Agni Nakshatram 2024:मई महीने की शुरुआत के साथ ही दक्षिण भारत में अग्नि नक्षत्रम् पर्व की तैयारियां प्रारंभ हो जाती है। अग्नि नक्षत्रम की अवधि कुल 25 दिनों तक की होती है। इन पच्चीस दिनों की अवधि में पारा अपने उच्चतम स्तर पर होता है। इस दौरान भगवान मुरुगन की उपासना का विशेष विधान है।
इस लेख में हम ये जानेंगे !
• अग्नि नक्षत्रम् समापन कब है?
• अग्नि नक्षत्रम् क्या है?
• अग्नि नक्षत्रम का महत्व क्या है?
• अग्नि नक्षत्रम पर होने वाले अनुष्ठान
Agni Nakshatram 2024:अग्नि नक्षत्रम् समापन कब है?
अग्नि नक्षत्रम् 04 मई, गुरुवार को वैशाख शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को प्रारंभ हुआ था।
ये पर्व 29 मई, सोमवार को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर समाप्त होगा।
Agni Nakshatram 2024: अग्नि नक्षत्रम् क्या है?
अग्नि नक्षत्रम मुरुगन भगवान को समर्पित एक प्रमुख त्योहार है। ये पर्व दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में बहुत ही श्रद्धा व उत्साह से मनाया जाता है। अग्नि नक्षत्रम 4 मई से आरंभ होकर 29 मई तक चलता है। अग्नि नक्षत्र मई के सबसे गर्म महीने के दौरान हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एकमात्र त्योहार है. अग्नि नक्षत्रम के दौरान सूर्य कृतिका नामक तारे से होकर गुजरता है। कृतिका नक्षत्र को तमिल भाषा में अग्नि नक्षत्रम कहा जाता है।
Agni Nakshatram 2024:अग्नि नक्षत्रम का महत्व क्या है?
अग्नि नक्षत्रम को भगवान मुरुगन मंदिरों, जैसे तिरुतनी, पलानी, पलामुथिरसोलई, स्वामी मलाई एवं तिरुचेंदुर में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दौरान हजारों हिंदू भक्त इन मंदिरों में जाकर भगवान मुरुगन के दर्शन करते हैं और उनके दिव्य आशीर्वाद से प्रसन्न होते हैं।
ऐसी मान्यता है कि अग्नि नक्षत्रम के दौरान कोई शुभ कार्य करने, यात्रा करने, उधार लेने या पैसे उधार देने से बचना चाहिए।
Agni Nakshatram 2024:अग्नि नक्षत्रम पर होने वाले अनुष्ठान
• अग्नि नक्षत्र की अवधि के दौरान सभी भक्त पवित्र पहाड़ी गिरि वालम की ‘प्रदक्षिणा’ करते हैं।
प्रदक्षिणा लेते समय महिला श्रद्धालु वहां पर उगने वाले कदंब के फूलों से भगवान मुरुगन के मंदिर को सुसज्जित करती हैं।
• मान्यता है कि कदम्ब का पुष्प भगवान मुरुगन को अत्यंत प्रिय होता है।
• मान्यताओं के अनुसार गिरि वल्लम पर्वत पर उगने वाली औषधीय जड़ी बूटियों की सुगंध, अच्छे स्वास्थ्य और मन की शांति प्रदान करती है.
• अग्नि नक्षत्रम की अवधि के दौरान, भगवान मुरुगन के पलानी मंदिर में अभिषेकम का आयोजन किया जाता है। इस प्रक्रिया में भक्त नियमित रूप से भगवान मुरुगन का जल से अभिषेक करते हैं।
• मुरुगन का अभिषेक करने के बाद इस जल को एकत्र किया जाता है, जिसे ‘थेरथा’ कहा जाता है।
• अग्नि नक्षत्रम् के अंतिम दिन ये जल सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
तो भक्तों, ये तो थी अग्नि नक्षत्रम् समापन की संपूर्ण जानकारी। हमारी कामना है कि आप पर भगवान मुरुगन की कृपा सदैव बनी रहे।
ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए धार्मिक सुविचार पर।
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