Shabari Jayanti: रामायण में हनुमान जी, जामवंत, केवट आदि कई ऐसे पात्र हैं, जो भगवान श्री राम के प्रति अपनी प्रगाढ़ भक्ति के लिए सदैव स्मरण किए जाते हैं। ऐसी ही एक पात्र हैं माता शबरी। दोस्तों, जब तक शबरी के जूठे बेर की चर्चा न हो, तब तक रामायण अधूरी है। श्री राम के प्रति उनकी भक्ति को याद करते हुए शबरी जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है!
Shabari Jayanti 2024: वर्ष 2024 में शबरी जयंती
• इस वर्ष शबरी जयंती 03 मार्च, रविवार को मनाई जाएगी।
• सप्तमी तिथि 02 मार्च को 07:53 AM पर प्रारंभ होगी।
• सप्तमी तिथि का समापन 03 मार्च को 08:44 AM पर होगा।
शबरी जयंती Shabari Jayanti का महत्व
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर श्री राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे अधिकतर मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है । तभी से इस दिन राम भक्त शबरी की स्मृति यात्रा निकालते हैं। शबरी श्री राम की अनन्य भक्त थीं। भगवान राम ने उनके जूठे बेर खाकर जनमानस को यही संदेश दिया कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं।
शबरी जयंती Shabari Jayanti
शबरी जयंती Shabari Jayanti का पर्व मुख्यत गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। शबरी जयंती के दिन अलग-अलग जगहों पर कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। दक्षिण भारत के भद्रचल्लम के सीतारामचन्द्रम स्वामी मंदिर में इस जयंती को एक बड़े उत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाने की परंपरा है।
इस दिन सबरीमाला में भव्य मेले का आयोजन होता है, इस अवसर पर विधि-विधान सेशबरी के साथ भगवान श्री राम की भी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन श्रीराम चरित मानस का पाठ भी किया जाता है।
शबरी का संबंध एक भील समुदाय से था, उनका वास्तविक नाम श्रमणा था। शबरी के पिता भील सरदार हुआ करते थे। भीलनी शबरी जब विवाह करने योग्य हुई, तो पिता ने एक भील युवक के साथ उनका लग्न तय कर दिया। जब शबरी के विवाह का समय समीप आया, तो सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि देने के लिए लाए गए।
ये देखकर शबरी ने जब अपने पिता से पूछा यहां इतने जानवर क्यों एकत्र किए गए हैं पिता श्री ? पिता ने उत्तर दिया- बेटी! कल तुम्हारा विवाह है! इसी उपलक्ष्य में इन सभी जानवरों की बलि दी जाएगी। ये सुनकर शबरी का मन दुख और पीड़ा से विचलित हो उठा। अतः उन्होंने निश्चय किया कि वो ये विवाह कदापि नहीं करेंगी, ऐसा निश्चय कर शबरी ने रात्रि में ही वन प्रस्थान कर लिया।
शबरी आश्रय और शिक्षा
वनवास के दौरान शबरी ने निश्चय किया कि वो किसी श्रेष्ठ ऋषि से शिक्षा प्राप्त करेंगी। लेकिन भील समुदाय से संबंध होने के कारण शबरी को किसी ने अपना शिष्य नहीं बनाया। अंततः मतंग ऋषि ने उनपर कृपा की। उन्होंने अपने आश्रम में न सिर्फ़ निवास करने के लिए स्थान दिया, बल्कि उनका गुरु बनकर उन्हें शिक्षा देना भी स्वीकार किया।
एक दिन जब महर्षि मतंग का अंत समय निकट आया, तो उनकी मृत्यु की कल्पनामात्र से ही शबरी विकल हो गईं। ये देखकर महर्षि ने उसे निकट बुलाकर कहा- बेटी! ये कष्ट धैर्यपूर्वक सहन करना, एवं निरंतर श्री राम की साधना करती रहना। एक दिन प्रभु तेरी कुटिया में अवश्य आयेंगे, और तेरा उद्धार करेंगे। उधर महर्षि ने अपना शरीर त्याग दिया।
शबरी की प्रतीक्षा का अंत
महर्षि मतंग के ये कथन, कि ‘एक दिन भगवान राम तेरी कुटिया में अवश्य पधारेंगे!’ बार-बार शबरी के कर्णपटल पर गूंजते थे। समय बीतता गया और ऐसा करते-करते शबरी वृद्ध हो गई, परंतु वो अब भी भगवान की निरंतर प्रतीक्षा करती रहीं।
अंततः वो शुभ दिन आ ही गया जब सीता जी की खोज करते हुए स्वयं श्री राम शबरी को कृतार्थ करने उनकी कुटिया में पधारे। राम के दर्शन पाते ही शबरी की सारी तपस्या फलीभूत हो उठी। वो प्रभु के लिए बेर तोड़ कर लाई। शबरी को चिंता थी वो भगवान को कहीं कोई खट्टा बेर न खिला दें।
ये विचार कर शबरी पहले वो बेर स्वयं चखतीं, उसके पश्चात् जो बेर मीठे होते, वो प्रभु को खाने को देतीं। ये देखकर लक्षण क्रोध और अचरज से बोले- भ्राता श्री! ये बेर तो इस वृद्ध भीलनी के जूठे हैं! अनुज लक्ष्मण की बात सुनकर श्री राम ने कहा- प्रिय लक्ष्मण! क्रोध त्याग दो! शबरी के ये बेर जूठे नहीं, बल्कि अत्यंत मीठे और स्वादिष्ट हैं, क्योंकि इनमें शबरी माता का अटूट प्रेम है!
शबरी माता का स्थान Shabari Jayanti
शबरी धाम गुजरात के डांग जनपद में सापुतारा से कुछ दूर पर स्थित है। ये वही जगह है, जहां शबरी ने वर्षों तक प्रतीक्षा की, और अंतत भगवान श्री राम के दर्शन पाकर मोक्ष को प्राप्त हुई।
शबरी धाम आज एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यहां एक छोटी सी पहाड़ी है, जिसपर एक मंदिर बना हुआ है, इस मंदिर में रामायण से संबंधित कई तस्वीरें बनाई गई है, विशेषकर शबरी प्रसंग से जुड़ी हुई अनेक तस्वीरें आज भी माता शबरी की श्री राम के प्रति अटूट आस्था का बखान कर रही हैं। मंदिर के आस-पास आज भी बेर के पेड़ पाए जाते हैं। शबरी जयंती के अवसर पर यहां ‘शबरी कुंभ’ का आयोजन होता है।
आशा है कि इस लेख से आपको शबरी जयंती की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी।
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FAQ
वर्ष 2024 में शबरी जयंती कब है?
इस वर्ष शबरी जयंती 03 मार्च, रविवार को मनाई जाएगी।
शबरी जयंती का महत्व क्या है?
श्री राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। तभी से इस दिन राम भक्त शबरी की स्मृति यात्रा निकालते हैं। शबरी श्री राम की अनन्य भक्त थीं। भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर मनुष्य को यही संदेश दिया कि भगवान केवल भाव के भूखे हैं।
कहां और कैसे मनाई जाती है शबरी जयंती?
शबरी जयंती का पर्व मुख्यत गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में मनाया जाता है। शबरी जयंती के दिन अलग-अलग जगहों पर कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। दक्षिण भारत के भद्रचल्लम के सीतारामचन्द्रम स्वामी मंदिर में इस जयंती को एक बड़े उत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाने की परंपरा है।
भीलनी शबरी ने क्यों चुना वनवास ?
भीलनी शबरी जब विवाह करने योग्य हुई, तो पिता ने एक भील युवक के साथ उनका लग्न तय कर दिया। जब शबरी के विवाह का समय समीप आया, तो सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि देने के लिए लाए गए।
शबरी को कहां मिला आश्रय और शिक्षा?
वनवास के दौरान शबरी ने निश्चय किया कि वो किसी श्रेष्ठ ऋषि से शिक्षा प्राप्त करेंगी। लेकिन भील समुदाय से संबंध होने के कारण शबरी को किसी ने अपना शिष्य नहीं बनाया। अंततः मतंग ऋषि ने उनपर कृपा की। उन्होंने अपने आश्रम में न सिर्फ़ निवास करने के लिए स्थान दिया, बल्कि उनका गुरु बनकर उन्हें शिक्षा देना भी स्वीकार किया।
कब हुआ शबरी की प्रतीक्षा का अंत?
महर्षि मतंग के ये कथन, कि ‘एक दिन भगवान राम तेरी कुटिया में अवश्य पधारेंगे!’ बार-बार शबरी के कर्णपटल पर गूंजते थे। समय बीतता गया और ऐसा करते-करते शबरी वृद्ध हो गई अंततः वो शुभ दिन आ ही गया जब सीता जी की खोज करते हुए स्वयं श्री राम शबरी को कृतार्थ करने उनकी कुटिया में पधारे।
कहां है शबरी माता का स्थान शबरी धाम?
शबरी धाम गुजरात के डांग जनपद में सापुतारा से कुछ दूर पर स्थित है।