प्रिय पाठकों, सनातन काल गणना में चार युगों की अवधारणा है, जिसमें चौथा और अंतिम युग कलियुग है। इस लेख में हम इसी युग पर प्रकाश डालेंगे और इससे संबंधित प्रश्नों का जवाब जानेंगे कि कलियुग की शुरुआत ( when did kaliyuga start) कलियुग को पूरा होने में कितना समय शेष रह गया है? कलियुग का अंत कब होगा और कलियुग की आयु कितनी है? आखिर वेदव्यास जी ने चारों युगों में कलियुग को ही सर्वश्रेष्ठ युग क्यों बताया है? आखिर कलियुग में धर्म क्या है? क्या कलियुग अपने चरम पर है? तो चलिए जानते हैं इन सवालों के जवाब!
कलियुग का आरंभ (when did kaliyuga start)
वर्तमान में चारों तरफ गलत होता हुआ देखकर आप सभी को लगता होगा कि कलियुग का अंतिम समय चल रहा है और यही जीवन का अंत है, लेकिन यह बिल्कुल भी सत्य नहीं है। हिंदू शास्त्र सूर्य सिद्धांत के अनुसार वास्तव में कलियुग का केवल यह आरंभ है और इसका अंत होने में अभी काफी समय शेष रह गया है। वेदव्यास जी द्वारा रचित कल्कि पुराण के अनुसार कलियुग की आयु 4 लाख 32 हजार है। अभी कलियुग कुछ 5000 वर्ष का ही हुआ है। महाभारत, मनुस्मृति और सूर्य सिद्धांत जैसे ग्रंथों के पन्ने पलटे तो कलियुग के भय और प्रभाव का पता चलता है और ऐसी बहुत सी कथाएं सामने आती हैं। जो कलियुग की शुरुआत से जुड़ी हुई हैं।
राजा परीक्षित की क्या थी एक भूल? when did kaliyuga start
महाभारत के अनुसार कलियुग का पृथ्वी पर आगमन राजा परीक्षित की एक भूल से जुड़ा है। जिसके परिणाम स्वरुप कलियुग धरती पर आने के साथ यहीं का होकर रह गया। महाभारत की समाप्ति के साथ द्वापर युग का अंतिम समय भी निकट आ रहा था और भगवान श्री कृष्ण बैकुंठ धाम लौट गए थे। इतनी हिंसा के होने के बाद पांडवों का मन भी धरती पर नहीं लग रहा था और उन्होंने सब कुछ त्याग कर मोक्ष की यात्रा पर जाने का फैसला किया तथा धर्मराज युधिष्ठिर ने अपना पूरा राज त्याग कर परीक्षित को सौंप दिया। जिसमें उन्होंने परीक्षित को सर्व अधिकारों के साथ सम्राट घोषित किया था।
विष्णु स्मृति में कहा गया है कि जब पांचों पांडव और द्रौपदी हिमालय मोक्ष यात्रा पर चले गए, तब एक दिन स्वयं धर्म बैल का रूप लेकर और गाय पृथ्वी देवी का रूप लेकर नदी किनारे बैठे हुए थे। उनकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। पृथ्वी को दुखी देख धर्म रूपी बल ने उनकी परेशानी का कारण पूछा। इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सत्य, मित्रता, त्याग, दया, शास्त्र, विचार, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, कोमलता, धैर्य आदि के स्वामी भगवान श्री कृष्ण अपने धाम को चले गए हैं, जिसके कारण कलियुग ने मुझ पर अपना कब्जा कर लिया है। अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो चुका है। जब धर्म और पृथ्वी आपस में बात कर ही रहे थे, तभी कलियुग आ पहुंचा। धर्म रूपी गाय, बैल रूपी पृथ्वी को मारने लगा। उसी दौरान राजा परीक्षित उस मार्ग से गुजर रहे थे।
राजा परीक्षित ने जब कलियुग को पहली बार देखा तो उनको अच्छा नहीं लगा। कलियुग पर बहुत क्रोधित होकर उन्होंने ने कहा कि दुष्ट तुम कौन हो, जो मेरे राज्य में ऐसा कर रहे हो, अब तेरी मौत निश्चित है और राजा परीक्षित का क्रोध देखकर कलियुग ने राजा से क्षमा याचना मांगी। राजा परीक्षित ने भी अपने चरणों में आए कलियुग को जीवन की भीख देते हुए कहा कि कलियुग तुम मेरी शरण में हो इसलिए में तुझे जीवन दान देता हूं। लेकिन तुम मेरे राज्य से अभी निकल जाओ। कलियुग ने राजा परीक्षित की बात सुनकर बड़ी चतुराई से कहा कि पूरी पृथ्वी पर आपका निवास है और पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं जहां आपका राज नहीं हो। ऐसे में राजा आप मुझे पृथ्वी पर रहने के लिए स्थान प्रदान कीजिए।
तब राजा परीक्षित ने कहा कि तुम्हारा निवास असत्य, मद, काम और क्रोध में होगा। इन चार स्थानों पर तुम रह सकते हो, लेकिन इस पर कलियुग ने बोला कि यह चार स्थान मेरे रहने के लिए काफी नहीं है। मुझे रहने के लिए स्वर्ण भी प्रदान कीजिए। कलियुग की यह मांग सुनकर राजा परीक्षित ने विचार कर स्वर्ण के रूप में पांचवा स्थान भी कलियुग को प्रदान किया। पांचवां स्थान मिल जाने पर कलियुग वहां से चला गया, लेकिन कुछ समय बाद ही अप्रत्यक्ष रूप में वापस आकर राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा और फिर इसी तरह से कलियुग का आगमन धरती पर हुआ। तो दोस्तों इस लेख में हमने जाना कलियुग क्या है और इस धरती पर कलियुग की शुरूआत कैसी हुई। ऐसी ही अन्य रोचक धार्मिक जानकारियों के लिए धार्मिक सुविचार से जुड़े रहे!