पोंगल 2026: क्या आपने कभी सोचा है कि जब प्रकृति अपना खजाना लुटाती है, तो उस आभार को व्यक्त करने का सबसे खूबसूरत तरीका क्या हो सकता है? दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में, इस प्रश्न का उत्तर ‘पोंगल’ है – एक ऐसा त्योहार जो केवल फसल का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन के प्रति कृतज्ञता, समृद्धि और सामुदायिक भावना का जीवंत प्रतीक है। जब जनवरी की सर्द हवाएँ धीरे-धीरे विदा लेती हैं और सूर्य अपनी सुनहरी किरणों से धरती को फिर से गरमाने लगता है, तब पोंगल का आगमन होता है। यह सिर्फ एक कैलेंडर तिथि नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाला एक अनुभव है।
2026 में, पोंगल का यह अद्भुत पर्व 14 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया जाएगा। चार दिनों तक चलने वाला यह त्योहार, हर दिन अपने साथ एक नया रंग, एक नई परंपरा और एक नई कहानी लेकर आता है। मेरे लिए, पोंगल सिर्फ एक छुट्टी नहीं है; यह जड़ों से जुड़ने, परिवार के साथ हँसने-खेलने और प्रकृति की उदारता को दिल से धन्यवाद देने का समय है। आइए, मेरे साथ इस यात्रा पर चलें और पोंगल के हर पहलू को गहराई से जानें।
पोंगल क्या है? बस एक फसल उत्सव से कहीं ज़्यादा!
अगर आप मुझसे पूछें कि पोंगल क्या है, तो मैं कहूँगा कि यह केवल “उबलना” या “छलकना” नहीं है, जैसा कि इसके तमिल नाम ‘पोंगु’ का अर्थ है। यह जीवन का उल्लास है जो धान के खेत से निकलकर हर घर में समृद्धि बनकर छलक उठता है। यह वह समय है जब किसान अपनी मेहनत का फल पाते हैं, और वे इस खुशी को अकेले नहीं, बल्कि सूर्य देव, वर्षा के देवता इंद्र, और अपने जीवन के अभिन्न साथी – पशुधन – के साथ बांटते हैं.
यह त्योहार विशेष रूप से तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है, लेकिन इसका संदेश सार्वभौमिक है: प्रकृति का सम्मान करो, उसके प्रति कृतज्ञ रहो, और अपने समुदाय के साथ खुशियाँ बांटो. यह मकर संक्रांति के साथ मेल खाता है, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जो उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है – यानी सूर्य का उत्तर दिशा की ओर छह महीने का सफर. यह शीतकालीन संक्रांति के अंत और लंबे, गर्म दिनों की शुरुआत का भी संकेत देता है.
यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों का समूह नहीं है; यह एक सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है जो सदियों से चली आ रही है. संगम युग (200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी) से इसका पता लगाया जा सकता है, जब इसे ‘थाई उन’ और ‘थाई निरादल’ के रूप में मनाया जाता था. कल्पना कीजिए, कितनी पीढ़ियों ने इसी तरह धान के नए चावल से पोंगल बनाया होगा, और उसी आस्था से सूर्य को धन्यवाद दिया होगा!
पोंगल 2026: तिथियाँ और शुभ मुहूर्त
जैसा कि मैंने पहले बताया, पोंगल 2026, 14 जनवरी से 17 जनवरी तक चलेगा. प्रत्येक दिन का अपना विशिष्ट महत्व और परंपराएँ हैं, जो इसे एक अनूठा अनुभव बनाती हैं। यह जानना महत्वपूर्ण है कि मुख्य थाई पोंगल 15 जनवरी, 2026 को होगा, लेकिन उत्सव 14 जनवरी से ही शुरू हो जाएगा.
* भोगी पोंगल: बुधवार, 14 जनवरी 2026
* थाई पोंगल (सूर्य पोंगल): गुरुवार, 15 जनवरी 2026
* मट्टू पोंगल: शुक्रवार, 16 जनवरी 2026
* कानूम पोंगल: शनिवार, 17 जनवरी 2026
सूर्य संक्रांति का क्षण, यानी जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा, 14 जनवरी 2026 को दोपहर 03:13 बजे होगा. यह वह शुभ समय है जिसके बाद मुख्य पोंगल व्यंजन पकाना शुरू करना सबसे अच्छा माना जाता है.
पोंगल के चार दिन: हर दिन एक नई कहानी
पोंगल कोई एक दिन का उत्सव नहीं है; यह चार दिनों का एक महाकाव्य है, जहाँ हर दिन अपनी एक अलग भूमिका निभाता है। ये दिन हमें सिखाते हैं कि कैसे अतीत को सम्मान दें, वर्तमान का जश्न मनाएँ और भविष्य के लिए आशा रखें।
पोंगल के त्योहार का पहला दिन, भोगी पोंगल, ‘पुराने को जलाकर नए का स्वागत’ करने का प्रतीक है. यह मुझे हमेशा एक तरह की सफाई और नवीनीकरण का एहसास कराता है, न केवल घर की, बल्कि मन की भी। इस दिन, लोग अपने घरों की गहन सफाई करते हैं, पुराने और अनुपयोगी सामानों को इकट्ठा करते हैं, और उन्हें अलाव (भोगी मंटालु) में जला देते हैं. यह एक प्रतीकात्मक कार्य है, जो हमें पुरानी आदतों, विचारों और नकारात्मकता को त्यागने के लिए प्रेरित करता है, ताकि हम नए साल और नई शुरुआत के लिए तैयार हो सकें।
बचपन में मुझे याद है, कैसे हम सब मिलकर घर का हर कोना साफ करते थे, और फिर शाम को अलाव के चारों ओर इकट्ठा होकर गाने गाते और नाचते थे। वह खुशी और एकजुटता का एक अद्भुत अनुभव था। यह दिन वर्षा के देवता, इंद्र देव को समर्पित है, जो अच्छी फसल के लिए वर्षा प्रदान करते हैं. घरों को आम के पत्तों, फूलों और रंगीन कोलम (रंगोली) से सजाया जाता है, जो समृद्धि और शुभता को आमंत्रित करते हैं.
यह पोंगल का सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य दिन है, जिसे सूर्य पोंगल के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन, हम सीधे सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं, जो जीवन और फसल के स्रोत हैं। कल्पना कीजिए, सुबह-सुबह, जब सूरज की पहली किरणें धरती को छूती हैं, परिवार के सभी सदस्य नए पारंपरिक कपड़े पहनकर घर के बाहर इकट्ठा होते हैं। आँगन में, एक नए मिट्टी के बर्तन में, ताजे कटे हुए धान के चावल, मूंग दाल, गुड़ और दूध को एक साथ पकाया जाता है. यह व्यंजन ‘सकराई पोंगल’ (मीठा पोंगल) कहलाता है।
सबसे रोमांचक क्षण वह होता है जब दूध उबलकर बर्तन से बाहर छलकने लगता है। इस पल, हर कोई खुशी से “पोंगालो पोंगल!” चिल्लाता है. यह समृद्धि और प्रचुरता का प्रतीक है, यह दर्शाता है कि हमारा जीवन भी इसी तरह खुशियों और धन से छलक उठेगा। बर्तन के चारों ओर ताजी हल्दी और गन्ने के डंठल बांधे जाते हैं, जो शुभता और फसल का प्रतीक हैं. फिर, इस पवित्र सकराई पोंगल को सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, साथ में गन्ना, नारियल और केले भी चढ़ाए जाते हैं. यह केवल एक प्रसाद नहीं, बल्कि हमारी कृतज्ञता का एक गहरा प्रतीक है।
पोंगल का तीसरा दिन हमारे उन मूक सेवकों को समर्पित है जिनके बिना कृषि असंभव है – हमारे प्यारे पशुधन, विशेष रूप से गाय और बैल. यह दिन मुझे हमेशा इस बात की याद दिलाता है कि प्रकृति के साथ-साथ हमें उन सभी जीवों का भी सम्मान करना चाहिए जो हमारे जीवन को आसान बनाते हैं।
इस दिन, पशुओं को स्नान कराया जाता है, उनके सींगों को चमकीले रंगों से रंगा जाता है, और उन्हें फूलों की मालाएँ, घंटियाँ और मोतियों से सजाया जाता है. यह दृश्य इतना मनमोहक होता है कि आप बस देखते रह जाएँगे! उन्हें विशेष भोजन खिलाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है, उनके अथक परिश्रम के लिए धन्यवाद दिया जाता है. तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में, इस दिन ‘जल्लीकट्टू’ जैसे पारंपरिक बैल-दौड़ या बैल-वशीकरण खेल भी आयोजित किए जाते हैं, जो साहस और कौशल का प्रदर्शन करते हैं. हालाँकि, यह खेल अपनी सुरक्षा चिंताओं के कारण अक्सर चर्चा में रहता है।
मट्टू पोंगल हमें मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध की याद दिलाता है, जहाँ हर जीव का अपना महत्व है।
पोंगल के चार दिवसीय उत्सव का अंतिम दिन कानूम पोंगल है. यह दिन मुझे हमेशा रिश्तों की गर्माहट और सामुदायिक मेलजोल की याद दिलाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, सामाजिक संबंधों को मजबूत करना और मेलजोल बढ़ाना है.
लोग एक-दूसरे के घरों पर जाते हैं, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं, और स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हैं. यह ‘रक्षा बंधन’ की तरह भी होता है, जहाँ बहनें अपने भाइयों की भलाई के लिए प्रार्थना करती हैं और उन्हें विशेष भोजन परोसती हैं. कई जगहों पर, महिलाएं कौवों को चावल और अन्य भोजन अर्पित करती हैं, यह मानते हुए कि यह उनके भाइयों की समृद्धि सुनिश्चित करेगा. पार्क, समुद्र तट और अन्य सार्वजनिक स्थान लोगों की भीड़ से गुलजार रहते हैं, जो उत्सव का आनंद ले रहे होते हैं। पारंपरिक लोक नृत्य जैसे कुम्मी और कोलाट्टम भी इस दिन का हिस्सा होते हैं. यह एक सुंदर समापन है, जो हमें बताता है कि त्योहार केवल अनुष्ठानों तक सीमित नहीं होते, वे हमें एक-दूसरे के करीब भी लाते हैं।
पोंगल क्यों मनाया जाता है? गहरे अर्थों की पड़ताल
पोंगल केवल एक त्योहार नहीं है; यह एक दर्शन है, जो हमें सिखाता है कि जीवन में कृतज्ञता, कड़ी मेहनत और साझा खुशियाँ कितनी महत्वपूर्ण हैं। इसके पीछे कई गहरे कारण हैं:
* फसल का आभार: सबसे प्राथमिक कारण यह है कि यह एक फसल उत्सव है. किसान साल भर कड़ी मेहनत करते हैं, और जब उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलता है, तो वे प्रकृति और सूर्य देव को धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने उन्हें प्रचुर फसल दी। यह उनकी आजीविका का उत्सव है।
* सूर्य देव का सम्मान: सूर्य जीवन का दाता है। उसकी ऊर्जा के बिना, फसलें नहीं उग सकतीं, और पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है। पोंगल सूर्य देव के प्रति हमारी गहरी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है.
* पशुधन की भूमिका: कृषि में पशुओं की भूमिका को कभी कम नहीं आँका जा सकता। बैल खेतों को जोतते हैं, गायें दूध देती हैं। मट्टू पोंगल हमें इन वफादार साथियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है.
* नवीनीकरण और नई शुरुआत: भोगी पोंगल हमें पुराने को त्यागने और नए को अपनाने का संदेश देता है. यह आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तरह से सफाई का प्रतीक है, ताकि हम सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ सकें।
* सामुदायिक भावना: पोंगल परिवारों और समुदायों को एक साथ लाता है. यह मेलजोल, उपहारों का आदान-प्रदान और एकजुटता का समय है। यह हमें याद दिलाता है कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
* पौराणिक कथाएँ: पोंगल से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ भी हैं। एक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपने बैल बसवा को धरती पर जाकर मनुष्यों को प्रतिदिन स्नान करने और तेल मालिश करने का संदेश देने को कहा। लेकिन बसवा ने गलती से कहा कि उन्हें प्रतिदिन खाना चाहिए और महीने में एक बार स्नान करना चाहिए। क्रोधित होकर, शिव ने बसवा को शाप दिया कि वह हमेशा धरती पर रहेगा और मनुष्यों के लिए खेत जोतेगा. यह कथा हमें बैलों के महत्व को समझाती है। एक अन्य कथा इंद्र और कृष्ण से भी जुड़ी है.
पोंगल कैसे मनाएँ: परंपराएँ और व्यंजन
पोंगल मनाने का तरीका बहुत ही पारंपरिक और आनंदमय होता है। अगर आप इस उत्सव का हिस्सा बनना चाहते हैं या अपने घर पर ही इसका अनुभव करना चाहते हैं, तो यहाँ कुछ खास बातें हैं:
घर की सजावट और सफाई
त्योहार से पहले, घर की साफ-सफाई करना और उसे सजाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है. आम के पत्ते, हल्दी के पौधे और रंगीन कोलम (चावल के आटे से बनी रंगोली) से घर को सजाया जाता है. ये सजावटें न केवल घर को सुंदर बनाती हैं, बल्कि शुभता और समृद्धि को भी आकर्षित करती हैं।
पारंपरिक वेशभूषा
इस अवसर पर नए कपड़े पहनने का रिवाज है. महिलाएं पारंपरिक साड़ियाँ पहनती हैं, और पुरुष धोती-कुर्ता या शर्ट-लुंगी में नजर आते हैं। यह उत्सव की भावना को बढ़ाता है और सामुदायिक पहचान को मजबूत करता है।
पोंगल व्यंजन: स्वाद और परंपरा का संगम
पोंगल का नाम ही एक स्वादिष्ट व्यंजन से आता है, और यह त्योहार बिना इसके अधूरा है! मुख्य रूप से दो प्रकार के पोंगल बनाए जाते हैं: सकराई पोंगल (मीठा) और वेन पोंगल (नमकीन)।
#### 1. सकराई पोंगल (मीठा पोंगल) – समृद्धि का स्वाद
यह पोंगल का सबसे प्रतिष्ठित व्यंजन है, जो उत्सव के दूसरे दिन सूर्य देव को चढ़ाया जाता है.
सामग्री:
* नया चावल: 1 कप
* मूंग दाल (छिलके वाली): ½ कप
* गुड़: 1.5 कप (स्वादानुसार)
* दूध: 2 कप
* पानी: 3 कप
* घी: ¼ कप
* काजू: 10-12
* किशमिश: 10-12
* हरी इलायची पाउडर: 1 चम्मच
* लौंग: 2-3
* सूखा नारियल (कद्दूकस किया हुआ): ¼ कप (वैकल्पिक)
बनाने की विधि:
1. दाल और चावल तैयार करें: मूंग दाल को हल्का भून लें जब तक कि उसमें से खुशबू न आने लगे। चावल और भुनी हुई दाल को धोकर अलग रख दें।
2. चावल और दाल पकाएँ: एक भारी तले वाले बर्तन या प्रेशर कुकर में दूध और पानी गरम करें। जब यह उबलने लगे, तो धुले हुए चावल और दाल डालें। धीमी आँच पर तब तक पकाएँ जब तक कि चावल और दाल अच्छी तरह से पक कर नरम न हो जाएँ। अगर प्रेशर कुकर का उपयोग कर रहे हैं, तो 3-4 सीटी आने तक पकाएँ।
3. गुड़ का सिरप: एक अलग पैन में गुड़ और थोड़ा पानी (लगभग ¼ कप) डालकर गरम करें। गुड़ के पूरी तरह घुल जाने तक पकाएँ, फिर इसे छान लें ताकि अशुद्धियाँ निकल जाएँ।
4. तड़का तैयार करें: एक छोटे पैन में घी गरम करें। काजू और किशमिश डालकर सुनहरा होने तक भूनें, फिर लौंग और कद्दूकस किया हुआ नारियल (यदि उपयोग कर रहे हैं) डालकर कुछ सेकंड के लिए भूनें.
5. मिलाना: पके हुए चावल-दाल के मिश्रण में छना हुआ गुड़ का सिरप और इलायची पाउडर डालें। अच्छी तरह मिलाएँ और धीमी आँच पर 5-7 मिनट तक पकाएँ, जब तक कि मिश्रण गाढ़ा न हो जाए और स्वाद एक साथ मिल न जाएँ।
6. अंतिम स्पर्श: तैयार तड़के को पोंगल में डालें और अच्छी तरह मिलाएँ। गर्मागरम सकराई पोंगल परोसें।
#### 2. वेन पोंगल (नमकीन पोंगल) – एक आरामदायक नाश्ता
यह एक स्वादिष्ट और पौष्टिक नमकीन व्यंजन है, जिसे अक्सर नाश्ते में खाया जाता है.
सामग्री:
* चावल: 1 कप
* मूंग दाल (छिलके वाली): ½ कप
* पानी: 4 कप
* घी: 3-4 बड़े चम्मच
* काली मिर्च (कुटी हुई): 1 चम्मच
* जीरा: 1 चम्मच
* अदरक (कद्दूकस किया हुआ): 1 इंच
* हरी मिर्च: 2 (बीच से चीरा हुआ)
* करी पत्ता: 8-10
* हींग: एक चुटकी
* काजू: 5-6 (वैकल्पिक)
* नमक: स्वादानुसार
बनाने की विधि:
1. दाल और चावल पकाएँ: चावल और मूंग दाल को धो लें। प्रेशर कुकर में चावल, दाल, पानी और नमक डालकर 3-4 सीटी आने तक पकाएँ, जब तक कि वे नरम और थोड़े मैशी न हो जाएँ।
2. तड़का तैयार करें: एक पैन में घी गरम करें। जीरा और कुटी हुई काली मिर्च डालें। जब जीरा चटकने लगे, तो कद्दूकस किया हुआ अदरक, हरी मिर्च, करी पत्ता और हींग डालें. यदि काजू का उपयोग कर रहे हैं, तो उन्हें भी इसी समय डालकर सुनहरा होने तक भूनें।
3. मिलाना: तैयार तड़के को पके हुए चावल और दाल के मिश्रण में डालें। अच्छी तरह मिलाएँ। यदि आवश्यक हो, तो थोड़ा गर्म पानी डालकर वांछित स्थिरता प्राप्त करें।
4. परोसना: गर्मागरम वेन पोंगल को नारियल की चटनी और सांभर के साथ परोसें.
पोंगल का त्योहार सिर्फ खाने-पीने और नाचने-गाने तक ही सीमित नहीं है। यह हमें कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश देता है:
* कृतज्ञता: हमें उन सभी चीजों के प्रति आभारी होना चाहिए जो हमारे जीवन को संभव बनाती हैं – सूर्य, वर्षा, भूमि, और पशु।
* नवीनीकरण: पुराने को छोड़कर नए को अपनाना, चाहे वह भौतिक हो या वैचारिक, जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
* सामुदायिक सद्भाव: त्योहार हमें एक साथ लाते हैं, हमारी जड़ों से जोड़ते हैं, और हमें यह एहसास दिलाते हैं कि हम एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं।
* साधारण जीवन का सम्मान: यह त्योहार कृषि और ग्रामीण जीवन के सरल, लेकिन गहरे महत्व को उजागर करता है।
आज की भागदौड़ भरी दुनिया में, जहाँ हम अक्सर अपनी जड़ों से कट जाते हैं, पोंगल जैसे त्योहार हमें रुककर सोचने का मौका देते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी समृद्धि प्रकृति के साथ हमारे संबंध में निहित है, और हमारी खुशी हमारे प्रियजनों के साथ साझा करने में है।
निष्कर्ष: पोंगालो पोंगल!
पोंगल 2026, 14 जनवरी से 17 जनवरी तक, एक बार फिर हमें इस शाश्वत सत्य की याद दिलाएगा। यह सिर्फ तमिलनाडु का त्योहार नहीं, बल्कि पूरे भारत और दुनिया भर में फैले तमिल समुदाय की आत्मा का उत्सव है. यह एक ऐसा समय है जब हर घर में नई फसल की खुशबू फैलती है, बच्चे खुशी से झूमते हैं, और बड़े-बुजुर्ग आशीर्वाद देते हैं।
तो, अगली बार जब आप जनवरी के मध्य में हों, तो इस अद्भुत त्योहार के बारे में सोचें। शायद आप भी अपने घर में थोड़ा पोंगल पकाएँ, या कम से कम प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करें। क्योंकि अंततः, पोंगल का मूल संदेश यही है: जीवन की प्रचुरता का जश्न मनाना और उसके प्रति हमेशा आभारी रहना। पोंगालो पोंगल! समृद्धि और खुशियों का यह उत्सव आपके जीवन को भी आलोकित करे।
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❓ पोंगल 2026 से जुड़े सामान्य प्रश्न (Pongal 2026 FAQs in Hindi)
•पोंगल 2026 कब है?
उत्तर: पोंगल 2026 का उत्सव 14 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया जाएगा। यह चार दिवसीय त्योहार तमिलनाडु और दुनिया भर में तमिल समुदाय द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
•पोंगल क्यों मनाया जाता है?
उत्तर: पोंगल मुख्य रूप से एक फसल उत्सव (Harvest Festival) है, जो सूर्य देव, प्रकृति और कृषि में सहायक पशुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। यह अच्छी फसल और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
•पोंगल के चार दिन कौन से हैं और उनका क्या महत्व है?
उत्तर: पोंगल के चार दिन इस प्रकार हैं –
भोगी पोंगल: पुराने का त्याग और नए का स्वागत।
थाई पोंगल: मुख्य दिन, इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है।
मट्टू पोंगल: इस दिन पशुधन का सम्मान किया जाता है।
कानूम पोंगल: पारिवारिक मिलन और संबंधों के नवीनीकरण का दिन।
•सकराई पोंगल और वेन पोंगल में क्या अंतर है?
उत्तर:सकराई पोंगल एक मीठा व्यंजन है जो चावल, मूंग दाल, गुड़ और दूध से बनता है।
वेन पोंगल एक नमकीन व्यंजन है जिसमें चावल, मूंग दाल और मसालों का तड़का लगाया जाता है।


