आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी का व्रत रखा जाता है। अन्य एकादशियों की तरह ये एकादशी भी भगवान विष्णु को समर्पित है। इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में पड़ती है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने वाले जातक को धन-समृद्धि के साथ-साथ उनके पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।
इंदिरा एकादशी कब है?
इंदिरा एकादशी 2025: व्रत, पारण समय व शुभ मुहूर्त
तिथि – 17 सितंबर 2025, बुधवार
पक्ष – आश्विन कृष्ण पक्ष
एकादशी तिथि प्रारंभ 17 सितंबर को 12:21 ए एम
एकादशी तिथि समाप्त 17 सितंबर को 11:39 पी एम
पारण (व्रत तोड़ने का समय)
पारण तिथि – 18 सितंबर 2025, गुरुवार
पारण समय 05:45 ए एम से 08:12 ए एम
द्वादशी समाप्ति 18 सितंबर को 11:24 पी एम
इंदिरा एकादशी के अन्य शुभ मुहूर्त
अन्य शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त – 04:11 ए एम से 04:58 ए एम तक
प्रातः सन्ध्या – 04:34 ए एम से 05:45 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त – नहीं है
विजय मुहूर्त – 01:55 पी एम से 02:44 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त – 06:00 पी एम से 06:23 पी एम तक
सायाह सन्ध्या – 06:00 पी एम से 07:10 पी एम तक
अमृत काल 18 सितंबर, 12:06 ए एम से 01:43 ए एम तक
निशिता मुहूर्त – 17 सितंबर, 11:29 पी एम से 18 सितंबर, 12:16 ए एम तक
तो भक्तों, ये थी इंदिरा एकादशी के शुभ मुहूर्त से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपको इस व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो, पितरों को मोक्ष प्राप्त हो, और आप पर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहे। हमारी कामना है कि आपको इस व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त हो, पितरों को मोक्ष प्राप्त हो, और आप पर भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहे।
जानें एकादशी की पूजा विधि
एकादशी का दिन भगवान विष्णु के भक्तों के लिए विशेष होता है। यदि इस दिन संपूर्ण विधि विधान से भगवान विष्णु की भक्ति एवं पूजा-अर्चना की जाए तो कठिनतम लक्ष्य की प्राप्ति भी संभव हो जाती है।
पूजा की तैयारी –
1. एकादशी के दिन व्रत करने वाले जातक दशमी तिथि की शाम में व्रत और पूजन का संकल्प लें।
2. दशमी में रात्रि के भोजन के बाद से कुछ भी अन्न या एकादशी व्रत में निषेध चीजों का सेवन न करें।
3. एकादशी के दिन प्रातःकाल उठें, और किसी पेड़ की टहनी से दातुन करें।
4. इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। स्नान करते समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
5. स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वयं को चन्दन का तिलक करें।
6. अब भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और नमस्कार करते हुए, आपके व्रत और पूजा को सफल बनाने की प्रार्थना करें।
7. अब पूजा करने के लिए सभी सामग्री इकट्ठा करें और पूजा शुरू करें।
व्रत की पूजा विधि –
1. सबसे पहले पूजा स्थल को साफ करके इस स्थान पर एक चौकी स्थापित करें, और इसे गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें।
2. इसके बाद चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं। इस चौकी के दायीं ओर एक दीप प्रज्वलित करें। (सबसे पहले दीप प्रज्वलित इसीलिए किया जाता है, ताकि अग्निदेव आपकी पूजा के साक्षी बने)
3. चौकी के सामने एक साफ आसन बिछाकर बैठ जाएं। जलपात्र से अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ में जल लेकर दोनों हाथों को शुद्ध करें। अब स्वयं को तिलक करें।
4. अब चौकी पर अक्षत के कुछ दानें आसन के रूप में डालें और इस पर गणेश जी को विराजित करें।
5. इसके बाद चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें।
6. अब स्नान के रूप में एक जलपात्र से पुष्प की सहायता से जल लेकर भगवान गणेश और विष्णु जी पर छिड़कें।
7. भगवान गणेश को हल्दी-कुमकुम-अक्षत और चन्दन से तिलक करें।
8. इसके बाद वस्त्र के रूप में उन्हें जनेऊ अर्पित करें। इसके बाद पुष्प अर्पित करके गणपति जी को नमस्कार करें।
9. भगवान विष्णु को रोली-चन्दन का तिलक करें। कुमकुम, हल्दी और अक्षत भी चढ़ाएं।
10. अब ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जप करते हुए श्रीहरि को पुष्प, जनेऊ और माला अर्पित करें।
11. भगवान विष्णु को पंचामृत में तुलसीदल डालकर अर्पित करें। चूँकि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसीलिए भगवान के भोग में तुलसी को अवश्य शामिल करें। (ध्यान दें गणेश जी को तुलसी अर्पित न करें)
12. इसके बाद भोग में मिष्ठान्न और ऋतुफल अर्पित करें।
13. विष्णु सहस्त्रनाम या श्री हरि स्त्रोतम का पाठ करें!
14. अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। अब सभी लोगों में भगवान को चढ़ाया गया भोग प्रसाद के रूप में वितरित करें।
15. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं व क्षमता अनुसार दान-दक्षिणा दें। तत्पश्चात ही व्रत का पारण करें।
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