छठ पूजा 2025 (Chhath Puja 2025 Dates): तिथियां, पावन अनुष्ठान और अद्वितीय आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि

वायु में ताज़ी मिट्टी और भक्ति की सौंधी सुगंध, भारत के सबसे अनूठे और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली त्योहारों में से एक, छठ पूजा के आगमन का संकेत देती है. किसी भी अन्य हिंदू त्योहार के विपरीत, छठ प्रकृति में गहराई से निहित एक उत्सव है, जो सूर्य देव और छठी मैया के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का महापर्व है!

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Chhath Puja 2025 Date

यह केवल एक पूजा नहीं, बल्कि 36 घंटे का एक कठिन तप, शुद्धता का संकल्प और प्रकृति के साथ एकात्म का अनुभव है. यह पर्व बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है, किंतु अब यह भारतीय प्रवासी समुदायों के साथ विश्व भर में फैल चुका है!

यह लेख आपको छठ पूजा 2025 की विस्तृत तिथियों, इसके प्रत्येक अनुष्ठान के गहन अर्थ, पौराणिक कथाओं, वैज्ञानिक महत्व और इस महापर्व से जुड़ी अद्वितीय आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि से परिचित कराएगा हमारा उद्देश्य आपको न केवल जानकारी प्रदान करना है, बल्कि इस पावन यात्रा का एक अभिन्न अंग बनाना है, ताकि आप इस पवित्र पर्व को पूरी श्रद्धा और ज्ञान के साथ मना सकें.

छठ पूजा 2025: महत्वपूर्ण तिथियां और शुभ मुहूर्त

छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला एक महापर्व है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. आइए जानते हैं वर्ष 2025 में छठ पूजा की सटीक तिथियां और उनसे जुड़े शुभ मुहूर्त:

दिन तिथि दिनांक (2025) छठ पूजा का चरण सूर्य उदय (अनुमानित) सूर्य अस्त (अनुमानित)
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी शनिवार, 25 अक्टूबर नहाय-खाय 06:28 AM 05:42 PM
दूसरा दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी रविवार, 26 अक्टूबर खरना (लोहंडा) 06:29 AM 05:41 PM
तीसरा दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी सोमवार, 27 अक्टूबर संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को) 06:30 AM 05:40 PM
चौथा दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी मंगलवार, 28 अक्टूबर उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को) और पारण 06:30 AM 05:39 PM

(कृपया ध्यान दें: सूर्योदय और सूर्यास्त का समय आपके भौगोलिक स्थान के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता है. स्थानीय पंचांग या विश्वसनीय स्रोतों से पुष्टि करना उचित है.)

छठ पूजा के पावन अनुष्ठान: एक विस्तृत मार्गदर्शिका

छठ पूजा के प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और अनुष्ठान हैं, जो गहरी श्रद्धा और समर्पण के साथ किए जाते हैं. यह व्रत 36 घंटे का निर्जला व्रत होता है, जिसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और समापन उषा अर्घ्य के बाद पारण से होता है.

पहला दिन: नहाय-खाय (25 अक्टूबर 2025, शनिवार)

छठ महापर्व का शुभारंभ ‘नहाय-खाय’ के साथ होता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘स्नान करना और खाना’. इस दिन, व्रती (व्रत करने वाले) पवित्र नदियों, तालाबों या घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करते हैं! स्नान के बाद, घर की साफ-सफाई की जाती है और व्रत के नियमों का पालन करते हुए सात्विक भोजन तैयार किया जाता है!

Chhath Puja 2025 Dates

इस दिन कद्दू (लौकी) की सब्जी, चने की दाल और अरवा चावल का विशेष महत्व होता है. व्रती एक ही बार भोजन ग्रहण करते हैं! इस दिन से ही मन और शरीर की शुद्धिकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है, जो आने वाले कठिन व्रत के लिए तैयार करती है!

दूसरा दिन: खरना (26 अक्टूबर 2025, रविवार)

‘खरना’ छठ पूजा का दूसरा महत्वपूर्ण दिन है. इसे ‘लोहंडा’ भी कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं, यानी बिना पानी पिए व्रत करते हैं! शाम को, सूर्य देव की पूजा की जाती है और गुड़ व चावल से बनी खीर का प्रसाद तैयार किया जाता है! इस खीर को ‘रसिया’ भी कहते हैं!

मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी का उपयोग करके प्रसाद बनाना अत्यंत शुभ माना जाता है! पूजा के बाद, व्रती इस खीर और रोटी या पूड़ी का सेवन करते हैं! प्रसाद ग्रहण करने के बाद, व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ हो जाता है, जो अगले दिन सुबह अर्घ्य देने के बाद ही टूटता है.

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025, सोमवार)

छठ पूजा का तीसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन, व्रती और उनके परिवार के सदस्य विभिन्न प्रकार के फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू (कसार), गन्ना, नारियल और अन्य पारंपरिक प्रसाद को बांस के सूप और डलिया में सजाकर नदी, तालाब या किसी जल स्रोत के घाट पर जाते हैं!

Chhath Puja 2025 Dates

व्रती जल में कमर तक खड़े होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जिसे ‘संध्या अर्घ्य’ कहा जाता है. यह अर्घ्य सूर्य की शक्ति और ऊर्जा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का प्रतीक है. यह इस बात का भी प्रतीक है कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, और हमें हर परिस्थिति में ईश्वर का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह ‘डूबता’ हुआ ही क्यों न हो!

चौथा दिन: उषा अर्घ्य और पारण (28 अक्टूबर 2025, मंगलवार)

छठ पूजा का अंतिम दिन ‘उषा अर्घ्य’ के साथ समाप्त होता है! इस दिन, व्रती भोर होने से पहले ही परिवार के साथ घाट पर पहुंचते हैं और उगते हुए सूर्य का इंतजार करते हैं. जैसे ही सूर्य की पहली किरणें दिखाई देती हैं, व्रती जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसे ‘उषा अर्घ्य’ कहा जाता है! उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद, व्रती अपना 36 घंटे का कठिन व्रत तोड़ते हैं, जिसे ‘पारण’ कहा जाता है. प्रसाद ग्रहण करने के बाद, यह महापर्व संपन्न होता है. यह दिन नई शुरुआत, आशा और सूर्य देव के आशीर्वाद से जीवन में सकारात्मकता लाने का प्रतीक है.

छठ पूजा का महत्व: धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य

छठ पूजा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक जीवंत प्रतीक है. इसका महत्व कई स्तरों पर समझा जा सकता है:

धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

छठ पूजा सूर्य देव, जिन्हें ‘जगत् के प्राण’ कहा जाता है, और उनकी बहन छठी मैया (षष्ठी देवी) को समर्पित है. सूर्य ब्रह्मांड में ऊर्जा और जीवन का स्रोत हैं, और उनकी उपासना से आरोग्य, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है. छठी मैया को संतान की देवी माना जाता है, जो बच्चों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं! यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति और संतान के कल्याण के लिए रखा जाता है. इस पर्व में पवित्रता, संयम और तपस्या पर अत्यधिक जोर दिया जाता है, जो आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं.

Chhath Puja 2025 Date

पौराणिक कथाएं और ऐतिहासिक जड़ें

छठ पूजा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इसके महत्व को और गहरा करती हैं:

* महाभारत काल से संबंध:ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा की थी वे प्रतिदिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे द्रौपदी ने भी पांडवों के खोए हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने और परिवार के कल्याण के लिए छठ व्रत रखा था, जिसके फलस्वरूप उन्हें सफलता मिली!

* राम-सीता की कथा:एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान राम और माता सीता लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे, तो उन्होंने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन सूर्य देव की आराधना की थी, और सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया था!

* राजा प्रियंवद की कथा: प्राचीन काल में राजा प्रियंवद और उनकी पत्नी मालिनी को संतान सुख प्राप्त नहीं था महर्षि कश्यप के कहने पर उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया, लेकिन पुत्र मृत पैदा हुआ तब षष्ठी देवी प्रकट हुईं और अपने स्पर्श से शिशु को जीवित कर दिया उन्होंने राजा को कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन अपनी पूजा करने का आदेश दिया, जिसके बाद राजा को संतान की प्राप्ति हुई तभी से षष्ठी देवी (छठी मैया) की पूजा की परंपरा चली आ रही है!

ये कथाएं छठ पूजा के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल को दर्शाती हैं, जो पीढ़ियों से चली आ रही हैं!

वैज्ञानिक और पर्यावरणीय महत्व

छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और पर्यावरणीय भी है:

* शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य:36 घंटे का निर्जला व्रत शरीर को डिटॉक्सिफाई (विषहरण) करने में मदद करता है. यह पाचन तंत्र को आराम देता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है! जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने से शरीर को सूर्य की पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभावों से सुरक्षा मिलती है और विटामिन डी का प्राकृतिक अवशोषण होता है, जो हड्डियों और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए आवश्यक है! यह प्रक्रिया मानसिक शांति और एकाग्रता भी प्रदान करती है, जिससे तनाव कम होता है!

* प्रकृति संरक्षण:छठ पूजा प्रकृति के तत्वों – सूर्य, जल, वायु और भूमि – के प्रति सम्मान का प्रतीक है! इस पर्व में नदियों और जलाशयों की साफ-सफाई पर विशेष जोर दिया जाता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण का संदेश मिलता है! प्लास्टिक और कृत्रिम वस्तुओं के बजाय प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग (बांस के सूप, मिट्टी के चूल्हे) इस त्योहार को पर्यावरण के अनुकूल बनाता है!

* सौर ऊर्जा का अवशोषण:सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें सबसे कम तीव्र होती हैं और उनमें विशेष ऊर्जा गुण होते हैं! इन समयों पर सूर्य के संपर्क में आने से शरीर को सकारात्मक ऊर्जा का अवशोषण करने में मदद मिलती है, जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन बना रहता है!

छठ पूजा के प्रसाद और उनका प्रतीकात्मक अर्थ

छठ पूजा में चढ़ाए जाने वाले प्रत्येक प्रसाद का अपना विशेष महत्व और प्रतीकात्मक अर्थ होता है:

* ठेकुआ: यह गेहूं के आटे और गुड़ से बना एक मीठा व्यंजन है. यह सादगी, शुद्धता और प्रकृति से प्राप्त अन्न के प्रति कृतज्ञता का  प्रतीक है. इसकी कठोरता व्रत की दृढ़ता को भी दर्शाती है!

* कसार (चावल के लड्डू):चावल और गुड़ से बने ये लड्डू ऊर्जा और जीवन शक्ति का प्रतीक हैं!

* ईख (गन्ना):गन्ना सूर्य के प्रकाश और मिठास का प्रतीक है. यह समृद्धि और खुशहाली का भी द्योतक है!

* केला:केला भगवान विष्णु का प्रिय फल है और इसे शुभता व उर्वरता का प्रतीक माना जाता है!

* नारियल:नारियल को पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है यह भीतर से शुद्ध और बाहर से कठोर होता है, जो व्रती के संयम को दर्शाता है!

* मौसमी फल:विभिन्न प्रकार के मौसमी फल प्रकृति की प्रचुरता और सूर्य देव की कृपा का प्रतीक हैं!

ये सभी प्रसाद न केवल भोजन हैं, बल्कि प्रकृति के उपहारों के प्रति हमारी श्रद्धा और आभार व्यक्त करने का माध्यम भी हैं!

छठ पूजा: Chhath Puja 2025 Dates एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगम

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक विशाल सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन भी है. इस दौरान परिवार के सभी सदस्य एक साथ आते हैं, घरों की साफ-सफाई होती है, और घाटों को सजाया जाता है. यह पर्व सामुदायिक सद्भाव और एकजुटता का प्रतीक है. भले ही यह मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का त्योहार है, लेकिन अब यह पूरे भारत और विदेशों में रहने वाले भारतीय प्रवासियों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है!

Chhath Puja 2025 Dates

इस दौरान छठ के पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं, जो त्योहार के माहौल को और भी भक्तिमय बनाते हैं. इन गीतों में छठी मैया की महिमा, सूर्य देव की स्तुति और व्रती के त्याग व समर्पण का वर्णन होता है. यह पर्व बच्चों को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है!

छठ पूजा की तैयारी: कुछ महत्वपूर्ण बातें

छठ पूजा की तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है. यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं, जिनका ध्यान रखना चाहिए:

1. स्वच्छता:छठ पूजा में पवित्रता सर्वोपरि है. घर, पूजा स्थल और घाटों की साफ-सफाई अत्यंत महत्वपूर्ण है. व्रती को भी शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध रहना चाहिए!

2. सामग्री:पूजा के लिए आवश्यक सभी सामग्री (बांस के सूप, डलिया, मिट्टी का चूल्हा, फल, ठेकुआ बनाने की सामग्री आदि) पहले से जुटा लेनी चाहिए!

3. सात्विक भोजन:व्रत के दौरान और उससे पहले ‘नहाय-खाय’ व ‘खरना’ के दिन केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करें. लहसुन, प्याज और मांसाहारी भोजन से परहेज करें!

4. नियमों का पालन:छठ का व्रत अत्यंत कठिन और नियमानुसार होता है. व्रत के सभी नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करें!

5. सामुदायिक सहयोग: घाटों पर भीड़ हो सकती है, इसलिए धैर्य रखें और अन्य श्रद्धालुओं के साथ सहयोग करें!

निष्कर्ष

छठ पूजा 2025 एक बार फिर हमें प्रकृति के करीब आने, सूर्य देव की असीम ऊर्जा का सम्मान करने और छठी मैया के आशीर्वाद से अपने जीवन को समृद्ध करने का अवसर प्रदान करेगी. यह पर्व हमें सिखाता है कि शुद्धता, तपस्या और कृतज्ञता के माध्यम से हम न केवल आध्यात्मिक शांति प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से भी स्वस्थ रह सकते हैं!

dharmiksuvichar.com की ओर से, हम कामना करते हैं कि छठ मैया और सूर्य देव का आशीर्वाद आप और आपके परिवार पर सदा बना रहे इस महापर्व को पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाएं और प्रकृति के इस अनमोल उपहार का सम्मान करें!

 

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छठ पूजा 2025 से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर | Chhath Puja 2025 FAQ

1.छठ पूजा 2025 में कब है?

उत्तर:वर्ष 2025 में छठ पूजा का महापर्व 25 अक्टूबर, शनिवार को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ होगा और 28 अक्टूबर, मंगलवार को उषा अर्घ्य के साथ समाप्त होगा। मुख्य संध्या अर्घ्य 27 अक्टूबर, सोमवार को दिया जाएगा।

2.छठ पूजा के मुख्य चार दिन कौन से हैं?

उत्तर: छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला महापर्व है। इसके मुख्य चार दिन हैं:
पहला दिन – नहाय-खाय
दूसरा दिन – खरना
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (डूबते सूर्य को अर्घ्य)
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (उगते सूर्य को अर्घ्य)

3.छठी मैया कौन हैं और उनकी पूजा क्यों की जाती है?

उत्तर:छठी मैया को भगवान सूर्य की बहन और ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी का रूप माना जाता है। संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और परिवार के कल्याण के लिए उनकी पूजा की जाती है। निःसंतान दंपति भी संतान प्राप्ति की कामना के लिए यह व्रत रखते हैं।

4.छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

उत्तर:छठ पूजा का धार्मिक महत्व के साथ-साथ गहरा वैज्ञानिक महत्व भी है। सूर्य की उपासना से शरीर को विटामिन डी मिलता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। जल में खड़े होकर अर्घ्य देने से सूर्य की पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभावों से बचाव होता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे मानसिक शांति और शारीरिक आरोग्य प्राप्त होता है।

5.छठ पूजा में ठेकुआ का क्या महत्व है?

उत्तर:ठेकुआ छठ पूजा का सबसे प्रमुख और पारंपरिक प्रसाद है। यह गुड़ और गेहूं के आटे से बनता है। ठेकुआ को शुद्धता और सादगी का प्रतीक माना जाता है। यह व्रत की कठोरता और प्रकृति से प्राप्त होने वाले अन्न के प्रति कृतज्ञता को दर्शाता है।

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