सर्दियों की ठिठुरन में जब सूरज की किरणें भी कुछ अलसाई सी लगती हैं, तब एक गर्माहट भरी उम्मीद, एक नई ऊर्जा और ढोल की थाप पर थिरकने का एक बेजोड़ न्योता लेकर आती है लोहड़ी! यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन के प्रति कृतज्ञता, प्रकृति के सम्मान और समुदाय के साथ जुड़ने का एक अनुपम अवसर है। मैं अक्सर सोचता हूँ, क्या कोई त्योहार इतना जीवंत और ऊर्जावान हो सकता है कि वह हमारी आत्मा तक को रोशन कर दे? लोहड़ी इसका जीता-जागता प्रमाण है। और हाँ, अगर आप सोच रहे हैं कि यह कब है, तो कैलेंडर में निशान लगा लीजिए – लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) को हम सब मिलकर इस उत्सव को मनाएंगे!
ज़रा कल्पना कीजिए: कड़ाके की ठंड में, जब रात अपने पूरे शबाब पर होती है, तब गाँव के बीचों-बीच या शहर के किसी खुले मैदान में लकड़ियों का एक विशाल ढेर दहक उठता है। उसकी लपटें आसमान को छूने लगती हैं और उसकी गर्माहट सिर्फ शरीर को नहीं, बल्कि मन को भी सुकून देती है। लोग उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा होते हैं, हाथों में मूंगफली, रेवड़ी और पॉपकॉर्न लिए हुए, और फिर शुरू होता है खुशियों का वह सिलसिला जो सिर्फ लोहड़ी पर ही देखा जा सकता है। यह सिर्फ एक अग्नि नहीं, यह विश्वास की अग्नि है, जो हमें याद दिलाती है कि हर अँधेरी रात के बाद एक सुनहरी सुबह आती है।
लोहड़ी 2026: नई उम्मीदों का आगाज़
जैसा कि मैंने पहले ही बताया, लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) को आ रही है। यह मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले मनाई जाती है, और इसका यह स्थान भी अपने आप में एक गहरा अर्थ समेटे हुए है। मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरायण होने का प्रतीक है, यानी जब सूर्य दक्षिणायन से उत्तर दिशा की ओर अपनी यात्रा शुरू करता है।
यह दिन बताता है कि अब दिन लंबे और रातें छोटी होने लगेंगी, और धीरे-धीरे सर्दी का प्रकोप कम होगा। लोहड़ी इसी परिवर्तन का स्वागत करती है – शीतकालीन संक्रांति के सबसे छोटे दिन के बाद, यह त्योहार हमें आने वाले लंबे, रोशन दिनों का संदेश देता है। यह सिर्फ एक कैलेंडर की तारीख नहीं, यह प्रकृति के चक्र का एक सुंदर उत्सव है, एक नई शुरुआत का बिगुल।
मेरे लिए, लोहड़ी हमेशा से एक ऐसा त्योहार रहा है जो हमें जड़ों से जोड़ता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहाँ हर कोई अपने मोबाइल में खोया रहता है, लोहड़ी हमें एक साथ लाती है। यह हमें याद दिलाती है कि वास्तविक खुशी स्क्रीन पर नहीं, बल्कि अपनों के साथ हँसने, गाने और नाचने में है। यह सिर्फ एक तारीख नहीं, यह एक भावना है, एक अनुभव है जिसे हर भारतीय ने कम से कम एक बार तो महसूस किया ही होगा।
लोहड़ी का इतिहास: सदियों पुरानी परंपरा की गूँज
लोहड़ी का इतिहास उतना ही समृद्ध और गहरा है जितनी इसकी अग्नि की लपटें। यह त्योहार केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके मूल में कई कहानियाँ, लोककथाएँ और परंपराएँ छिपी हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं।
कृषि और प्रकृति से जुड़ाव
सबसे पहले, लोहड़ी एक फसल उत्सव है। यह रबी की फसल, खासकर गेहूँ और जौ की कटाई से जुड़ा हुआ है। पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में, जहाँ लोहड़ी मुख्य रूप से मनाई जाती है, किसान अपनी मेहनत का फल देखकर खुश होते हैं। वे अग्नि देव को अपनी फसल का एक हिस्सा अर्पित करते हैं, यह मानते हुए कि अग्नि के माध्यम से उनकी प्रार्थनाएँ सीधे देवताओं तक पहुँचेंगी। यह एक तरह से प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का तरीका है – धरती माँ को धन्यवाद देना, जिन्होंने उन्हें भरपूर फसल दी। मुझे लगता है, यह कितना सुंदर है कि हम अपनी खुशियों को प्रकृति के साथ साझा करते हैं, है ना?
दुल्ला भट्टी की कहानी: एक लोकनायक का सम्मान
लोहड़ी की कहानियों में सबसे प्रसिद्ध दुल्ला भट्टी की कहानी है। दुल्ला भट्टी, जो मुगल सम्राट अकबर के समय में पंजाब में रहते थे, एक ऐसे लोकनायक थे जिन्होंने गरीब और असहाय लड़कियों को डाकुओं से बचाया और उनकी शादी करवाई। वह एक तरह के ‘रॉबिन हुड’ थे, जिन्होंने अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद की। लोहड़ी के गीत, विशेषकर “सुंदर मुंदरिये हो!” आज भी दुल्ला भट्टी की बहादुरी और परोपकारिता को याद करते हैं।
इन गीतों को गाते हुए बच्चे घर-घर जाकर लोहड़ी मांगते हैं, और उन्हें तिल, गुड़, मूंगफली और मिठाइयाँ दी जाती हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि त्योहार सिर्फ जश्न मनाने के लिए नहीं होते, बल्कि वे हमें उन मूल्यों और व्यक्तियों की याद दिलाते हैं जिन्होंने समाज के लिए कुछ अच्छा किया। यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि हमें भी दूसरों की मदद करनी चाहिए, भले ही हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों।
शीतकालीन संक्रांति का उत्सव
जैसा कि मैंने पहले बताया, लोहड़ी शीतकालीन संक्रांति के बाद मनाई जाती है। यह उस समय को चिह्नित करता है जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर वापस आता है, और दिन लंबे होने लगते हैं। अग्नि की पूजा अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि सबसे कठिन समय भी बीत जाता है और नई उम्मीदें हमेशा हमारे साथ होती हैं। यह एक तरह से जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकार करने और आगे बढ़ने का संदेश देता है।
लोहड़ी का महत्व: क्यों है यह इतना खास?
लोहड़ी सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, यह कई गहरे अर्थों और विश्वासों का संगम है। इसका महत्व सिर्फ मौज-मस्ती तक सीमित नहीं, बल्कि यह हमारे जीवन में कई सकारात्मक संदेश लेकर आता है।
नई शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक
लोहड़ी नई शुरुआत का प्रतीक है। जब किसान अपनी फसल काटते हैं, तो यह उनके लिए एक नए चक्र की शुरुआत होती है। वे पुरानी फसल को अलविदा कहते हैं और नई फसल के लिए तैयारी करते हैं। अग्नि में तिल, गुड़ और मूंगफली अर्पित करना एक तरह से समृद्धि की कामना है। यह माना जाता है कि अग्नि में अर्पित की गई ये चीजें देवताओं तक पहुँचती हैं और वे हमें और अधिक धन-धान्य का आशीर्वाद देते हैं। मेरे दादाजी हमेशा कहते थे, “लोहड़ी की आग में सिर्फ लकड़ियाँ नहीं जलतीं, उसमें हमारी पुरानी चिंताएँ भी जल जाती हैं और नई उम्मीदें पैदा होती हैं।”
सामुदायिक एकता और भाईचारा
लोहड़ी का सबसे खूबसूरत पहलू सामुदायिक एकता है। इस दिन परिवार, दोस्त और पड़ोसी एक साथ आते हैं। वे एक ही अग्नि के चारों ओर इकट्ठा होते हैं, एक साथ नाचते-गाते हैं और खुशियाँ मनाते हैं। यह त्योहार हमें सिखाता है कि हम सब एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं। मतभेद भुलाकर एक साथ आना और खुशियाँ साझा करना ही लोहड़ी का असली संदेश है। मुझे याद है, बचपन में हम अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर लोहड़ी मनाते थे, और उस दिन कोई भेदभाव नहीं होता था, बस प्यार और अपनत्व होता था।
पंजाब में, नवविवाहित जोड़ों और जिन घरों में नया शिशु जन्म लेता है, उनके लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। यह उनके जीवन में एक नई शुरुआत का प्रतीक है। नवविवाहित जोड़े अग्नि में आहुति देकर अपने सुखी दांपत्य जीवन की कामना करते हैं, और नवजात शिशु के लिए यह एक तरह का स्वागत समारोह होता है, जहाँ परिवार और दोस्त बच्चे के भविष्य के लिए आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा हमें परिवार के महत्व और जीवन के नए चरणों का उत्सव मनाने की प्रेरणा देती है।
प्रकृति के प्रति आभार
यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना सिखाता है। हम उन संसाधनों के लिए धन्यवाद देते हैं जो हमें जीवन देते हैं – सूर्य, अग्नि, धरती और फसलें। यह हमें याद दिलाता है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसके साथ सामंजस्य बिठाकर रहना चाहिए।
लोहड़ी का उत्सव अपने आप में एक अनुभव है, जो रंगों, ध्वनियों और सुगंधों से भरा होता है। यदि आप लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) पर इस त्योहार को मनाने की योजना बना रहे हैं, तो इन पारंपरिक तरीकों को अपनाकर आप इसे और भी यादगार बना सकते हैं।
1. लोहड़ी की पवित्र अग्नि: प्रकाश और ऊर्जा का स्रोत
लोहड़ी की शाम को, लकड़ियों और गोबर के उपलों का एक बड़ा ढेर तैयार किया जाता है। सूर्यास्त के बाद, इसे जलाया जाता है। यह अग्नि सिर्फ गर्माहट नहीं देती, यह एक ऊर्जा का स्रोत होती है। लोग अग्नि के चारों ओर इकट्ठा होते हैं और उसमें तिल, गजक, रेवड़ी, मूंगफली और पॉपकॉर्न अर्पित करते हैं। यह एक तरह से अग्नि देव को धन्यवाद देने और अपनी फसल का एक हिस्सा उन्हें समर्पित करने का तरीका है। कुछ लोग अग्नि में जल भी डालते हैं, यह मानते हुए कि यह समृद्धि लाता है।
2. पारंपरिक पकवान: स्वाद और सुगंध का संगम
लोहड़ी पर पारंपरिक पकवानों का अपना ही महत्व है। सरसों का साग और मक्के दी रोटी इस त्योहार का पर्याय हैं। इसके अलावा, तिल-गुड़ की गजक, रेवड़ी, मूंगफली और पॉपकॉर्न (फुल्ले) लोहड़ी की अग्नि में चढ़ाए जाते हैं और फिर प्रसाद के रूप में बांटे जाते हैं। ये पकवान न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि सर्दियों में शरीर को गर्माहट और ऊर्जा भी देते हैं। पिन्नी और लड्डू भी बनाए जाते हैं जो त्योहार की मिठास को और बढ़ा देते हैं। मुझे याद है, मेरी दादी के हाथ की बनी पिन्नी का स्वाद आज भी मेरी ज़ुबान पर है!
3. ढोल की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा: खुशियों की लहर
लोहड़ी की रात ढोल की थाप और पारंपरिक नृत्यों के बिना अधूरी है। पुरुष भांगड़ा करते हैं, जो ऊर्जा और उत्साह से भरा नृत्य है, वहीं महिलाएँ गिद्दा करती हैं, जो अधिक graceful और अभिव्यंजक होता है। ये नृत्य सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं होते, बल्कि ये समुदाय की भावना और सामूहिक खुशी को दर्शाते हैं। गीतों में दुल्ला भट्टी की कहानियाँ, प्यार, और जीवन के उत्सव का वर्णन होता है। यह एक ऐसा माहौल होता है जहाँ हर कोई अपने गम भुलाकर खुशी में डूब जाता है।
4. लोहड़ी के गीत और लोक कथाएँ
लोहड़ी के दौरान गाए जाने वाले गीत इस त्योहार की आत्मा हैं। बच्चे और बड़े मिलकर “सुंदर मुंदरिये हो!” जैसे गीत गाते हैं, जो दुल्ला भट्टी की कहानी से जुड़े हैं। इन गीतों के माध्यम से कहानियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती हैं। ये गीत हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं और हमारी सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं।
5. पतंगबाजी और मिलन समारोह
कुछ क्षेत्रों में, खासकर पंजाब में, लोहड़ी के अगले दिन पतंगबाजी का भी प्रचलन है, जो मकर संक्रांति से जुड़ा होता है। लोग दिन में पतंग उड़ाते हैं और शाम को फिर से एक साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं। परिवार और दोस्त एक-दूसरे के घरों पर जाकर लोहड़ी की शुभकामनाएँ देते हैं और मिठाइयाँ बांटते हैं।
समय के साथ, लोहड़ी मनाने के तरीकों में थोड़ा बदलाव आया है, लेकिन इसकी मूल भावना आज भी वही है। शहरों में, जहाँ लकड़ियाँ जलाना मुश्किल हो सकता है, लोग छोटे अलाव या गैस हीटर का उपयोग करके लोहड़ी का प्रतीक बनाते हैं। लोग अब थीम पार्टीज़ और सामुदायिक कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं, जहाँ पारंपरिक नृत्य और संगीत के साथ-साथ आधुनिक मनोरंजन भी शामिल होता है।
सोशल मीडिया ने भी लोहड़ी के उत्सव को एक नया आयाम दिया है। लोग अपने लोहड़ी समारोह की तस्वीरें और वीडियो साझा करते हैं, जिससे यह त्योहार वैश्विक स्तर पर पहुँचता है। हालांकि, इन बदलावों के बावजूद, लोहड़ी का मूल संदेश – एकजुटता, आभार और नई शुरुआत का उत्सव – आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी परंपराओं को आधुनिकता के साथ संतुलित करें। हम नए तरीकों से लोहड़ी मना सकते हैं, लेकिन हमें इसके पीछे के गहरे अर्थ और कहानियों को कभी नहीं भूलना चाहिए। यही हमें हमारी संस्कृति से जोड़े रखेगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी इन त्योहारों को जीवंत रखेगा।
लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) का पर्व हमें खुशियाँ और नई ऊर्जा देता है। इस अवसर पर, मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ। यह अग्नि आपके जीवन से सभी नकारात्मकताओं को जला दे और आपके घर में सुख, शांति और समृद्धि लाए।
* “लोहड़ी की अग्नि में जल जाए सभी गम, खुशियों से भर जाए आपका जीवन हरदम। लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) की हार्दिक शुभकामनाएँ!”
* “मक्के दी रोटी, सरसों दा साग, खुशियों दा त्योहार लोहड़ी, मुबारक हो आपको। लोहड़ी 2026 की बहुत-बहुत बधाई!”
* “इस लोहड़ी की पवित्र अग्नि आपके सभी सपनों को रोशन करे और आपको सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाए। लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) मुबारक!”
निष्कर्ष: लोहड़ी – जीवन का एक अनमोल उत्सव
लोहड़ी सिर्फ एक त्योहार नहीं, यह जीवन का एक अनमोल उत्सव है। यह हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना सिखाता है, हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है, और सबसे महत्वपूर्ण, हमें एकजुट होकर खुशियाँ मनाना सिखाता है। 13 जनवरी, 2026 को जब आप लोहड़ी की अग्नि के चारों ओर इकट्ठा होंगे, तो सिर्फ लकड़ियाँ जलती हुई नहीं दिखेंगी, बल्कि आपको विश्वास, उम्मीद और प्रेम की लपटें भी महसूस होंगी।
यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि जीवन में कितनी भी ठंड क्यों न हो, हमेशा एक ऐसी अग्नि होती है जो हमें गर्माहट दे सकती है। यह अग्नि हमारे रिश्तों की, हमारे विश्वास की, और हमारी साझा संस्कृति की है। तो आइए, इस लोहड़ी (13 जनवरी, 2026) पर, हम सब मिलकर इस खूबसूरत त्योहार का जश्न मनाएं, पुरानी बातों को भूलकर नई शुरुआत करें, और एक-दूसरे के साथ प्यार और खुशियाँ बांटें। क्योंकि आखिर में, यही तो जीवन का असली सार है, है ना?
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