Gyanvapi Mosque Mystery : ज्ञानवापी क्या है, इस रहस्य को जानकर हैरान रह जाएंगे

ज्ञानवापी Gyanvapi Mosque का अर्थ एवं पौराणिक मान्यता: ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग के साथ-साथ 12वीं से 17वीं शताब्दी के बीच के संस्कृत और द्रविड़ दोनों भाषाओं में शिलालेख मिलने से इस बात का संकेत मिलता है कि ज्ञानवापी से हिंदू धर्म का पुराना आध्यात्मिक संबंध रहा है। ऐसे में इस स्थान के बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। तो चलिये जानते हैं कि हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ज्ञानवापी का पौराणिक महत्व व इतिहास क्या है।

Gyanvapi Mosque Mystery : ज्ञानवापी क्या है, इस रहस्य को जानकर हैरान रह जाएंगे

संस्कृत भाषा के अनुसार ‘वापी’ का अर्थ कुआं होता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुएं के जल के ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे ज्ञानवापी अर्थात ज्ञान का कुआं कहा गया। ऐसी मान्यता भी प्रचलित हैं कि ज्ञानवापी कुएं का पवित्र जल पीते से मनुष्य के हृदय में तीन ज्योतिरुप लिंगों का आविर्भाव होता है और उसकी आत्मा की शुद्धि होती है।

कई धार्मिक पुस्तकों में वाराणसी में एक अविमुक्त क्षेत्र की बात कही गई है, जहां विश्वेश्वर महादेव के नाम से एक स्वयंभू ज्योतिर्लिंग था। माना जाता है कि 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में अविमुक्तेश्वर महादेव या विश्वेश्वर महादेव का यह ज्योतिर्लिंग सर्वप्रमुख था। इसी ज्योतिर्लिंग के पास ही एक कुंआ था, जिसका जल गंगाजल से भी ज्यादा पवित्र माना जाता था।

पौराणिक ग्रंथों में ज्ञानवापी Gyanvapi Mosque

पौराणिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि ज्ञानवापी कुएँ का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से किया था। इसी ज्ञानवापी कुएं का पवित्र जल काशी विश्वनाथ को भी चढ़ाया जाता था।

Gyanvapi Mosque Mystery : ज्ञानवापी क्या है, इस रहस्य को जानकर हैरान रह जाएंगे

जाबाल उपनिषद में याज्ञवलक्य और अत्रि संवाद मिलता है, जिसमे अत्रि मुनि को याज्ञवलक्य अविमुक्तेश्वर क्षेत्र या वर्तमान काशी विश्वनाथ धाम, जहां ज्ञानवापी परिसर है, उसका महत्व बताते हैं। अत्रि अपने गुरु याज्ञवलक्य से जानने की जिज्ञासा प्रकट की कि अनंत परमात्मा को कैसे प्राप्त किया जा सकता है।

तब याज्ञवलक्य उन्हें अविमुक्तेश्वर धाम जाने की आज्ञा देते हैं और कहते हैं कि अनंत परमात्मा का स्वरुप वहीं प्रतिष्ठित है। अविमुक्तेश्वर क्षेत्र में जाकर ही उस अनंत और अव्यक्त परमात्मा की उपासना की जा सकती है।

जाबाल उपनिषद् और स्कंद पुराण के अनुसार इसी अविमुक्तेश्वर क्षेत्र यानि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और ज्ञानवापी में मनुष्यों के प्राण त्यागते समय भगवान शिव उनके कानों में तारक मंत्र देते हैं, जिसके श्रवण मात्र से ही मृतात्मा को मोक्ष प्राप्ति होती है। इन ग्रंथों के अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण आदि में भी ज्ञानवापी कुएं और अविमुक्तेश्वर क्षेत्र के बारे में वर्णन किया गया है।

FAQ

ज्ञानवापी का मतलब क्या होता है?
संस्कृत भाषा के अनुसार ‘वापी’ का अर्थ कुआं होता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुएं के जल के ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे ज्ञानवापी अर्थात ज्ञान का कुआं कहा गया।

ज्ञानवापी को ज्ञानवापी क्यों कहा जाता है?
संस्कृत भाषा के अनुसार ‘वापी’ का अर्थ कुआं होता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुएं के जल के ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे ज्ञानवापी अर्थात ज्ञान का कुआं कहा गया। ऐसी मान्यता भी प्रचलित हैं कि ज्ञानवापी कुएं का पवित्र जल पीते से मनुष्य के हृदय में तीन ज्योतिरुप लिंगों का आविर्भाव होता है और उसकी आत्मा की शुद्धि होती है।

ज्ञानवापी मस्जिद के पीछे की कहानी क्या है?
पौराणिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि ज्ञानवापी कुएँ का निर्माण स्वयं भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से किया था। इसी ज्ञानवापी कुएं का पवित्र जल काशी विश्वनाथ को भी चढ़ाया जाता था।

ज्ञानवापी कहाँ स्थित है?
जाबाल उपनिषद् और स्कंद पुराण के अनुसार इसी अविमुक्तेश्वर क्षेत्र यानि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर भारत के उत्तर प्रदेश वाराणसी में उपस्थित है।

ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे क्या है?
मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे मंदिर का गर्भगृह एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में ज्ञानवापी में वर्तमान ढांचे (मस्जिद) से पहले जिस हिंदू मंदिर होने का उल्‍लेख है, उसे नागर शैली का बताया गया है। रिपोर्ट में मंदिर के चार खंभों से ढांचे तक की परिकल्पना  बताई गई है।

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