Dhumavati Jayanti:धूमावती जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। माता धूमावती दुर्गा जी का सातवां अवतार हैं। यह माता शक्ति का सबसे क्रोधित रूप माना जाता है।
इस लेख के प्रमुख बिंदु
• धूमावती जयंती कब है?
• धूमावती जयंती का महत्व
• माँ धूमावती से संबंधित पौराणिक कथा
• देवी धूमावती का स्वरूप
•धूमावती जयंती के दिन होने वाले अनुष्ठान
Dhumavati Jayanti:धूमावती जयंती कब है?
वर्ष 2024 में धूमावती जयंती ज्येष्ठ, शुक्ल अष्टमी तिथि पर 14 जून शुक्रवार को मनाई जाएगी
अष्टमी तिथि का प्रारम्भ 13 जून को 09:33 PM से होगा।
अष्टमी तिथि का समापन 15 जून को 12:03 AM पर होगा।
धूमावती जयंती Dhumavati Jayanti का महत्व
• धूमावती जयंती माता धूमावती की कृपा पाने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है।
• अपने अत्यंत क्रोधित स्वरुप के विपरीत देवी इस दिन उनकी उपासना करने वाले भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करती हैं। माता के दर्शन मात्र से ही जातक को अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है।
• दस महाविद्याओं में से देवी धूमावती को दारुण महाविद्या के रूप में जाना जाता है।
देवी धूमावती समस्त प्रकार की बुराइयों, पापों, राक्षसों, व नकारात्मकताओं का नाश करती हैं।
ऐसी मान्यता है कि ऋषि दुर्वासा, भृगु ऋषि व परशुराम ने विशेष शक्तियां पाने के लिए देवी धूमावती की ही आराधना की थीं
• माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों को देवी धूमावती की पूजा नहीं करनी चाहिए। उन्हें दूर से ही देवी के दर्शन कर आशीर्वाद लेना चाहिए।
• देवी धूमावती की छवि का दर्शन करने से संतान और सुहाग दोनों की रक्षा होती है।
Dhumavati Jayanti: मां धूमावती से संबंधित पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवी पार्वती तीव्र क्षुधा के कारण अत्यंत व्याकुल हो उठीं। वो भगवान शिव से भोजन के लिए बार बार आग्रह करने लगीं, परंतु ध्यानमग्न होने के कारण शंकर जी को माता पार्वती की आग्रह का आभास ही नहीं हुआ।
जैसे जैसे समय व्यतीत होने लगा, वैसे वैसे माता की क्षुधा और क्रोध दोनो बढ़ते गए। माता पार्वती ने क्रोध के कारण अत्यंत तीव्र श्वास ली, और भगवान शिव को ही निगल गई। शिव जी के कंठ में विष होने के कारण उन्हें निगलने पर देवी की देह से धुआं निकलने लगा।
उनका स्वरूप विकृत एवं श्रृंगार विहीन हो गाया, इस कारण उन्हें धूमावती कहा गया। भगवान शिव को खाने के कारण माता धूमामती को विधवा माना जाता है, और इसी स्वरूप में उनकी पूजा की जाती है।
Dhumavati Jayanti:देवी धूमावती का स्वरूप
• धूमावती देवी की स्वरूप मलिन और भयानक होता है।
• माता विधवा रूप में कौवे के वाहन पर विराजमान होती हैं।
• देवी धूमावती का वस्त्र श्वेत होता है, और उनके केश खुले होते हैं।
• देवी का स्वरूप चाहे अत्यंत उग्र है, परंतु वो संतान व सुहाग का कल्याण करने वाली मानी जाती हैं।
Dhumavati Jayanti: धूमावती जयंती के दिन होने वाले अनुष्ठान
• धूमावती जयंती के दिन भक्त ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं।
• पूजास्थल को गंगाजल से शुद्ध करके जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप तथा नैवैद्य आदि से धूमावतीदेवी का पूजन किया जाता है।
• देवी धूमावती की कृपा से मनुष्य के समस्त बुरे कर्मों का नाश होता है, दुःख, कष्ट व निर्धनता आदि भी दूर होती है, और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
• धूमावती जयंती के अवसर पर मां धूमावती का पूजन विशेष कर रात्रि में किया जाता है। इस समय लोग सुनसान जगह पर देवी के मंत्रों का जाप करते हैं, साथ ही ये दिन तंत्र साधना के लिए भी उपयुक्त होता है।
• माता की कृपा पाने व समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने के लिए इस दिन धूमावती को काले तिल अर्पित किए जाते हैं।
तो भक्तों, ये थी धूमावती जयंती से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि आपकी पूजा व व्रत सफल हो, माता आप पर प्रसन्न हों और आजीवन अपनी कृपा बनाएं रखें।
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