जानिए मोहिनी एकादशी 2025 की तारीख, व्रत विधि, कथा, धार्मिक महत्व और इस दिन किए जाने वाले प्रमुख त्याग और नियमों को विस्तार से, एक सरल और भावनात्मक लेख के माध्यम से।
मोहिनी एकादशी 2025 कब है?
मोहिनी एकादशी 2025 में 9 मई, शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह व्रत वैषाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है और भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की स्मृति में मनाया जाता है।
मोहिनी एकादशी का महत्व
मोहिनी एकादशी को “मोह और पापों से मुक्ति दिलाने वाली एकादशी” कहा गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके देवताओं की रक्षा की थी। इस व्रत को करने से मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मोहिनी एकादशी व्रत विधि
व्रत की पूर्व रात्रि (8 मई को):
- केवल सात्विक भोजन करें
- व्रत का संकल्प लें और ईश्वर का ध्यान करें
व्रत का दिन (9 मई को):
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें
- भगवान विष्णु की पूजा करें – तुलसी पत्र, पीले पुष्प, पीला वस्त्र अर्पित करें
- दिनभर व्रत रखें – निर्जल व्रत सबसे श्रेष्ठ माना गया है, नहीं तो फलाहार करें
- विष्णु सहस्रनाम, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें
- मोहिनी एकादशी की कथा सुनें
- किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान दें
द्वादशी तिथि (10 मई को):
- प्रातः स्नान के बाद व्रत का पारण करें
- अन्न, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें
व्रत में प्रमुख त्याग क्या-क्या करें? (सभी व्रतियों के लिए अनिवार्य नियम)
- झूठ न बोलें
- क्रोध, वाद-विवाद और कटु भाषा से बचें
- तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस, शराब) का त्याग करें
- दूसरों को अपमानित या दुखी न करें
- निर्जल व्रत करने में असमर्थ हों तो फलाहार करें, पर अन्न से परहेज़ करें
- मानसिक रूप से भी संयमित रहें – मन, वाणी और कर्म में पवित्रता रखें
मोहिनी एकादशी की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले भद्रावती नामक नगर में एक राजा था—धर्मात्मा, प्रजापालक, न्यायप्रिय। उसके राज्य में एक सुदर्शन नामक व्यापारी रहता था जिसके पाँच पुत्र थे। सबसे छोटा पुत्र, धृष्टबुद्धि, पथभ्रष्ट, अधर्मी और पापी था। वह शराब पीता, वेश्यागमन करता, चोरी करता और माता-पिता का अपमान करता।
जब उसकी करतूतें असहनीय हो गईं, तो पिता ने उसे घर से निकाल दिया। भूखा-प्यासा वह वन-वन भटकता रहा। एक दिन वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम पहुँचा। वहां उसने रोते हुए अपने सारे पाप स्वीकार किए और कहा, “अब मेरा उद्धार संभव नहीं।”
महर्षि ने करुणा से कहा, “वत्स, वैषाख शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस दिन व्रत रखो, भगवान विष्णु की पूजा करो, सच्चे हृदय से पश्चात्ताप करो। तुम्हारे पाप भस्म हो जाएंगे।”
धृष्टबुद्धि ने वह व्रत पूरी श्रद्धा से किया। व्रत के प्रभाव से उसके पाप कटे और वह तपस्वी बन गया। मृत्यु के बाद वह विष्णुलोक को प्राप्त हुआ।
आध्यात्मिक और मानसिक लाभ
- आत्मचिंतन का अवसर मिलता है
- मोह, लोभ, क्रोध जैसे विकारों से मुक्ति मिलती है
- उपवास शरीर को डिटॉक्स करता है और मन को शांति देता है
- भगवत भक्ति से आत्मा को बल मिलता है
- पिछले पापों का प्रायश्चित संभव होता है
मोहिनी एकादशी मंत्र और पाठ
-
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
- विष्णवे नमः
- शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशम्… (विष्णु स्तुति)
भगवान विष्णु का मोहिनी रूप न केवल मायावी था, बल्कि यह दर्शाता है कि सच्चे धर्म की रक्षा के लिए ईश्वर किसी भी रूप में आ सकते हैं। मोहिनी एकादशी हमें यह सिखाती है कि मोह और माया के बंधन को छोड़कर आत्मा की शुद्धि ही वास्तविक विजय है।
निष्कर्ष
मोहिनी एकादशी केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवन सुधारने का अवसर है। यह दिन हमें विकारों से मुक्त होकर, ईश्वर के निकट जाने का मार्ग देता है। व्रत और भक्ति के माध्यम से हम अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं।
यदि आप इस मोहिनी एकादशी को सच्चे हृदय से मनाते हैं, तो निश्चय ही आपका जीवन सकारात्मक परिवर्तन की ओर अग्रसर होगा।