Durva Ashtami 2024:हिंदू धर्म में ऐसे कई व्रतों का निष्ठापूर्वक पालन किया जाता है, जिनकी कथा भगवान विष्णु से जुड़ी हुई है। ऐसा ही एक व्रत है, दूर्वा अष्टमी का व्रत, जिसे भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत मुख्यतः स्त्रियों द्वारा ही रखा जाता है।
दूर्वा अष्टमी का शुभ मुहूर्त
•दूर्वा अष्टमी 11 सितम्बर, 2024, बुधवार को
• पूर्वविद्धा समय – 05:42 AM से 06:06 PM
• अवधि – 12 घण्टे 24 मिनट
• अष्टमी तिथि प्रारम्भ 10 सितम्बर, 2024 को 11:11 PM बजे से
• अष्टमी तिथि समाप्त 11 सितम्बर, 2024 को 11:46 PM बजे
अष्टमी के अन्य शुभ मुहूर्त –
• बहा मुहूर्त-04:10 AM से 04:56 AM
• प्रातः सन्ध्या 04:33 AM से 05:42 AM
• अभिजित मुहूर्त कोई नहीं
•विजय मुहूर्त 01:58 PM से 02:48 PM
• गोधूलि मुहूर्त – 06:06 PM से 06:29 PM
• सायाहू सन्ध्या 06:06 PM से 07:16 PM
• अमृत काल 12:05 PM से 01:46 PM
• निशिता मुहूर्त – 11:31 PM से 12:18 AM, (12 सितम्बर)
• रवि योग – 09:22 PM से 05:43 AM, (12 सितम्बर)
दूर्वा अष्टमी का महत्व
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने, कूर्म अवतार अर्थात कछुए का अवतार लेकर, मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था। मंदराचल पर्वत के तीव्र गति से घूमने के कारण, श्री विष्णु भगवान की जंघा से कुछ बाल निकलकर समुद्र में गिर गए थे।
अमृत की कुछ बूंदें जैसे ही उन बालों पर गिरी, उसके प्रभाव से, विष्णु भगवान के रोम, पृथ्वीलोक पर दूर्वा घास के रूप में उत्पन्न हुए। इसलिए दूर्वा को अत्यंत पवित्र माना गया है, तथा दूर्वा अष्टमी पर दूर्वा घास की ही पूजा की जाती है।
दूर्वा अष्टमी की पूजा विधि
• दूर्वा अष्टमी का व्रत विशेषतः महिलाओं में बड़ा प्रचलित है। इस दिन महिलाएं, सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर, व्रत का संकल्प लेती है, नए वस्त्र धारण करती है।
•इसके बाद दही, फूल, फल, अगरबत्ती समेत सभी पूजन सामग्रियों से दूर्वा की पूजा की जाती है।
• इसके पश्चात भगवान गणेश, शिव जी और माता पार्वती को दूर्वा चढ़ा कर, इनकी पूजा की जाती है।
•इस दिन भगवान गणेश को तिल और मीठे आटे से बनी रोटी का भोग भी लगाया जाता है। साथ ही, ब्राह्मणों को नए वस्त्र और भोजन का भी दान दिया जाता है।
• दूर्वा घास के पूजन के लिए, विशेष परिश्रम की भी आवश्यकता नहीं होती। इसे घर के आँगन में ही लगाया जाता है।
• यह एक तरह से, आध्यात्मिकता को परिवेश के साथ सहेजकर रखने का प्रतीक भी होती है।
दूर्वा घास की दिव्यता का इतिहास
दूर्वा दो शब्दों, दुहु’ और ‘अवम’ के मेल से बना है। इसे हिंदू धर्म की पूजा-अर्चना ओं में अत्यंत पवित्र स्थान दिया गया है। तभी तो कोई भी मंगल कर्म, दूर्वा घास के बिना पूरा नहीं होता है। ऐसी मान्यता है, कि दूर्वा अष्टमी के व्रत को पूरी श्रद्धा से करने पर, भक्तो की सभी मनोकामना पूरी होती है।
दूर्वा घास की दिव्यता का अपना एक उज्जवल इतिहास वर्णित है। मान्यता है, कि भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को दूर्वा घास का महत्व बताया था। वहीं माता सीता ने भी लंका में इसी दूर्वा घास के द्वारा, रावण से दूरी बनाई और रावण को भी इसे ना लांघने की चेतावनी दी थी।
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