नमस्ते दोस्तों! क्या आप जानते हैं, साल के अंत में एक ऐसा त्योहार आता है जो न सिर्फ हमारे घरों को रोशन करता है, बल्कि हमारे दिलों में भी भक्ति और आशा का दीप जलाता है? मैं बात कर रहा हूँ कार्तिकई दीपम की! यह दक्षिण भारत का एक ऐसा भव्य और हृदयस्पर्शी पर्व है, जिसकी चमक मुझे हर साल अपनी ओर खींच लेती है। इस बार, यानी 3 दिसंबर, 2025 को, जब तिरुवन्नामलाई की पवित्र अरुणाचल पहाड़ी पर महा दीपम प्रज्वलित होगा, तो उसकी लौ सिर्फ एक अग्नि नहीं होगी, बल्कि वह करोड़ों भक्तों की आस्था, ज्ञान और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक बनेगी।
यह सिर्फ दीपों का त्योहार नहीं है, यह एक गहन आध्यात्मिक अनुभव है, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है, पौराणिक कहानियों की याद दिलाता है और भगवान शिव व उनके पुत्र भगवान मुरुगन के दिव्य आशीर्वाद का अनुभव कराता है। तो चलिए, मेरे साथ इस दिव्य यात्रा पर चलते हैं, और जानते हैं 3 दिसंबर, 2025 के इस खास दिन का हर पहलू, इसकी महिमा, पूजा विधि और वह सब कुछ जो इसे इतना अनूठा बनाता है।
कार्तिकई दीपम 2025: कब और क्यों है इतना खास?
अगर आप कैलेंडर पर नज़र डालेंगे, तो पाएंगे कि 2025 में कार्तिकई दीपम मुख्य रूप से 3 दिसंबर को मनाया जाएगा, खासकर तिरुवन्नामलाई में महा दीपम प्रज्वलित होने के संदर्भ में। हालांकि, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कार्तिगाई नक्षत्र 3 दिसंबर 2025 को शाम 5:59 बजे शुरू होकर 4 दिसंबर 2025 को दोपहर 2:54 बजे तक रहेगा। इसलिए, कई जगहों पर 4 दिसंबर को भी मुख्य उत्सव दिवस के रूप में देखा जाएगा, जब नक्षत्र अपनी पूर्णता पर होगा। लेकिन तिरुवन्नामलाई का भव्य महा दीपम 3 दिसंबर को ही अपनी पूरी आभा के साथ जगमगा उठेगा, और यही कारण है कि यह तारीख इस पर्व के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
यह पर्व तमिल सौर कैलेंडर के कार्तिक महीने में आता है, जब पूर्णिमा का दिन कृत्तिका नक्षत्र के साथ मेल खाता है। कृत्तिका नक्षत्र का संबंध भगवान कार्तिकेय से है, जिन्हें भगवान मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन दीप जलाना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय, अज्ञानता पर ज्ञान की जीत और बुराई पर अच्छाई की विजय का एक शक्तिशाली प्रतीक है।
पौराणिक कहानियों में छिपा है कार्तिकई दीपम का रहस्य
हर त्योहार के पीछे कोई न कोई रोचक कथा छिपी होती है, और कार्तिकई दीपम भी इससे अछूता नहीं है। इसकी जड़ें गहरी पौराणिक गाथाओं में समाई हुई हैं, जो हमें देवताओं की शक्ति और उनके दिव्य लीलाओं का स्मरण कराती हैं।
भगवान शिव का अग्नि स्तंभ: आदि और अंत से परे
सबसे प्रचलित कहानियों में से एक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग (अग्नि स्तंभ) के रूप में प्रकट होने की है। एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच अपनी सर्वोच्चता को लेकर बहस छिड़ गई। कौन बड़ा है? इस सवाल का जवाब देने के लिए, भगवान शिव एक विशाल, अनंत अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए, जिसका न तो आदि था और न ही अंत। उन्होंने दोनों देवताओं को चुनौती दी कि जो कोई भी इस स्तंभ का आदि या अंत ढूंढ लेगा, वह सबसे बड़ा माना जाएगा।
भगवान ब्रह्मा ने एक हंस का रूप धारण किया और ऊपर की ओर उड़ते हुए शिव के सिर को खोजने निकले, जबकि भगवान विष्णु ने एक वराह (सूअर) का रूप लिया और पाताल लोक में जाकर शिव के चरणों का पता लगाने की कोशिश की। दोनों ने अथक प्रयास किए, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया। ब्रह्मा ने वापस आकर झूठ कहा कि उन्होंने शिव का सिर देख लिया है, जबकि विष्णु ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि वे विफल रहे। इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा नहीं की जाएगी, जबकि विष्णु को उनकी ईमानदारी के लिए हमेशा पूजा जाएगा।
यह पर्व, विशेष रूप से तिरुवन्नामलाई में, इसी दिव्य अग्नि स्तंभ की याद दिलाता है, जिसे बाद में शिव ने अरुणाचल पहाड़ी के रूप में संघनित कर दिया। महा दीपम उसी अनंत लौ का एक दृश्यमान प्रतीक है, जो हमें बताता है कि शिव सभी रूपों से परे हैं और उनकी शक्ति असीम है।
भगवान मुरुगन का जन्म और कृत्तिका नक्षत्र का संबंध
एक और महत्वपूर्ण कथा भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) के जन्म से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार, भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली छह दिव्य चिंगारियों से छह शिशु उत्पन्न हुए। इन शिशुओं का पालन-पोषण कृत्तिका नामक छह दिव्य कन्याओं ने किया। बाद में, देवी पार्वती ने इन छह शिशुओं को एक साथ मिलाकर एक बालक में परिवर्तित कर दिया, जिसके छह मुख थे, और वह षण्मुगा (छह मुखों वाला) कहलाया। यही बालक भगवान मुरुगन या कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है।
कार्तिकई दीपम कृत्तिका नक्षत्र के दौरान मनाया जाता है, और यह भगवान मुरुगन के जन्म और उनके पालन-पोषण का सम्मान करता है। इस दिन उनकी पूजा करने से भक्तों को ज्ञान, साहस और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
तिरुवन्नामलाई: जहाँ दीपों का पर्व बन जाता है महा उत्सव
अगर आप कार्तिकई दीपम का असली वैभव देखना चाहते हैं, तो आपको एक बार तिरुवन्नामलाई के अरुणाचलेश्वर स्वामी मंदिर ज़रूर जाना चाहिए। यहाँ यह पर्व सिर्फ एक दिन का नहीं, बल्कि दस दिवसीय ‘कार्तिकई ब्रह्मोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव इतना भव्य होता है कि दूर-दूर से श्रद्धालु इसकी एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
उत्सव की शुरुआत ध्वजारोहण से होती है, और हर दिन पंचमूर्ति (भगवान गणपति, भगवान मुरुगन, भगवान अरुणाचलेश्वर, देवी उन्नामलैयाम्मन और चंडिकेश्वरर) को विभिन्न वाहनों पर भव्य शोभायात्रा में निकाला जाता है। लेकिन इस उत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण निस्संदेह महा दीपम है।
3 दिसंबर, 2025 का महा दीपम:
3 दिसंबर, 2025 की शाम को, जब सूरज ढल रहा होगा और आसमान नारंगी और बैंगनी रंगों से भर जाएगा, उसी पल, लगभग शाम 6 बजे, अरुणाचल पहाड़ी की चोटी पर एक विशाल दीप प्रज्वलित किया जाएगा – यही है महा दीपम! यह दीप लगभग 3500 किलोग्राम घी का उपयोग करके जलाया जाता है, और इसकी लौ कई किलोमीटर दूर से दिखाई देती है। यह क्षण इतना भावुक और शक्तिशाली होता है कि भक्तों की आँखें नम हो जाती हैं। यह भगवान शिव के अनंत प्रकाश और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रत्यक्ष अनुभव कराता है। इस दौरान भगवान अर्धनारीश्वर भक्तों को दर्शन देते हैं, जो शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक है।।
महा दीपम से पहले, सुबह लगभग 4 बजे, मंदिर के भीतर भरणी दीपम जलाया जाता है। यह एक प्रतीकात्मक लौ है, जिसे दिव्य अग्नि का बीज माना जाता है। इसी भरणी दीपम की लौ से महा दीपम प्रज्वलित किया जाता है, जो इस बात का प्रतीक है कि दिव्य प्रकाश भीतर से ही उत्पन्न होता है और फिर पूरे विश्व में फैल जाता है।
घर पर कैसे मनाएं कार्तिकई दीपम 2025: पूजा विधि और अनुष्ठान
अगर आप तिरुवन्नामलाई नहीं जा पा रहे हैं, तो निराश न हों! आप अपने घर पर भी इस पवित्र पर्व को उतनी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मना सकते हैं। कार्तिकई दीपम पर दीप जलाना, पूजा करना और परिवार के साथ समय बिताना बेहद शुभ माना जाता है।
पूजा की तैयारी:
1. घर की सफाई: पर्व से पहले अपने घर को अच्छी तरह से साफ करें। कहते हैं, जहाँ स्वच्छता होती है, वहीं सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
2. कोलम (रंगोली): दक्षिण भारत में, घरों के प्रवेश द्वार पर और पूजा स्थल पर चावल के आटे से सुंदर कोलम (रंगोली) बनाना एक पुरानी परंपरा है। यह देवी-देवताओं का स्वागत करने का प्रतीक है।
3. दीपक तैयार करें: मिट्टी के छोटे-छोटे दीयों को धोकर सुखा लें। इन्हें हल्दी और कुमकुम से सजाना न भूलें। रुई की बत्तियाँ तैयार करें और उन्हें घी या तिल के तेल में भिगो दें। विषम संख्या में दीपक जलाना शुभ माना जाता है (जैसे 5, 7, 9, 11)।
पूजा विधि (दिसंबर 3 या 4, 2025):
1. स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल लेकर भगवान शिव और भगवान मुरुगन की पूजा का संकल्प लें।
2. वेदी स्थापना: अपने पूजा स्थल पर एक साफ चौकी या पाटा बिछाएं। उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर भगवान शिव और भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3. अभिषेक: गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से भगवान शिव और मुरुगन का अभिषेक करें। यह शुद्धिकरण का प्रतीक है।
4. पुष्प और नैवेद्य: भगवान को ताजे फूल, बिल्व पत्र (भगवान शिव के लिए), और पान के पत्ते अर्पित करें। श्रीखंड, फल, मिठाई और अन्य पारंपरिक व्यंजन (जैसे अप्पम, अड़ई) भोग के रूप में चढ़ाएं।
5. दीप प्रज्वलन: शाम के समय, सूर्यास्त के बाद, अपने घर के भीतर और बाहर, विशेषकर प्रवेश द्वार, खिड़कियों और बालकनी में दीयों की पंक्ति जलाएं। एक घी का दीपक पूजा स्थान पर अवश्य जलाएं।
6. मंत्र जाप: भगवान शिव के मंत्र “ॐ नमः शिवाय” या कार्तिकेय गायत्री मंत्र “ॐ तत्पुरुषाय विद्महे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात” का जाप करें। यह मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
7. आरती: घी के दीपक से भगवान शिव और मुरुगन की आरती करें। परिवार के सभी सदस्य एक साथ आरती में शामिल हों।
8. प्रसाद वितरण और दान: पूजा के बाद प्रसाद सभी में बांटें और अपनी सामर्थ्य के अनुसार ज़रूरतमंदों को अन्न या वस्त्र का दान करें। दान-पुण्य का इस दिन विशेष महत्व है।
उपवास का महत्व:
कई भक्त इस दिन उपवास भी रखते हैं। उपवास भोर में शुरू होता है और शाम की पूजा के बाद समाप्त होता है। यह आत्म-शुद्धि और भगवान के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने का एक तरीका है।
कार्तिकई दीपम: सिर्फ एक त्योहार नहीं, एक जीवनशैली
कार्तिगाई दीपम सिर्फ दक्षिण भारत का एक त्योहार नहीं है, यह एक जीवनशैली है, एक दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने भीतर के अंधकार को दूर कर ज्ञान और प्रेम के प्रकाश से जीवन को भर सकते हैं। जब हम एक छोटा सा दीपक जलाते हैं, तो हम केवल एक लौ नहीं प्रज्वलित करते, बल्कि हम आशा, सकारात्मकता और आंतरिक शांति की एक किरण जगाते हैं।
इस पर्व का उल्लेख संगम साहित्य जैसे प्राचीन तमिल ग्रंथों में भी मिलता है, जो इसकी हजारों साल पुरानी परंपरा को दर्शाता है। यह त्योहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार और समुदाय को एक साथ लाने, खुशियाँ बांटने और एकता की भावना को बढ़ावा देने का भी एक अवसर है।
2025 में 3 दिसंबर को जब तिरुवन्नामलाई की पहाड़ी पर महा दीपम अपनी पूरी महिमा में चमकेगा, तो मुझे यकीन है कि उसकी रोशनी हम सभी के जीवन में एक नई ऊर्जा, नया उत्साह और नई दिशा लेकर आएगी। तो, आइए हम सब मिलकर इस दिव्य पर्व को मनाएं, अपने घरों को रोशन करें और अपने दिलों में भक्ति का उजास फैलाएं। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, यह एक अनुभव है – एक ऐसा अनुभव जो हमें भीतर से बदल देता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
कार्तिगाई दीपम कितने दिनों तक चलता है?
तिरुवन्नामलाई में कार्तिगाई दीपम का उत्सव 10 दिनों तक चलता है, जिसे कार्तिगाई ब्रह्मोत्सव कहा जाता है, जिसका समापन महा दीपम के साथ होता है। अन्य क्षेत्रों में, मुख्य दीपम पर्व एक से तीन दिनों तक मनाया जा सकता है, जिसमें अंतिम दिन मुख्य दीपोत्सव होता है.
भगवान मुरुगन का कार्तिगाई दीपम से क्या संबंध है?
कार्तिगाई दीपम भगवान मुरुगन के जन्म का सम्मान करता है। पौराणिक कथा के अनुसार, वे भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली छह दिव्य चिंगारियों से उत्पन्न हुए थे और कृत्तिका कन्याओं द्वारा पाले गए थे। यह पर्व कृत्तिका नक्षत्र में मनाया जाता है, जिससे उनका सीधा संबंध है।
क्या कार्तिकई दीपम और कार्तिक पूर्णिमा एक ही हैं?
हालांकि दोनों ही कार्तिक महीने में आते हैं और दीप जलाने से संबंधित हैं, कार्तिगाई दीपम मुख्य रूप से तमिल हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है और यह कृत्तिका नक्षत्र के साथ पूर्णिमा के दिन पड़ता है। कार्तिक पूर्णिमा (जिसे देव दीपावली भी कहते हैं) उत्तर भारत में ज्यादा प्रचलित है और यह कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो अक्सर अलग दिन पड़ती है क्योंकि तमिल कैलेंडर में विषुवों के सुधार के कारण तिथि में अंतर होता है। 2025 में, कार्तिक पूर्णिमा 5 नवंबर को है, जबकि कार्तिगाई दीपम 3/4 दिसंबर को है.
कार्तिगाई दीपम पर कौन से विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं?
इस दिन पारंपरिक रूप से अप्पम, अड़ई, स्वीट पोंगल और विभिन्न प्रकार के चावल के व्यंजन (जैसे लेमन राइस, दही राइस) बनाए जाते हैं। प्रसाद के रूप में गुड़ और आटे से बने दीपक भी अर्पित किए जाते हैं, जिन्हें बाद में खाया जाता है.
दीप जलाने के पीछे का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
दीप जलाना अंधकार को दूर करने और प्रकाश को आमंत्रित करने का प्रतीक है। आध्यात्मिक रूप से, यह अज्ञानता को दूर कर ज्ञान के प्रकाश को जगाने, नकारात्मकता को हटाकर सकारात्मकता लाने और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमें आंतरिक दिव्यता का स्मरण कराता है.




