Narasimha Dwadashi 2024: “नरसिंह द्वादशी कब है?” जाने नरसिंह द्वादशी की महत्व,लाभ,पूजन विधि और नरसिंह द्वादशी से जुड़ी कथा

Narasimha Dwadashi 2024:संसार में जब-जब आसुरी शक्तियों ने अहंकार वश देवों और मनुष्यों पर अत्याचार करना शुरू किया, तब-तब भगवान विष्णु ने अलग-अलग रूप में अवतार लेकर उनका अंत किया। भगवान का नरसिंह अवतार भी उन्हीं अवतारों में से एक है, जो उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध करने एवं भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए लिया था। भगवान के इसी स्वरूप को समर्पित है नरसिंह द्वादशी का पावन पर्व।

Narasimha Dwadashi 2024

इस लेख में जानिए

• कब है नरसिंह द्वादशी?

• नरसिंह द्वादशी का महत्व

• नरसिंह द्वादशी व्रत के लाभ

• नरसिंह द्वादशी पूजन विधि

• नरसिंह द्वादशी से जुड़ी पौराणिक कथा

वर्ष 2024 में कब है नरसिंह Narasimha द्वादशी?

शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन ही भगवान विष्णु ‘नरसिंह स्वरूप’ में अवतरित हुए थे। अत हर वर्ष होली से लगभग 3-4 दिन पहले द्वादशी तिथि पर ‘नरसिंह द्वादशी’ मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 21 मार्च, गुरुवार को पड़ रहा है।

नरसिंह Narasimha द्वादशी का महत्व

विष्णु पुराण के अनुसार- भगवान श्री हरि का नरसिंह अवतार उनके दशावतारों में से चौथा स्वरूप माना गया है। ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु एक खंभे को चीरते हुए प्रकट हुए थे। उनका आधा शरीर मनुष्य का और आधा शरीर शेर का था। इसी कारण भगवान के इस अवतार को ‘नरसिंह अवतार’ कहा जाता है।

इसके साथ ही भगवान नरसिंह ने प्रह्लाद से कहा था- जो मनुष्य ‘नरसिंह द्वादशी’ पर मेरे इस नरसिंह अवतार का स्मरण करते हुए पवित्र मन से पूजा व व्रत करेगा, उसे जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलेगी और समस्त मनोकामनाएं पूरी होंगी।

नरसिंह  Narasimha द्वादशी के लाभ

जो जातक नरसिंह द्वादशी का व्रत करते हैं, उन्हें जीवन में सांसारिक सुख मिलता है, और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।

• नरसिंह द्वादशी के दिन आस्थापूर्वक भगवान नरसिंह का स्मरण करने वाले भक्त को अपार धन-संपत्ति मिलती है।

• नरसिंह द्वादशी का व्रत एवं विधिवत् पूजन करने से ब्रह्महत्या जैसा महापाप भी मिट जाता है।

• ऐसी मान्यता है कि, जो जातक इस दिन नरसिंह देव के मंत्र का जाप करते हैं, उनके समस्त दुखों निवारण होता है।

• नरसिंह द्वादशी पर सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों की भगवान नरसिंह ‘प्रह्लाद’ के समान रक्षा करते हैं।

नरसिंह Narasimha द्वादशी पूजन विधि

• नरसिंह द्वादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म व स्नान करें।

• इसके बाद स्वच्छ कपड़े पहनें और भगवान नरसिंह का स्मरण कर ‘नरसिंह द्वादशी’ व्रत का संकल्प लें।

• इस दिन पूजा के लिए फल, फूल, धूप, दीप, अगरबत्ती, मेवा, कुमकुम, केसर, नारियल, अक्षत और पीतांबर अवश्य एकत्र करें।

• अब श्री हरि के नरसिंह स्वरूप की विधिवत् पूजा करें।

• नरसिंह देव को प्रसन्न करने के लिए इस मंत्र का जाप अवश्य करें- ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम् ।।

• इस दिन भक्त प्रहलाद और नरसिंह की कथा का पाठ करें या सुनें।

नरसिंह Narasimha द्वादशी से जुड़ी कथा

पुराणों में वर्णन मिलता है कि प्राचीन काल में एक अत्यंत ज्ञानी ऋषि थे, जिनका नाम था कश्यप। यद्यपि उनकी कई पत्नियां थीं,

लेकिन दिति एवं अदिति सबसे प्रमुख थीं। इस प्रकार अदिति के गर्भ से देवता और दिति के गर्भ से दैत्यों की उत्पत्ति हुई। दिति के दो पुत्र हुए- पहला हिरण्याक्ष और दूसरा हिरण्यकश्यप। ये दोनों ही आसुरी प्रवृत्ति के थे।

भगवान विष्णु ने वराह अवतार में पृथ्वी की रक्षा के लिए हिरण्याक्ष का वध कर दिया था, ऐसे में अपने भाई की मृत्यु से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रतिशोध लेने का संकल्प लिया। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की, और उन्हें प्रसन्न कर अजर-अमर होने का वरदान मांगा।

उसने कहा, भगवन्! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि न मैं दिन में मरूं, न रात में। न पृथ्वी पर मरूं, न आकाश में, न पाताल में। न देव से मरूं न दानव से। इतना सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- तथास्तु हिरण्यकश्यप !

ये वरदान पाकर हिरण्यकश्यप ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया, जिसमें देवता पराजित हो गए। अजेय होने के कारण हिरण्यकश्यप तीनों लोकों का स्वामी बन गया और उसे अपनी शक्ति पर इतना अहंकार हो गया कि वह स्वयं को सर्व शक्तिमान समझने लगा।

अहंकार में अंधे हो चुके हिरण्यकश्यप का अत्याचार बढ़ने लगा। कुछ समय पश्चात् उसकी पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया प्रह्लाद। प्रह्लाद का स्वभाव अपने पिता से विपरीत, साधु प्रवृत्ति का था। वो भगवान श्री हरि की भक्ति में बेहद विश्वास रखता था।

प्रह्लाद जब थोड़ा बड़ा हुआ तो हिरण्यकश्यप ने उसे आदेश दिया कि वो केवल अपने पिता की पूजा करे, परंतु प्रह्लाद ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में विष्णुभक्ति से अपने पुत्र का मन हटाने और स्वयं के प्रति आस्था जगाने के लिए हिरण्यकश्यप ने अथक प्रयत्न किए, लेकिन जब सब व्यर्थ दिखने लगा तो हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को तरह तरह से प्रताड़ित करने लगा। और एक समय ऐसा आया जब उसने अपने पुत्र की हत्या करने का निर्णय लिया।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कभी ऊँचे पर्वत से धकेला, तो कभी अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर उसे अग्नि में जलाने का प्रयत्न किया। किंतु श्री विष्णु हर बार अपने इस परम भक्त की रक्षा करते थे। प्रह्लाद पर भगवान की अद्भुत कृपा देखकर हिरण्यकश्यप की प्रजा भी भगवान श्री विष्णु में आस्था रखने लगी।

ऐसे में हिरण्यकश्यप क्रोध की ज्वाला में भड़क उठा, और भरी सभा के बीच अपने पुत्र को मृत्युदंड देने का निश्चय किया। उसने प्रह्लाद को एक खंभे से बांधकर कहा- ‘तू कहता है कि तेरा विष्णु कण-कण में है! यदि ऐसा है, तो तेरा भगवान इस खंभे में भी होगा!

तो तू आज अपनी रक्षा के लिए अपने भगवान को पुकार! इतना कहकर जैसे ही हिरण्यकश्यप ने अपनी गदा से खंभे पर प्रहार किया, उसी क्षण प्रह्लाद ने भगवान विष्णु का स्मरण किया।

स्मरण करते ही गोधूलि के समय खंभे को चीरते हुए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए, जिसमें उनका आधा शरीर मनुष्य का था और आधा शरीर शेर का। भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को अपने नाखून से फाड़कर वध कर दिया।

इस प्रकार जब हिरण्यकश्यप का वध हुआ तो न दिन था न रात, बल्कि वो गोधूलि का समय था। उसे वरदान प्राप्त था कि वो पृथ्वी, आकाश, पाताल कहीं भी मारा नहीं जा सकेगा, इस कारण भगवान ने अपनी जांघ पर रखकर उसका वध किया। वरदान के अनुसार न उसे देव मार सकते थे, न दैत्य, इसलिए श्री हरि ने नरसिंह अवतार लेकर उसे मृत्युदंड दिया।

तो यह थी नरसिंह द्वादशी से जुड़ी जानकारी, हम आशा करते हैं कि आपका व्रत सफल हो।

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