Meru Trayodashi 2025:जैन धर्म में एक ऐसा व्रत है जिसे करने से संसार के सभी सुखों के साथ-साथ आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। उस व्रत का नाम है मेरू त्रयोदशी। ऐसा कहा जाता है, कि जो भी व्यक्ति यह व्रत सच्चे मन से करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मगर क्या आप जानते हैं, कि ऐसा क्यों है? अगर नहीं, तो आज हम इस लेख में हम आपको इस व्रत से जुड़ी सभी जानकारी देगे।
मेरू त्रयोदशी Meru Trayodashi 2025 कब है, शुभ मुहूर्त
मेरू त्रयोदशी जैन धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस साल मेरू त्रयोदशी का शुभ मुहूर्त 27 जनवरी 2025, सोमवार को है।
Meru Trayodashi 2025:मेरू त्रयोदशी कब और क्यों मनाते हैं ?
जैन कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष मेरू त्रयोदशी पौश मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन मनाई जाती है। जैन धर्म का यह पर्व पिंगल कुमार की याद में मनाया जाता है। मेरू त्रयोदशी के दिन ही जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
तीर्थ की स्थापना करने वालों को तीर्थकर कहा जाता है। जैन धर्म में तीर्थकर की स्थापना मोक्ष प्राप्त करने के लिए की गई थी। भगवान ऋषभदेव को आदिनाथ भगवान भी कहते हैं। आदि का मतलब ‘प्रथम’ होता है और वह प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने धर्म जैन धर्म में तीर्थंकरों की रचना की थी।
Meru Trayodashi 2025: मेरू त्रयोदशी का महत्व और व्रत पुजन के लाभ क्या हैं?
मेरू त्रयोदशी का पर्व पिंगल कुमार की याद में मनाया जाता है। जैन धर्म के अनुसार, पिंगल कुमार ने पांच मेरू का संकल्प लिया था। इस दौरान उन्होंने 20 नवाकारी के साथ ओम रहीम् श्रीम् आदिनाथ पारंगत्या नम मंत्र का जाप किया था।
मान्यता है, कि मेरु त्रयोदशी के दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगर भक्त 5 मेरू का संकल्प पूरा करे, तो वह पूर्ण रूप से मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा, मेरु त्रयोदशी के दिन भगवान ऋषभदेव के निर्वाण प्राप्त करने का दिन भी है, जिस कारण इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है
Meru Trayodashi 2025:इस दिन पूजा कैसे करें
मेरु त्रयोदशी के दिन निर्जल व्रत रखा जाता है। इसके साथ ही, जातक भगवान ऋषभदेव की मूर्ति से सामने चांदी से बने 5 मेरू रखते हैं, जिसमें बीच में एक बड़ा मेरु रखा जाता है। इसके बाद, इन मेरु के चारों ओर छोटे-छोटे मेरू को रखा जाता है। फिर बीच में रखे बड़े मेरु के चारों ओर छोटे-छोटे मेरू के सामने स्वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है और भगवान ऋषभदेव की पूजा की जाती है।
मेरु त्रयोदशी के दिन पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है। जो लोग मेरु त्रयोदशी के दिन व्रत रखते हैं, उन्हें किसी मठवासी को दान देने या कोई पुण्य करने के बाद ही अपना व्रत खोलना चाहिए। दान-पुण्य करने के बाद ही व्रत पूरा और सिद्ध माना जाता है।
मान्यता है, कि इस दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को 13 महीने या 13 साल तक इस व्रत को जारी रखना होता है। इस दिन मंत्र का जाप करना बहुत शुभ माना जाता है।
Meru Trayodashi 2025:पौराणिक कथा
जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए ऋषभदेव ने कई क्षेत्रों की पैदल यात्रा की थी। उस दौरान पैदल यात्रा करते वक़्त उन्हें अष्टपद पर्वत मिला। इस पर्वत पर आदिनाथ भगवान ने एक काल्पनिक गुफा का निर्माण किया। ऋषभदेव ने यहां लंबे अरसे तक तपस्या की और आखिर में कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया।
तो यह थी जैन धर्म के प्रमुख त्योहार मेरू त्रयोदशी की जानकारी।
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