Shattila Ekadashi 2025 Date:भक्तों, शास्त्रों में एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। षटतिला एकादशी, जिसे तिल्दा या षटिला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, यह माघ मास में कृष्ण पक्ष के दौरान 11 वें दिन आती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह त्योहार जनवरी या फरवरी के महीने में आता है। यहां हम आपके लिए लेकर आए हैं षटतिला एकादशी से जुड़ी विशेष तिथियों की जानकारी। जिसमें हम आपको व्रत के पारण का समय भी बताएँगे।
• 26 जनवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय 06:43 ए एम से 08:54 ए एम तक रहेगा।
• पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय 08:54 पी एम
• एकादशी तिथि प्रारम्भ 24 जनवरी 2025 को 07:25 पी एम बजे से
• एकादशी तिथि समाप्त 25 जनवरी 2025 को 08:31 पी एम बजे तक
षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2025 Date) के अन्य शुभ मुहूर्त –
• ब्रह्म मुहूर्त- 04:59 ए एम से 05:51 ए एम तक
• प्रातः सन्ध्या 05:25 ए एम से 06:44 ए एम तक
• अभिजित मुहूर्त- 11:49 ए एम से 12:32 पी एम तक
•विजय मुहूर्त- 01:59 पी एम से 02:43 पी एम तक
• गोधूलि मुहूर्त – 05:35 पी एम से 06:01 पी एम तक
• सायाह सन्ध्या-05:37 पी एम से 06:56 पी एम तक
• अमृत काल- 11:09 पी एम से 12:50 ए एम तक (26 जनवरी)
• निशिता मुहूर्त- 11:44 पी एम से 12:37 ए एम तक (26 जनवरी)
षटतिला एकादशी Shattila Ekadashi 2025 Date कथा और महत्व: जीवन को बदलने वाली पावन कथा
षटतिला एकादशी Shattila Ekadashi का परिचय
षटतिला एकादशी का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘षटतिला एकादशी’ कहते हैं। इस एकादशी का नाम ‘षटतिला’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें तिल के छह प्रकार के प्रयोग का वर्णन किया गया है—तिल का सेवन, तिल का दान, तिल का स्नान, तिल से हवन, तिल से तर्पण और तिल का उबटन। इसे करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी Shattila Ekadashi की कथा
प्राचीन समय में एक ब्राह्मणी भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी। वह व्रत और भजन-कीर्तन में लीन रहती थी, लेकिन कभी किसी को दान नहीं देती थी। उसके घर में भोजन और धन की कोई कमी नहीं थी, लेकिन वह अत्यधिक कंजूस थी। एक दिन भगवान ने उसकी परीक्षा लेने का निश्चय किया।
भगवान साधु का रूप धारण कर उसके घर भिक्षा मांगने पहुंचे। ब्राह्मणी ने साधु को खाली हाथ लौटा दिया। साधु ने हँसते हुए कहा, “तू जीवनभर दान नहीं करेगी तो तेरे पुण्य व्यर्थ हो जाएंगे।”
समय बीता, ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई। स्वर्ग में पहुंचने पर उसे खाली झोपड़ी मिली। वहां भोजन और वस्त्र का कोई साधन नहीं था। परेशान होकर उसने भगवान विष्णु को पुकारा। भगवान ने प्रकट होकर कहा, “तूने जीवन में केवल उपवास और भक्ति की, परंतु कभी दान नहीं किया। स्वर्ग में वही मिलता है, जो पृथ्वी पर दान किया हो।”
ब्राह्मणी ने भगवान से प्रायश्चित का उपाय पूछा। भगवान ने कहा, “माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को तिल के छः प्रकार के उपयोग करके व्रत करो और दान दो। इससे तुम्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी।” ब्राह्मणी ने वैसा ही किया और उसकी झोपड़ी स्वर्ण महल में परिवर्तित हो गई।
षटतिला एकादशी Shattila Ekadashi का महत्व
- पापों का नाश: इस दिन व्रत और तिल का दान करने से जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: भगवान विष्णु की कृपा से भक्ति और ध्यान में प्रगति होती है।
- पुण्य की प्राप्ति: तिल के छः प्रकार के प्रयोग से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- शारीरिक शुद्धि: तिल के स्नान और उबटन से शरीर की अशुद्धियां समाप्त होती हैं।
- दान का महत्व: यह एकादशी दान की महिमा को समझने और उसे जीवन का हिस्सा बनाने का सुअवसर देती है।
षटतिला एकादशी Shattila Ekadashi पर व्रत विधि
- प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं।
- तिल और गुड़ से बनी सामग्री का भोग लगाएं।
- पूरे दिन उपवास करें और विष्णु सहस्रनाम या विष्णु मंत्रों का जाप करें।
- तिल का दान करें—चाहे वह तिल से बने भोजन, वस्त्र, धन या तिल के तेल के रूप में हो।
- रात को जागरण करके भगवान का कीर्तन करें।
षटतिला एकादशी Shattila Ekadashi व्रत का फल
षटतिला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होते हैं। इसके पुण्य से न केवल इस लोक में, बल्कि परलोक में भी सुखद अनुभव होता है। यह व्रत धन, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति के द्वार खोलता है।
निष्कर्ष
षटतिला एकादशी केवल व्रत रखने का पर्व नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी परंपरा है जो हमें दान, सेवा और भक्ति का महत्व सिखाती है। इस दिन तिल का दान और उपयोग हमारी आत्मा को शुद्ध करता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करता है। इसलिए इस एकादशी पर व्रत और दान अवश्य करें और अपने जीवन को धन्य बनाएं।