Surdas Jayanti 2024:संत सूरदास एक महान कवि और संगीतकार थे जो भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे। वो कान्हा को समर्पित भक्ति रचनाओं के लिए अत्यंत प्रसिद्ध हुए। सूरदास के जन्मदिवस पर आज भी लोग उनकी श्री कृष्ण के प्रति अटूट भक्ति व अनुराग को याद करते हैं, और ये दिन सूरदास जयंती के रूप में मनाते हैं।
लेख के मुख्य बिंदु
• सूरदास जयंती कब है?
• सूरदास जयंती का महत्व
• जन्म से अंधे थे सूरदास
• सूरसागर है सबसे अधिक प्रचलित कृति
• ऐसे हुई सूरदास की मृत्यु
Surdas Jayanti 2024: सूरदास जयंती कब है?
संत सूरदास का जन्म 1478 ई. में इतिहासकारों के अनुसार सिंही गांव, फरीदाबाद, हरियाणा में हुआ था। हालाँकि कुछ जानकारों का ये भी दावा है कि उनका जन्म आगरा के पास रुनकता में हुआ था। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार संत सूरदास जयंती प्रति वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को पड़ती है, जिसके अनुसार वर्ष 2024 में 12 मई रविवार को ये पर्व मनाया जायेगा।
Surdas Jayanti 2024: सूरदास जयंती का महत्व
श्रीकृष्ण कन्हैया का जितना सुंदर चित्रण सूरदास ने अपनी रचनाओं में किया है, वैसा शायद ही किसी ने किया हो। ब्रजभाषा के महान कवि सूरदास को हिंदी साहित्य जगत का सूर्य कहा जाता है। सूरदास जयंती का पर्व मुख्यतः देश के उत्तरी हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण की आराधना के साथ साथ लोग संत सूरदास के सम्मान में व्रत भी रखते हैं। इस दिन श्री कृष्ण से संबंधित स्थलों जैसे वृंदावन, मथुरा आदि में काव्य गोष्ठियों का आयोजन भी किया जाता है।
Surdas Jayanti 2024: जन्म से अंधे थे सूरदास
संत सूरदास के बारे में कहा जाता है कि वे जन्म से अंधे थे, वो जन्म से अंधे थे, इस कारण उन्हें उनके परिवार की उपेक्षा का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप, उन्होंने छह वर्ष की अवस्था में ही अपना घर छोड़ दिया और श्री वल्लभाचार्य के शिष्य बन कर भगवान कृष्ण की स्तुति करने लगे। जन्मांध होने के बावजूद भी सूरदास ने श्रीकृष्ण की जो भी रचनाएं लिखीं, उसमें उन्होंने श्री कृष्ण की लीलाओं का सजीव चित्रण किया।
Surdas Jayanti 2024: सूरसागर है सबसे अधिक प्रचलित कृति
श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास को ग्रंथों से जुड़ा ज्ञान दिया। ग्रंथों में श्री कृष्ण से जुड़ी लीलाएं सुनकर सूरदास का मन कृष्ण में ही रम गया। यूं तो सूरदास ने कई कलजयी रचनाएं की, जिनमें से सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो के अलावा दशमस्कंध टीका, नागलीला, भागवत्, गोवर्धन लीला, सूरपचीसी, सूरसागर सार, प्राणप्यारी आदि ग्रन्थ प्रमुख हैं। सूरसागर को सूरदास जी की सबसे लोकप्रिय कृति माना जाता है।
Surdas Jayanti 2024: ऐसे हुई सूरदास की मृत्यु
ऐसी मान्यता है कि संत सूरदास का निधन सन् 1583 में मथुरा के पास पारसोली नामक जगह पर हुई थी। उनकी मृत्यु के समय गोस्वामी विठ्ठलनाथ जी मौजूद थे। एक मान्यता ऐसी भी है, कि प्राण निकलते वक्त सूरदासजी खंजन नैन रूप रस माते पद गा रहे थे। पारसोली में आज भी सूरदास जी की समाधि मौजूद है। यहां प्रतिदिन हजारों की संख्या लोग उनकी समाधि का दर्शन करते हैं।
तो भक्तों, ये थी सूरदास जयंती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी।
ऐसी ही अन्य धार्मिक कथाओं के लिए धार्मिक सुविचार से जुड़े रहे धन्यवाद 🙏