बाहर एक जंगल में निवास करने लगा। जंगल में उसने निर्दोष जानवरों का शिकार करना शुरू कर दिया और रात में नगर में लूटपाट भी करने लगा।

तपस्या का फल

एक रात लंपक ने पूरी रात जागते हुए बिताई और अगले दिन उसकी स्थिति इतनी खराब थी कि वह किसी भी प्राणी का शिकार नहीं कर सका। उसने आस-पास गिरे फलों को एकत्रित किया और भगवान श्री हरि को याद करते हुए प्रार्थना की। अनजाने में उसने सफल एकादशी का व्रत पूरा किया।

भगवान की कृपा

भगवान इस तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए और अगले दिन एक सफेद तेजस्वी घोड़ा लंपक के पास आया। आकाशवाणी हुई कि, “हे लंपक, यह घोड़ा तुम्हारे लिए आया है। तुमने विधि पूर्वक सफल एकादशी का व्रत पूर्ण किया है, जिससे भगवान तुमसे प्रसन्न हुए हैं।” लंपक ने खुशी-खुशी अपने राज्य में वापसी की और अपने पिताजी से क्षमा याचना की।

धर्म की स्थापना

राजा लंपक ने अपने धर्म का पालन करते हुए राज्य में राज किया और कुछ समय बाद उसका विवाह एक राजकुमारी के साथ हुआ। उसने अपने पिता के पद की जिम्मेदारी को निभाया और अंत में तपस्या करने निकल पड़े।

कथा का सार

भगवान श्रीकृष्ण ने महाराजा युधिष्ठिर से कहा, “हे राजा, जो इस कथा को श्रद्धा से सुनता है, उसे राजश्री यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। उसके सभी कष्ट और पापों का अंत हो जाता है और जीवन के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।”

आपका योगदान

इस एकादशी को अधिक मंगलकारी बनाने का कोई अवसर जाने ना दें। शिव मंदिर की चढ़ावा सेवा का लाभ उठाते हुए श्री हरि के स्वरूप भगवान श्री कृष्ण को घर बैठे चढ़ावा जरूर अर्पित करें।

अंत में

आप मथुरा में बांके बिहारी मंदिर और गोवर्धन के गिरिराज मुखारविंद मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण को चढ़ावे के रूप में माखन भोग, पुष्प आदि चढ़ा सकते हैं।

धन्यवाद, और आप Dharmik Suvichar से जुड़े रहें!

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