बुद्ध पूर्णिमा 2025 का पर्व भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण से जुड़ा है। जानिए इस पावन दिन का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व, पूजन विधि और प्रेरणादायक संदेश।
बुद्ध पूर्णिमा क्या है?
बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण की स्मृति में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व 12 मई को मनाया जाएगा। इस दिन देशभर के बौद्ध अनुयायी और अनेक हिंदू श्रद्धालु गहरी आस्था और श्रद्धा के साथ भगवान बुद्ध को स्मरण करते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
गौतम बुद्ध का जन्म
गौतम बुद्ध का जन्म ईसा पूर्व 563 में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। वह कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन और रानी मायादेवी के पुत्र थे। उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
ज्ञान की प्राप्ति
29 वर्ष की उम्र में संसार के दुखों को देखकर उन्होंने राजमहल छोड़ दिया और ज्ञान की तलाश में निकल पड़े। वर्षों की साधना के बाद उन्होंने बोधगया (बिहार) में पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्त किया और “बुद्ध” कहलाए।
महापरिनिर्वाण
80 वर्ष की उम्र में कुशीनगर में उन्होंने देह का त्याग किया। यह घटना भी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुई थी। इसलिए बुद्ध पूर्णिमा तीनों घटनाओं से जुड़ा पवित्र दिन है।
बुद्ध पूर्णिमा पर क्या करें?
पूजन विधि
भगवान बुद्ध की प्रतिमा को स्नान कराएं।
फूल, दीपक और अगरबत्ती अर्पित करें।
बुद्ध वाणी या धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र का पाठ करें।
ध्यान और शांति की साधना करें।
क्या न करें?
मांसाहार, नशा, हिंसा या कटु वचन से दूर रहें।
अधिक शोर या दिखावा करने से बचें।
इस दिन सादगी और संयम को प्राथमिकता दें।
देशभर में उत्सव की झलकियां
बोधगया (बिहार)
बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति यहीं हुई थी। यहां लाखों श्रद्धालु एकत्र होकर पूजा, ध्यान और साधना करते हैं।
सारनाथ (उत्तर प्रदेश)
यह पहला स्थान था जहां बुद्ध ने उपदेश दिया था। यहां विशेष धर्म प्रवचन और समारोह होते हैं।
कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
जहां बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। यहां श्रद्धालु विशेष प्रार्थना करते हैं।
दिल्ली, लद्दाख, सिक्किम
इन क्षेत्रों में बौद्ध मंदिरों में रथयात्राएं, लाइट शो और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
बुद्ध का संदेश – आज के युग में क्यों जरूरी है?
गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग बताए जो आज भी हर इंसान के लिए प्रासंगिक हैं:
जीवन दुखों से भरा है।
दुख का कारण तृष्णा है।
तृष्णा का अंत ही मोक्ष है।
अष्टांगिक मार्ग से मुक्ति संभव है।
अष्टांगिक मार्ग
1. सम्यक दृष्टि
2. सम्यक संकल्प
3. सम्यक वाणी
4. सम्यक कर्म
5. सम्यक आजीविका
6. सम्यक प्रयास
7. सम्यक स्मृति
8. सम्यक समाधि
यह मार्ग आज के तनाव, लालच और असंतुलन भरी दुनिया में भी एक सार्थक समाधान प्रस्तुत करता है।
आधुनिक युग में बुद्ध पूर्णिमा का महत्व
आज जब दुनिया हिंसा, तनाव और भ्रम से जूझ रही है, बुद्ध का शांति और करुणा का मार्ग पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है।
बुद्ध पूर्णिमा न केवल धर्म का उत्सव है, बल्कि यह आत्मचिंतन, सुधार और नई शुरुआत का अवसर भी है।
निष्कर्ष – एक दीपक अपने भीतर जलाएं
बुद्ध पूर्णिमा हमें केवल बाहरी पूजा का नहीं, बल्कि अंतरात्मा के दीप जलाने का संदेश देती है। भगवान बुद्ध का जीवन हमें सिखाता है कि असली बदलाव बाहर नहीं, भीतर से शुरू होता है।
इस बुद्ध पूर्णिमा पर आइए संकल्प लें कि हम स्वयं में सुधार लाकर समाज में शांति, दया और सत्य का प्रकाश फैलाएं।
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