Yogini Ekadashi 2024:योगिनी एकादशी निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आती है। उत्तर भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार योगिनी एकादशी आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष के दौरान पड़ती है। इस एकादशी पर व्रत रखने व भगवान विष्णु की उपासना करने से अट्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने सामान फल प्राप्त होता है।
Yogini Ekadashi 2024: इस समय करनी है पूजा !
योगिनी एकादशी- 02 जुलाई, मंगलवार (आषाढ़ कृष्ण एकादशी)
एकादशी तिथि प्रारम्भ – 01 जुलाई, सोमवार को 10:26 AM पर
एकादशी तिथि समापन – 02 जुलाई, मंगलवार को 08:42 AM पर
पारण का समय-03 जुलाई, बुधवार को 05:28 AM से 07:10 AM तक
इस दिन के अन्य विशेष शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त – 04:07 AM से 04:47 AM तक
प्रातः सन्ध्या – 04:27 AM से 05:27 AM तक
अभिजित मुहूर्त – 11:57 AM से 12:53 AM तक
विजय मुहूर्त – 02:45 PM से 03:40 PM तक
गोधूलि मुहूर्त – 07:22 PM से 07:42 PM तक
सायाह्न सन्ध्या – 07:23 PM से 08:24 PM तक
अमृत काल – 03 जुलाई, 02:20 AM से 03:53 AM तक
इस दिन के विशेष योग
त्रिपुष्कर योग – 02 जुलाई, 08:42 AM से 03 जुलाई 04:40 AM तक
सर्वार्थ सिद्धि योग – 03 जुलाई, 05:27 AM से 03 जुलाई, 04:40 AM तक
तो यह थी योगिनी एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी, हम आशा करते हैं कि आपका व्रत सफल हो।
एकादशी पूजा सामग्री
सनातन व्रतों में विशेष एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस दिन संपूर्ण विधि और उचित सामग्री के साथ पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है।
पूजा की सामग्री
• चौकी
• पीला वस्त्र
• गंगाजल
• भगवान विष्णु की प्रतिमा
• गणेश जी की प्रतिमा
• अक्षत
• जल का पात्र
• पुष्प
• माला
• मौली या कलावा
• जनेऊ
• धूप
• दीप
• हल्दी
• कुमकुम
•चन्दन
•अगरबत्ती
• तुलसीदल
पञ्चामृत का सामान (दूध, घी, दही, शहद और मिश्री)
•मिष्ठान्न
• ऋतुफल
• घर में बनाया गया नैवेद्य
नोट – गणेश जी की प्रतिमा के स्थान पर आप एक सुपारी पर मौली लपेटकर इसे गणेशजी के रूप में पूजा में विराजित कर सकते हैं।
जानें एकादशी की पूजा विधि
एकादशी का दिन भगवान विष्णु के भक्तों के लिए विशेष होता है। यदि इस दिन संपूर्ण विधि विधान से भगवान विष्णु की भक्ति एवं पूजा-अर्चना की जाए तो कठिनतम लक्ष्य की प्राप्ति भी संभव हो जाती है।
पूजा की तैयारी –
1. एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
2. दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
3. एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
4. इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
5. स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
6. अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
7. अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।
व्रत की पूजा विधि –
1. सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
2. इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें। (सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बने)
3. चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
4. अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
5. इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
6. अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
7. भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
8. इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
9. भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
10. अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें। 11. भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के
भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें। (ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)
12. इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
13. विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें, इसे आप श्री मंदिर के माध्यम से सुन भी सकते हैं।
14. अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।
15. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं व क्षमता अनुसार दान-दक्षिणा दें। तत्पश्चात ही व्रत का पारण करें।
Yogini Ekadashi 2024: योगिनी एकादशी की व्रत कथा
सभी एकादशी तिथियों की तरह आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली योगिनी एकादशी भी विशेष फलदाई मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर व्रत रखने व भगवान विष्णु की उपासना करने, व कथा सुनने से उतना फल प्राप्त होता है, जितना पुण्य 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात मिलता है।
तो चलिए हम भी योगिनी एकादशी की ये पावन कथा सुनते हैं।
महाभारत काल के समय एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से सभी एकादशी तिथियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंने कृष्ण जी से आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का महात्म्य सुनाने का आग्रह किया। इसपर भगवान कृष्ण बोले- हे युधिष्ठिर !
आषाढ़ कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। इस एकादशी के दिन जो जातक विधिवत् उपवास रखते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। व्रती को अपने जीवन में सभी तरह का सुख- सौभाग्य मिलता है, और अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री कृष्ण आगे कहने लगे हे धर्मराज! मैं योगिनी एकादशी से जुड़ी एक कथा सुनाता हूं, ध्यानपूर्वक सुनो-
स्वर्गलोक में अलकापुरी नाम का एक नगर था, जिसमें राजा कुबेर राज करते थे। वह धर्म कर्म में बड़ी आस्था रखते थे, और भगवान शिव की उपासना करते थे। किसी भी परिस्थिति में वो भगवान शिव की पूजा को नहीं टालते थे। हेम नाम का एक माली था, जो राजा के पूजा करने के लिए फूल चुन कर लाता था। वो हर दिन पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल दे जाया करता।
माली हेम की पत्नी का नाम विशालाक्षी था, जिसे वो बहुत प्रेम करता था। एक दिन कुछ यूं हुआ कि जब हेम फुलवारी से फूल चुनकर लौट रहा था, तब उसे अपनी पत्नी की याद आई। उसने सोचा कि अभी पूजा में तो बहुत समय है, तब तक क्यों न घर जाकर पत्नी को देख आया जाए।
ये सोचकर वो राजा को फूल देने जाने के बजाय अपने घर की ओर चल पड़ा। घर पहुंचकर जब हेम ने अपनी सुंदर पत्नी को देखा तो खुद को काबू न कर पाया और उसके साथ भोग विलास करने लगा। उधर पूजा का समय निकलता जा रहा था, और राजा कुबेर पुष्प न मिलने के कारण बड़े चिंतित थे।
जब पूजा का समय समाप्त हो गया और माली पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा कुबेर ने क्रोधित होकर अपने सैनिकों को उसका पता लगाने का आदेश दिया। जब सैनिकों वापस आकर हेम के भोग विलास में लिप्त होने की बात बताई, तो यह सुनकर राजा का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया।
उन्होंने सैनिकों को तुरंत हेम को पकड़ कर लाने का आदेश दिया। सैनिक माली को उसके घर से पकड़ कर राजा के सामने ले आए। वो कांपते हुए राजा कुबेर के सामने उपस्थित हुआ। कुबेर ने हेम को देखते ही क्रोधित होकर कहा- हे नीच, तूने भोग विलास के में लिप्त होकर भगवान शंकर का अनादर किया है! हे महापापी! जा, मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू स्त्री वियोग में तड़पेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।
राजा कुबेर के श्राप के कारण माली हेम भूतल पर पहुंच गया और कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गया। स्वर्ग में रहने के कारण उसे दुख सहने का कोई अनुभव नहीं था, किंतु पृथ्वी पर उसे भूख-प्यास कोढ़ जैसे भयानक रोग का सामना करना पड़ रहा था। उसे इन दुखों से मुक्त होने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।
भटकते भटकते एक दिन हेम मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा। ये आश्रम स्वर्गलोक में ब्रह्मा जी के आश्रम के समान था, जिसकी शोभा देखते ही बनती थी।
माली आश्रम में जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा, और उन्हें अपने श्रापग्रस्त होने का कारण बताया। इस पर ऋषि मार्केडय ने कहा- हे माली! तुमने मुझसे सत्य बोला, और तुम्हें अपनी भूल पर पछतावा है, इसलिये मैं तुम्हें इस श्राप से मुक्त होने का एक उपाय बताता हूं।
आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में योगिनी एकादशी पड़ती है। यदि तुम इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करोगे, और भगवान विष्णु की उपासना करोगे तो निश्चित ही तुम्हारे सभी पापकर्म नष्ट हो जाएंगें।
पापमुक्त होने का उपाय जानकर माली ने महर्षि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके निर्देश के अनुसार ही योगिनी एकादशी के व्रत का पालन किया। हेम पर इस व्रत के प्रभाव के कारण भगवान विष्णु की कृपा हुई, और उसे राजा कुबेर द्वारा दिए गए श्राप से छुटकारा मिल गया। इसके बाद वो अपने वास्तविक रूप में स्वर्गलोक जाकर अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
तो भक्तों, ये थी योगिनी एकादशी व्रत से जुड़ी विशेष कथा। हमारी कामना है आपका ये व्रत सफल हो, और जगत पालक भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहे।
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