प्रिय पाठकों, हम लोगों में से ज्यादातर लोगों ने कभी न कभी उपवास अवश्य रखा होगा या रखते होंगे। इस लेख में हम इसी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर जानने का प्रयास करेंगे। जैसे- आखिर उपवास का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है ? व्रत और उपवास में क्या अंतर होता हैं ? आखिर उपवास रखने के नियम क्या हैं?
मनुष्य के जीवन में उपवास के क्या मायने हैं? उपवास के प्रभाव से क्या मनुष्य की आत्मा शुद्ध होती है? उपवास से क्या संकल्प शक्ति बढ़ती हैं? आयुर्वेद में हमारे स्वास्थ्य के लिए आखिर उपवास को क्यों इतना महत्वपूर्ण बताया गया है?
उपवास रखने का आध्यात्मिक महत्व
उप का अर्थ है ‘निकट’ और वास का अर्थ है ‘रहना’ यानी उपवास का अर्थ है, ईश्वर के पास रहना ही उपवास है। शास्त्रों की दृष्टि से हम देखे तो उपवास रखना भी एक तप है, एक तपस्या है। भगवत गीता के 17 अध्याय में कई प्रकार की तपस्याओं को बताया गया है, जिसमें से अन्न न खाना भी एक तपस्या है।
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः। दम्भाहङ्कारसंयुक्ता कामरागबलान्विताः ।। अर्थात- जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित केवल मन कल्पित घोर तप को तपते हैं तथा दम्भ और अहंकार से युक्त और कामना आसक्ति और बल के अभिमान से भी युक्त को ही तपस्या कहा गया हैं। इस के साथ ही यदि कोई व्यक्ति व्रत आदि उपवास अपने लिए करता है, यानी अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए करता है, तो इसको राक्षसी प्रवृत्ति कहा गया है।
तभी तो मनुष्य को अपनी इच्छाओं के लिए उपवास नहीं करना चाहिए। जब भी तप करना हैं, तो केवल ईश्वर के लिए करना चाहिए। क्योंकि भगवान की तपस्या और तप करने से मनुष्य का शरीर शुद्ध होता है और ऐसा करने से हम भगवान के नजदीक जाते हैं।
उत्साह पूर्वक किए गए उपवास को कर्म कहा गया है, जिस से स्वर्ग का गमन होता हैं। वैदिक साहित्य में व्रत का अर्थ निष्क वापक कर्म है। वहीं दार्शनिक शब्दों के अमरकोश में व्रत का अर्थ नियम है। पुराणों में व्रत धर्म का वाचक बताया गया है। उपवास के दौरान अन्न त्याग के साथ-साथ मनुष्य को भगवान का नाम जप, भगवान का दर्शन, भगवान की सेवा और चिंतन करना चाहिए।
उपवास रखने से मनुष्य की बुद्धि, विचार और चतुराई बढ़ती है। जिस से ज्ञान तंत्र सुचारित होता हैं। मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा का संचार होता है। व्यापार, व्यवसाय, कला कौशल और शास्त्रों का अनुसंधान होता है। इतना ही नहीं दोस्तों उपवास रखने से ग्रह नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से भी बचा जा सकता है, क्योंकि उपवास का मूल मंत्र संकल्प को विकसित करना होता है। मन में संकल्प होने के कारण मनुष्य के मन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
संकल्पवान व्यक्ति ही हर क्षेत्र में सफलता की सीढ़ी चढ़ता है। जिस भी मनुष्य के मन में दृढ़ संकल्प नहीं होता है, वो एक मृत शरीर के समान माना गया है। धर्म शास्त्र के अनुसार उपवास रखने से देवी देवता प्रसन्न होते हैं और मनुष्य के प्रश्न और परेशानियां दूर होती हैं।
उपवास रखने के क्या हैं नियम ?
धार्मिक पुराणों में हर उपवास रखने के अलग-अलग नियम है। उपवास को दो प्रकार से रखा जाता है। एक निर्जल उपवास यानी जिसमें आप एक घूंट जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। दूसरा उपवास फलाहारी या जलीय व्रत होता है, जिसमें फल खाकर या फिर नींबू पानी पीकर व्रत रखा जा सकता है। सामान्यत निर्जल व्रत उसी को रखना चाहिए जो पूरी तरह से स्वस्थ और तंदुरुस्त हो। वहीं उपवास वाले दिन कम से कम आहार को ग्रहण करना चाहिए।
उपवास के समय भगवान की ज्यादा से ज्यादा पूजा और आराधना करनी चाहिए। उपवास वाले दिन व्यक्ति को अपना अधिक से अधिक समय भगवान की उपासना में लगाना चाहिए। जातक को व्रत की समाप्ति दूसरे दिन सूर्योदय के बाद ही करनी चाहिए। सूर्योदय से दूसरे सूर्य उदय तक उपवास को धारण किया जाता है। अगले दिन जातक को व्रत का परायण करने से पहले किसी गरीब को भोजन या फिर अन्य का दान करना चाहिए। इसके बाद ही व्रत का पारायण करना जातक के लिए शुभ होता हैं।
उपवास रखने का वैज्ञानिक महत्व
उपवास रखने से आध्यात्मिक शुद्धिकरण के साथ आपकी सेहत में भी सुधार होता है। यदि जातक आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त नहीं करना चाहता तो सिर्फ अपनी सेहत में सुधार के लिए भी उपवास को रख सकता है। आयुर्वेद में उपवास रखना बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। उपवास मनुष्य को स्वस्थ्य रखने में भी मदद करता है। हफ्ते में एक दिन उपवास करने से मोटापा भी कम होता है। इतना ही नहीं मनुष्य का पाचन तंत्र भी उपवास करने से मजबूत होता है।
आयुर्वेद में कहा गया है, कि यदि कोई व्यक्ति पेट से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा है, तो उपवास करने से इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। क्योंकि उपवास करने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है। दोस्तों आज के लेख में हमने जाना उपवास रखने के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक उद्देश्य क्या होते हैं। ऐसी ही कई रोचक जानकारियों के लिए श्री मंदिर से जुड़े रहें।
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