नमो भगवते वासुदेवाय! आज का दिन आप सभी के लिए मंगलमय हो। आज पौष महीने का तीसरा दिन है और आज संकष्ट चतुर्थी का व्रत भी रखा जाएगा। अगर आप संकष्ट चतुर्थी का व्रत रखते हैं, तो मेरे Blog पर संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा भी पढ़ सकते हैं।
जैसा कि पौष महीना चल रहा है, इसलिए पौष महीने में प्रतिदिन सुबह सुबह सूर्यदेव को जल का अर्घ्य देना चाहिए। इससे पूरे साल रोग और दुख पास भी नहीं भटकते हैं। आज मैं पौष मास की कथा का तीसरा अध्याय सुनाने वाला हूं। आइए सुनते हैं पौष मास की कथा का तीसरा अध्याय।
आज की कथा में वैस पायन जी जन्मन जय जी से कहते हैं। जन्म जय राजा श्री शांतन की पत्नी सत्यवती के गर्भ से दो पुत्र हुए: चित्रांग और चत्र वर। दोनों ही बड़े होनहार और पराक्रमी थे। अभी चित्रांगद ने युवावस्था में प्रवेश भी नहीं किया था कि राजा शांतन स्वर्गवासी हो गए। भीष्म जी ने सत्यवती की सम्मति से चित्रांगद को राजगद्दी पर बैठाया। उसने अपने प्रक्रम से सभी राजाओं को पराजित किया। वह किसी भी मनुष्य को अपने समान नहीं समझता था।
गंधर्व राज ने यह देखकर कि शांतन नंदन चित्रांगद अपने बल प्रक्रम से देवता, मनुष्य और असुरों को नीचा दिखा रहा है, उस पर चढ़ाई कर दी। और दोनों में कुरुक्षेत्र के मैदान में घमासान युद्ध हुआ। सरस्वती नदी के तट पर तीन वर्ष तक लड़ाई चलती रही। गंधर्व बहुत बड़ा मायावी था, उसके हाथों राजा चित्रांग की मृत्यु हो गई।
देवता विश्व ने भाई की अंत्येष्टि क्रिया करने के पश्चात विचित्र वीर्य का राजगद्दी पर अभिषेक किया। विचित्रवीर्य भी अभी जवान नहीं हुए थे, बालक ही थे। वे भीष्म के आज्ञा अनुसार अपने पत्रिक राज्य का शासन करने लगे। विचित्रवीर्य भीष्म का आज्ञाकारी थे और भीष्म उनकी हमेशा रक्षा करते रहते थे।
जब भीष्म ने देखा कि मेरा भाई विचित्रवीर्य यवन में प्रवेश कर चुका है, तब उन्होंने उसके विवाह का विचार किया। उन्हीं दिनों उन्हें यह समाचार मिला कि काशी नरेश की तीन कन्याओं का स्वयंवर हो रहा है। उन्होंने माता की सम्मति लेकर अकेले ही रथ पर सवार होकर काशी की यात्रा की। स्वयंवर के समय जब राजाओं का परिचय दिया जाने लगा, तब शांतनु नंदन भीष्म को अकेला और बूढ़ा समझकर सुंदरियां घबराकर आगे बढ़ गईं।
वहां बैठे हुए राजा लोग भी आपस में हंसी करते हुए कहने लगे कि भीष्म ने तो ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ले ली थी, अब बाल सफेद होने और झुर्रियां पड़ने पर यह बुजुर्ग लज्जा छोड़कर यहां क्यों आ गया है। यह सब देख सुनकर भीष्म को रोष आ गया। उन्होंने अपने भाई के लिए बलपूर्वक हरकर कन्याओं को रथ पर बैठाया और कहा कि क्षत्रिय स्वयंवर विवाह की प्रशंसा करते हैं और बड़े बड़े धर्म के मुनि भी, किंतु राजाओं मैं तुम लोगों के सामने कन्याओं का बलपूर्वक हरण कर रहा हूं। तुम लोग अपनी पूरी शक्ति लगाकर मुझे जीत लो या हारकर भाग जाओ।
भीष्म की इस बात से चिड़कर सभी राजा ताल ठोकते और होठ चबाते हुए उन पर टूट पड़े। बड़ा रोमांचकारी युद्ध हुआ। सबने भीष्म पर एक साथ ही 100 हज बाण चलाए, परंतु उन्होंने अकेला ही सबको काट डाला। भीष्म के सामने किसी की एक ना चली। वह भयंकर युद्ध देवासर संग्राम जैसा था। भीष्म ने उस युद्ध स्थली में शस्त्रों, धनुष, बाण, ध्वजा, कवच और सिर काट डाले।
भीष्म का अलौकिक और अपूर्व हस्त लाघव तथा शक्ति देखकर शत्रु पक्ष के होते हुए भी सब उनकी प्रशंसा करने लगे। भीष्म विजय होकर कन्याओं के साथ हस्तिनापुर लौट आए। वहां उन्होंने तीनों कन्याएं विचित्र वीर को समर्पित कर दी। और विवाह का आयोजन किया। तब काशी नरेश की बड़ी कन्या अंबा ने भीष्म से कहा, “भीष्म, मैं पहले मन ही मन राजा सालों को पति मान चुकी हूं। मेरे पिता की भी सम्मति थी। मैं स्वयंवर में भी उन्हें ही चुनती।”
आप तो बड़े धर्माज हैं, मेरी यह बात जानकर आप धर्मानुसार आचरण करें। विश्व ने ब्राह्मणों के साथ विचार करके अंबा को उसके इच्छा अनुसार जाने की अनुमति दे दी। और शेष दो कन्याएं अंबिका और अंबालिका को विचित्र वीर के साथ बहा दिया।
विवाह के बाद विचित्र वीर यवन के उन्माद में उन्मत होकर कामा हो गया। उसकी दोनों पत्नियां भी प्रेम से सेवा करने लगीं। सात वर्ष तक विषय सेवन करते रहने के कारण भरी जवानी में विचित्र वीर को क्षय हो गया। और बहुत चिकित्सा करने पर भी वह चल बसा। इससे धर्मात्मा भीष्म के मन पर बड़ी ठेस लगी।
परंतु उन्होंने धीरज धारण कर ब्राह्मणों की सलाह से विचित्र की उत्तर क्रिया संपन्न की। कुछ दिनों के बाद वंश रक्षा के विचार से सत्यवती ने भीष्म को बुलाकर कहा, “बेटा भीष्म, अब धर्म प्रण पिता के पिंडदान से और वंश रक्षा का भार तुम पर ही है। मैं तुम पर पूरा भरोसा करके एक कार्य में नियुक्त करती हूं।”
तुम उसे पूरा करो। देखो तुम्हारा भाई विचित्र वीर इस लोक में कोई संतान छोड़े बिना ही परलोक वासी हो गया है। तुम काशी नरेश की पुत्र कामिनी कन्याओं के द्वारा संतान उत्पन्न करके वंश की रक्षा करो। मेरी आज्ञा मानकर तुम्हें यह काम करना चाहिए।
तब भीष्म ने कहा, “माता, आपकी बात ठीक है, परंतु आप जानती हैं कि मैंने आपके विवाह के समय क्या प्रतिज्ञा कर रखी है। मैं पुनः प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं त्रिलोकी का राज्य, ब्रह्मा का पद और इन दोनों से अधिक मोक्ष का भी परित्याग करता हूं, परंतु सत्य नहीं छोडूंगा।”
भीष्म की भीषण प्रतिज्ञा की पूर्ण विधि सुनकर सत्यवती ने फिर उनसे सलाह की और निश्चयाचा व्यास को बुलाया। व्यास ने उपस्थित होकर कहा, “माता, मैं आपकी क्या सेवा करूं?”
सत्यवती ने कहा, “बेटा, तुम्हारा भाई विचित्र वरनी संतान ही मर गया है। तुम उसके क्षेत्र में पुत्र उत्पन्न करो।” व्यास जी ने स्वीकार करके अंबिका से धृतराष्ट्र और अंबालिका से पांडु को उत्पन्न किया।
जब अपनी अपनी माताओं के दोष के कारण धृतराष्ट्र अंधे और पांडु पीले हो गए, तब अंबिका की प्रेरणा से उसकी दासी ने व्यास जी के द्वारा ही विदुर को उत्पन्न किया। महात्मा मांडवे के साथ धर्मराज ही विदुर के रूप में उण हुए थे।
तो इसी के साथ आज का यह अध्याय समाप्त हुआ। इसके आगे की कथा मैं कल के अध्याय में सुनाऊंगा। सुनिए हर हर महादेव!
हमारे भोलेनाथ इतने दयालु और कृपालु हैं कि उनकी भक्ति करने वालों का कल्याण तो होता ही है, साथ ही उनके संपर्क में आए जीव जंतु, पेड़, नदी, सरोवर सबका उद्धार हो जाता है। ऐसी ही एक कथा है भोलेनाथ के एक सच्चे भक्त की जिसके एक पुण्य कर्म करने से उसकी सात पीढ़ी, पेड़-पौधे, जानवर सबका कल्याण हो गया।
प्राचीन काल की बात है, एक नगर में एक अत्यंत ही गरीब व्यापारी रहा करता था। उस व्यापारी का नाम उमा शंकर था, जो किसी तरह से दिन रात मेहनत करके मजदूरी करके अपने घर परिवार का पालन पोषण करता था। उसे मजदूरी में दिन भर काम करने के बाद बहुत कम पैसे मिलते थे। उनमें से वह कुछ पैसों का रोजाना दान करता और शिव मंदिर में मथा टेकता और बाकी पैसों से अपने परिवार का पालन पोषण करता और घर का खर्च चलाता।
इस प्रकार धीरे-धीरे कुछ समय बीतने के बाद भगवान भोलेनाथ की कृपा से उसके घर में एक अत्यंत ही सुंदर पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम उसने गणेश रखा। उस गरीब व्यापारी उमा शंकर के परिवार में अब कुल तीन सदस्य हो गए थे: दोनों पति-पत्नी और उनका बेटा। उमा शंकर को अब धीरे-धीरे अपने बेटे के पालन पोषण में समस्या होने लगी क्योंकि इधर प्रतिदिन महंगाई बढ़ती जा रही थी।
एक दिन की बात है, उमा शंकर का बेटा गणेश अपने पिता से पूछने लगा, “पिताजी, आप रोजाना कमाते हैं, जिसमें से आप कुछ पैसों का दान कर देते हैं और थोड़े से पैसों में हम अपना गुजारा कैसे कर पाएंगे?” उमा शंकर को चुप देखकर उसकी पत्नी ने अपने बेटे से कहा, “बेटा, कोई बात नहीं। तुम्हारे पिताजी रोज कमाते हैं और उसमें से कुछ पैसों का दान कर देते हैं। यह सब दान तुम्हारे लिए ही तो करते हैं, दूसरे के लिए नहीं।” लेकिन वह लड़का इस बात को नहीं समझ पाया क्योंकि वह बहुत ही छोटा था।
प्रिय भक्तों, इसी तरह कुछ समय व्यतीत हुआ और उमा शंकर का बेटा अब धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। उस बेटे की उम्र अब 9 वर्ष की हो गई। एक दिन की बात है, जब उमा शंकर काम करके शाम के समय अपने घर वापस लौट रहा था, तभी रास्ते में नदी पार करते समय नाव डूब जाने से उमा शंकर की वहीं पर मृत्यु हो गई। जब उसकी पत्नी और उसके बेटे को उसकी मृत्यु की समाचार मिली, तो उसे बड़ा ही दुख हुआ। फिर इस प्रकार अपनी मां को रोते बिलखते देखकर उमा शंकर के बेटे गणेश ने अपनी मां से कहा, “मां, हमारे पिताजी कहां चले गए?” तब उसकी पत्नी ने कहा, “बेटा, तुम्हारे पिता भगवान शिव जी के धाम चले गए हैं।”
तब बेटे ने कहा, “जब पिताजी थे तो रोजाना कमाते थे और कुछ रुपए बचत करते थे और बाकी के रुपए से दान पुण्य करते थे। मां, अब हमारा पालन पोषण कौन करेगा? कैसे हमारा पेट भरेगा?” फिर मां ने अपने बेटे से कहा, “हे पुत्र, जिस घर में गरीबी होती है, उसका कोई सहारा नहीं होता। उसे सभी दूर भगाते हैं। गरीबों का सिर्फ भगवान सहारा होता है। मैं तो शिवशंकर से रूढ़ी हूं, किंतु तू उनकी भक्ति कर। मुझे विश्वास है कि हमारे इस दुख से भगवान भोलेनाथ उद्धार अवश्य करेंगे।”
अपनी मां को इस तरह विलाप करते हुए देखकर वह छोटा सा नन्हा बालक गणेश अपनी मां से कहने लगा, “हे मां, मैं तुझे इस तरह दुखी नहीं देख सकता। तू चिंता मत कर, मैं भगवान शिवशंकर के पास जाऊंगा। मैं अपने पिताजी को वापस लेकर आऊंगा। हमारी गरीबी देखकर भगवान भोलेनाथ को हमारे ऊपर अवश्य ही दया आ जाएगी और वह हमारे पिता को मेरे साथ जरूर भेज देंगे।”
प्रिय भक्तों, उस छोटे से बच्चे गणेश की बात पर उसकी मां ने ध्यान नहीं दिया। फिर एक दिन की बात है, उस गरीब आदमी उमा शंकर की पत्नी अपने बेटे गणेश को घर पर अकेला ही छोड़कर गांव में काम करने के लिए चली गई। उधर उसका बेटा गणेश मन में सोचने लगा कि मैं शिवशंकर जी के पास जाता हूं और अपने पिताजी को लाने के लिए ऐसा सोचकर गणेश अपने पिता को लाने के लिए अपने घर से चल देता है।
गणेश को चलते चलते काफी समय व्यतीत हो गया। फिर उसे थकान का अनुभव होने लगा। तब वह एक बहुत ही विशाल बरगद के पेड़ को देखकर उसकी छाया में जाकर बैठ गया। तब उस बरगद के पेड़ ने इंसानी आवाज में कहा, “हे बेटे, तुम कहां जा रहे हो और कहां से आ रहे हो? मेरी छाया में आज तक तुम्हारे जैसा कोमल सुकुमार बालक नहीं आया है। तुम्हारे शरीर से एक दिव्य आभा प्रकट हो रही है।”
फिर उस गणेश बाल ने कहा, “मैं एक गरीब व्यापारी उमा शंकर का बेटा हूं। मेरे पिताजी मुझे छोड़कर भगवान शिवशंकर जी के पास चले गए हैं और अब मैं अपने पिताजी को लाने के लिए शिवशंकर जी के पास जा रहा हूं।”
उस बर्गत के पेड़ ने जब उसके मुख से यह बात सुनी, तो उसने कहा, “हे बेटा, यदि तू भोलेनाथ के पास जा रहा है, तो भोलेनाथ से तुम मेरा एक प्रश्न पूछकर आना कि मैं कई वर्षों से यहां पर लगा हूं, लेकिन मेरा एक भी पत्ता जमीन पर नहीं गिरता और ही मेरी डालियां सूखती हैं। मैं कितने वर्षों तक यहां पर खड़ा रहूंगा? मैंने अपने पूर्व जन्म में कौन सा पाप किया था, जिस कारण से मुझे इस योनि से मुक्ति ही नहीं मिल पा रही? इसका कौन सा कारण है?” तब उस लड़के गणेश ने कहा, “ठीक है, इतना कहकर गणेश वहां से चला जाता है।”
चलते चलते रास्ते में एक इच्छाधारी सर्प मिला। उस सर्प को देखकर गणेश डर के मारे थरथर कांपने लगा और बिलख बिलख कर रोने लगा। सर्प ने कहा, “बेटा, तुम मुझसे डरो नहीं। मुझे इतना बताओ कि तुम कौन हो और ऐसे भागे भागे कहां जा रहे हो। तुम्हारे शरीर से बड़ी ही दिव्य ऊर्जा आ रही है, जो मुझे बड़ी ही मोहित कर रही है।”
गणेश हिम्मत करते हुए उस सर्प के पास गया और हाथ जोड़कर कहने लगा, “हे सर्प राज, मैं गरीब व्यापारी उमा शंकर का बेटा हूं और मैं भगवान शिव जी के पास अपने पिताजी को लाने के लिए जा रहा हूं।”
उस सर्प ने कहा, “बेटा, तुम भोलेनाथ से मेरा एक प्रश्न पूछकर आना कि मैं कई वर्षों से यहां पर पड़ा हूं। मेरे शरीर से अब चला भी नहीं जाता। मेरे शरीर में इतनी भी जान नहीं है कि मैं थोड़ा सा भी चल फिर सकूं। मैंने अपने पूर्व जन्म में ऐसा कौन सा घोर पाप किया था, जिस कारण मुझे इस सांप के शरीर से मुक्ति ही नहीं मिल रही?” तब गणेश ने कहा, “ठीक है, मैं भगवान भोलेनाथ से तुम्हारा यह प्रश्न अवश्य ही पूछकर आऊंगा।”
प्रिय भक्तों, इतना कहकर वह लड़का गणेश आगे चलने लगा। फिर चलते चलते थोड़ी दूर पर उसे रास्ते में एक किसान मिला। उस किसान ने कहा, “अरे बेटा, रुक जाओ! तुम कहां जा रहे हो? देखने में तो बड़े ही बुद्धिमान लग रहे हो और तुम्हारी आभा भी बड़ी ही ओजस्वी है।”
तब उस लड़के ने कहा, “मैं एक गरीब व्यापारी उमा शंकर का बेटा हूं और मैं भगवान शिव जी के पास अपने पिताजी को लाने जा रहा हूं।”
तब उस किसान ने कहा, “हे बेटे, मेरा एक काम करके आना। मेरा एक प्रश्न है। तुम भगवान शिव जी के पास जा रहे हो, तो उनसे यह मेरा प्रश्न पूछकर आना कि मैं इस रास्ते से आने जाने वाले मुसाफिरों के लिए कई वर्षों से कुआ खुदवा रहा हूं, लेकिन इसमें से पानी अभी तक क्यों नहीं निकला? मैंने अपने पूर्व जन्म में ऐसा कौन सा अन्याय किया था, जिस कारण से इस कुएं से अभी तक पानी नहीं निकला? मैंने इसमें बहुत सारे धन खर्च कर दिए हैं और बहुत मेहनत की है। आखिर इसका क्या कारण है, जिससे कुएं में पानी नहीं निकल रहा?”
उस लड़के गणेश ने कहा, “ठीक है, मैं भोलेनाथ से तुम्हारा यह प्रश्न जरूर पूछकर आऊंगा।”
ऐसे ही बहुत दूर जाने के बाद वह उस स्थान पर पहुंचा, जहां एक मरा हुआ बगुला पड़ा हुआ था। जब गणेश उस बगुले को लांग कर आगे बढ़ा, तो वह मरा हुआ बगुला बोलता है, “बेटा, तुम कौन हो? कहां से आए हो और कहां जा रहे हो?” तब गणेश ने उसकी आवाज सुनकर अपना नाम और अपने पिता का नाम बताते हुए कहा, “मैं अपने पिताजी को लाने के लिए शिव जी के पास जा रहा हूं।”
तो उस बगुले ने कहा, “तुम भगवान भोलेनाथ से मेरा एक प्रश्न पूछकर आना कि मेरा शरीर कई वर्षों से इस तालाब के किनारे पड़ा है। कभी पानी की लहर आती है, तो मेरा शरीर तालाब के अंदर चला जाता है और पानी की लहर से वापस बाहर निकलकर किनारे पर आ जाता है। ना तो मेरा शरीर गलता है, नहीं सड़ता है। इतने सालों से जैसे का तैसा है। मैंने अपने पूर्व जन्म में ऐसा कौन सा पाप कर्म किया था, जिसके कारण मुझे इस शरीर से मुक्ति ही नहीं मिल पा रही?” तब गणेश ने कहा, “ठीक है, मैं शिवपुरी में जाकर भगवान भोलेनाथ से तुम्हारा प्रश्न अवश्य ही पूछकर आऊंगा।”
इतना कहकर वह लड़का गणेश वहां से आगे चला। वहां से चलते-चलते वह कैलाश पर्वत के निकट शिवपुरी में पहुंचा, जहां पर भगवान शिव जी के चरणों में उसने प्रणाम किया और हाथ जोड़कर कहने लगा, “हे भगवान भोलेनाथ! हे देवाधि देव महादेव! मेरे पिताजी यहां पर हैं। मैं अपने पिताजी को यहां से लेने के लिए आया हूं। क्योंकि जब मेरे पिताजी घर पर थे, उन्हें आपने अपने पास बुला लिया है। तो मैं और मेरी मां भूखे मर रहे हैं। मेरी मां को कोई भी गांव में काम करने के लिए अपने घर नहीं रखता। उन्हें सब दूर भगाते हैं। आता है शिवजी, आप मेरे पिताजी को जल्दी मेरे साथ हमारे घर के लिए भेज दीजिए।”
प्रिय भक्तों, फिर भगवान भोलेनाथ ने गणेश की बात को सुनकर कहा, “हे पुत्र, मैं तुम्हारे पिताजी को घर पर भेज दूंगा। शांत चित्त होकर बैठो।” भगवान शिव जी ने उस लड़के को अपने पास में बिठाया और उसे अच्छे से भर पेट भोजन कराया। भोजन करने के बाद गणेश ने रास्ते में जितने भी लोग मिले थे, उनके प्रश्नों को भगवान शिव जी से पूछा।
तब भगवान शिव जी ने उन सभी के प्रश्नों का उत्तर दिया और कहा, “पुत्र, तुम जाते समय उन सबको उनके उत्तर अवश्य ही बताना। उन प्रश्नों के उत्तर को लेकर तुम अपने घर जाओ। तुम्हारी मां तुम्हें ढूंढकर परेशान हो रही होगी और वह तुम्हारा इंतजार कर रही है। तुम्हारे पिताजी तुम्हारे घर बहुत ही पहुंच जाएंगे।”
फिर वह लड़का गणेश भगवान शिव जी को प्रणाम करके अपने प्रश्नों के उत्तर को लेकर वहां से अपने घर के लिए चलने लगा। चलते चलते रास्ते में सबसे पहले उस गणेश को वही मरा हुआ बगुला मिला, जो तालाब के किनारे पड़ा हुआ था। उस लड़के को देखकर वह मरा हुआ बगुला कहने लगा, “हे बेटा, क्या तुमने भगवान भोलेनाथ से मेरा प्रश्न पूछा था?” तब गणेश ने कहा, “हां, बगुला, मैंने भगवान भोलेनाथ से तुम्हारा प्रश्न पूछा था। शिवजी ने कहा कि तुम्हारे अगले जन में…”
हां, मैंने शिवजी से तुम्हारा प्रश्न पूछा था। उन्होंने कहा कि तुम्हारे अंदर पिछले जन्म में बहुत सारा अमृत भरा हुआ है। जब तक तुम इस अमृत को किसी को नहीं दोगे, तब तक तुम ऐसे ही व्याकुल तड़पते रहोगे।
बगुला ने कहा, “बेटा, अब कौन आएगा, मेरा अमृत लेने? मेरी आवाज तो कोई समझ ही नहीं पाता। पता नहीं क्यों मैंने तुमसे कहा और तुमने मेरी आवाज समझी। इसलिए तुम्हें मेरा अमृत ले लो।” फिर उसने अपना अमृत उस गणेश बालक को दे दिया। और जैसे ही गणेश को अपना अमृत देती है, वैसे ही उस आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो गई।
इसी तरह से वह लड़का गणेश वहां से आगे बढ़ता हुआ कुछ दूर चलते चलते उसी रास्ते पर पहुंचा, जहां उसे वह किसान मिला था। किसान भी वही था, जो मुसाफिरों के लिए कुआ खुदवा रहा था। उस किसान ने जैसे ही गणेश को देखा, तो बड़े ही प्रेम भाव से उदार मन से हाथ जोड़कर गणेश कहने लगा, “बेटा, क्या तुमने भगवान भोलेनाथ से मेरा प्रश्न पूछा था या नहीं?” तब गणेश ने कहा, “हां, पूछा था। भगवान भोलेनाथ ने कहा कि आपके घर में एक कन्या कुवारी बैठी है।
जब तक आप उस लड़की का विवाह नहीं कराएंगे और कन्यादान नहीं करेंगे, तब तक कुएं में पानी नहीं आएगा। पहले जो तुम्हारा कर्तव्य है, कर्म है, उसे पूरा कर लो। जो ईश्वर ने तुमको जिम्मेदारी सौंपी है, उस पर ध्यान दो। पहले आप कन्यादान करो, उसके बाद इस कुएं को खुदवा।”
उस किसान ने कहा, “बेटा, मैं अपनी लड़की के लिए लड़का ढूंढने के लिए कहां जाऊंगा? तुम मुझे बहुत ही सीधे साधे स्वभाव के बालक दिख रहे हो। इसीलिए बेटा, मैं चाहता हूं कि तुम ही मेरी लड़की से विवाह कर लो।” उस किसान ने अपनी प्यारी सी कन्या का विवाह उस गणेश के साथ कर दिया। फिर किसान ने अपनी लड़की को बहुत सारा धन देकर घोड़े गाड़ी के साथ विदा कर दिया। इस तरह से गणेश अपनी पत्नी को लेकर फिर आगे चलने लगा।
फिर उसे रास्ते में वही विशाल बर्गत का पेड़ मिला, जिसकी छाया में उसने विश्राम किया था। उसने उससे पूछा, “बेटा, तुमने भगवान भोलेनाथ से मेरा प्रश्न पूछा था, उन्होंने क्या कहा?” तब उस लड़के ने कहा, “हाँ, तुम पूर्व जन्म में एक शिक्षक थे। तुम्हारा स्थान एक गुरु का था। तुम्हें लोक तक ज्ञान पहुंचाना था, लेकिन तुमने अपने लक्ष्य का अपने पद का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया। तुम ज्ञान शिक्षा देने के बदले छोटे-छोटे बच्चों से अपना काम करवाते थे और उन्हें अच्छी तरह से ज्ञान का उपदेश नहीं देते थे। अतः उनकी माताओं और उनके पिता से बहुत सारा अमूल्य धन एकत्रित करते रहते थे।
तुम पूर्व जन्म में बहुत ही विद्वान और ज्ञानी थे, परंतु तुमने उन बच्चों को शिक्षा नहीं दी और उसके बदले बहुत सारा धन उनके माता-पिता से हड़पा है, जिसकी वजह से उन छोटे-छोटे बच्चों ने बड़े हो जाने पर तुम्हें श्राप दिया था, जिसके कारण ही तुम हिलडुल नहीं पा रहे हो। जड़ता हो गए हो। तुम्हारे अंदर जो ज्ञान भरा है और तुम्हारे जड़ों में जो धन इकट्ठा है, उसे तुम किसी को प्रदान कर दो। इससे तुम्हारी आत्मा को मुक्ति की प्राप्ति होगी।
उस लड़के की बात सुनकर बरगद के पेड़ ने कहा, “बेटा, मैं यह ज्ञान और धन तुम्हें देना चाहती हूं। यह धन और ज्ञान तुम ले लो। मैं किसे देता? कौन मेरे बातों को सुनता है?” जैसे ही बरगद ने अपने जड़ से ढेर सारा धन उस बालक को प्रदान किया और साथ ही साथ ज्ञान दिया, वैसे ही बरगद का पेड़ टूटकर नीचे गिर गया। और उसमें से एक दिव्य आत्मा निकला, जिसे मोक्ष की प्राप्ति हो गई।
गणेश जैसे ही आगे चलने लगा, उसे रास्ते में वही इच्छाधारी सर्प मिला। उस सर्प ने कहा, “बेटा, तुमने भगवान भोलेनाथ से मेरा प्रश्न पूछा था?” तब गणेश ने कहा, “हां, पूछा था। हे नागराज! भगवान भोलेनाथ ने कहा कि तुम्हारे पास जो मणि है, तुम उस मणि को धरती पर नहीं उगलते हो और ही कभी किसी को दान देते हो। जब तक तुम इस मणि का दान किसी को नहीं दोगे, तब तक तुम्हारा शरीर ऐसे ही धरती पर पड़ा रहेगा।”
फिर उस सर्प ने कहा, “हे बेटे, मैं यह नागमणि अब किसको दूं? मुझे तो देखकर लोग दूर ही भाग जाएंगे। यहां से मैं हिल डूड भी नहीं सकता। इस नागमणि को तुम ही ले लो।” फिर उस सर्प ने अपनी नागमणि उस लड़के को दे दिया। जैसे ही सर्प ने नागमणि उस लड़के को दिया, वैसे ही उसकी आत्मा को सर्प की शरीर से मुक्ति प्राप्त हो गई।
कुछ देर बाद अपनी पत्नी के साथ चलते-चलते गणेश अपने नगर को पहुंच गया और अपने घर पर उसकी मां को अपने पुत्र को देखकर बड़ी ही खुशी हुई। और कहने लगी, “बेटा, तुम कहां चले गए थे और तुम्हारे साथ यह जो कन्या है, वह कौन है?” इस प्रकार कहते हुए गणेश ने सारी घटना अपनी मां को बताया।
इस प्रकार से रास्ते भर लोगों की इतनी दुख भरी बातें सुनकर उस लड़के गणेश को अब ज्ञान हो चुका था कि उसके पिताजी वापस नहीं आ सकते। अब उसकी इस पृथ्वी लोक से मुक्ति हो चुकी है। उनके पिताजी ने जो भी अपने जीवन में दान पुण्य किया था, उसका फल गणेश को शिव जी ने प्रदान कर दिया।
इस प्रकार से माता-पिता के अच्छे और बुरे कर्मों का फल उनके संतान को प्राप्त होता है। और जो मनुष्य भगवान शिव के प्रति श्रद्धा भक्ति रखकर उनकी आराधना करते हैं, तो उनके संपर्क में आने वाले सभी जीव जंतु, पेड़, पौधे, मनुष्य सबका उद्धार होता है। भगवान भोलेनाथ बड़े ही दानी और बड़े ही दयालु हैं। इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य को भगवान की भक्ति अवश्य ही करनी चाहिए। इससे उनका एक ना एक दिन उद्धार अवश्य ही होता है।
तो प्रेम से बोलिए, हर हर महादेव!