श्री दुर्गा चालीसा का पाठ और श्री दुर्गा चालीसा (Sri Durga Chalisa ) का महत्व :- धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिए मां दुर्गा उत्तपति हुई है। शास्त्रों में कहा गया है कि दुर्गा चालीसा का पाठ नवरात्रि या किसी दूसरे शुभ अवसर पर मां दुर्गा की स्तुति के लिए करना शुभ होता है। श्री दुर्गा चालीसा Sri Durga Chalisa के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी गई है। कहा जाता है कि शत्रुओं से मुक्ति, इच्छा पूर्ति के साथ सभी मुरादें दुर्गा चालीसा का पाठ नवरात्रि के समय करने से हो जाता
श्री दुर्गा चालीसा Sri Durga Chalisa
॥ चौपाई ॥
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहुँ लोक फैली उजियारी ॥
ये मंत्र दुर्गा माता की महिमा को स्तुति करता है। इसमें दुर्गा माता की प्रशंसा और शक्ति का वर्णन होता है, जो सुख और दुःख को संतुष्टि देती हैं। यहाँ देवी की ज्योति की महत्ता का वर्णन किया गया है, जो तीनों लोकों में अपनी उजियारी बिखेरती हैं।
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥
यह दुर्गा माता के रूप का वर्णन करता है। उनके शरीर का विवरण, उनकी भयंकर दृष्टि और सुंदरता को बयां करता है। जिन्होंने उनका दर्शन किया है, उन्हें बहुत ही आनंद मिलता है। ये श्लोक उनकी अद्भुतता को स्तुति करते हैं।
तुम संसार शक्ति लय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।।
यह श्लोक माँ अन्नपूर्णा की प्रशंसा करता है, जो संसार की रचना करती हैं और जनता को अन्न और धन प्रदान करती हैं। वे सम्पूर्ण जगत को पोषण देती हैं और सुंदर सम्पूर्णता की प्रतिष्ठा हैं।
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की महिमा को गाता है, जो प्रलय के समय सभी को नष्ट करने वाली हैं। वे गौरी और शिवशंकर को प्रिय हैं और उनके गुणों की स्तुति करने वाले शिव और योगी हैं। ब्रह्मा और विष्णु भी आपकी पूजा करते हैं और आपका ध्यान करते हैं।
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा।।
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रगट भई फाड़कर खम्बा ।।
यह श्लोक दुर्गा माता की शक्ति को स्तुति करता है, जो सरस्वती और नरसिंह रूप में भी प्रकट होती हैं। वे सभी ऋषि-मुनियों को सुबुद्धि और ज्ञान का उपहार देती हैं। उन्होंने अपने रूप में ऋषि-मुनियों को उद्धार किया और नरसिंह अवतार में प्रकट होकर खंभा को फाड़ा था।
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा के अवतारों की महिमा को स्तुति करता है, जैसे कि वह प्रह्लाद की रक्षा करती हैं और हिरण्याक्ष को स्वर्ग में पहुंचाती हैं। वे लक्ष्मी के रूप में जगत में प्रकट होती हैं और श्री नारायण के शरीर में समाहित होती हैं।
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
यह श्लोक माँ भवानी की महिमा को वर्णित करता है, जो क्षीरसागर में खेलती हैं और दयासिन्धु हैं। हिंगलाज में भी आप ही हैं, आपकी महिमा अतुलनीय है और जो कभी नहीं बताई जा सकती।
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैख तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुख निवारिणी ॥
यह श्लोक दुर्गा माता के विभिन्न रूपों की स्तुति करता है। मातंगी, धूमावती, भुवनेश्वरी, बगला, श्री भैख तारा – ये सभी उनके अलग-अलग नाम हैं। वे जगत के तारण हैं, जो भवरोग को नष्ट करती हैं और दुःखों को दूर करती हैं।
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजे ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा के रूप का वर्णन करता है। उनका वाहन केहरी (सिंह) है और वे भवानी के रूप में सम्मानित हैं। वे लांगुर वीरों के साथ आगे बढ़ती हैं और उनके हाथ में खप्पर (ताला), खड्ग (तलवार) होते हैं, जिन्हें देखकर काल भी डर कर भागता है।
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की शक्ति और सामर्थ्य को वर्णित करता है। उनके पास अस्त्र (शस्त्र) और त्रिशूल होते हैं, जिनसे शत्रुओं के हृदय में भयंकर शूल (कंटक) डालते हैं। वे नगरों और कोटियों में विराजमान होती हैं और उनकी शक्ति की घोषणा तीनों लोकों में होती है।
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
स्क्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की महिमा को स्तुति करता है। वे शुम्भ और निशुम्भ नामक दानवों को मारती हैं, स्क्तबीज और शंखन को नष्ट करती हैं। उन्होंने महिषासुर जैसे अत्यंत अहंकारी राक्षसों को भी मारा, जिनकी भूमि पर उसने भार बढ़ा दिया था।
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब ।।
यह श्लोक माँ काली की महिमा को स्तुति करता है। वे कालिका के रूप में भयंकर हैं और सैन्यों के साथ त्रिलोकी को संहारती हैं। जब-जब परीक्षा में संतानों को कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है, तब-तब माँ दुर्गा ही सहायता प्रदान करती हैं।
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की प्रशंसा करता है। उनकी महिमा अमरपुरी और बासव लोकों में भी अशोक स्थिति में बनी रहती है। आपकी ज्योति ज्वाला में है, और मानव-महिलाएं हमेशा आपकी पूजा करती हैं।
प्रेम भक्ति से जो यश गावै।
दुख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकी छुटि जाई॥
यह श्लोक दुर्गा माता की प्रार्थना करता है। जो व्यक्ति प्रेम और भक्ति से उनकी सेवा करता है, वह यश को प्राप्त करता है और दुःख और दारिद्र्य उसके पास नहीं आते। जो व्यक्ति आपकी ध्यान में मन लगाता है, उसको जन्म-मरण का बंधन छूट जाता है।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की महिमा को स्तुति करता है। जोगी, देवताओं और संत-महात्मा भी आपको पुकारते हैं। आपकी शक्ति के बिना योग भी संभव नहीं है। शंकर ने भी आपकी आराधना की और तपस्या की, और उन्होंने काम और क्रोध जैसी भावनाओं को जीत लिया।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।
जन्म-मरण ताकी छुटि जाई ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा के उपासकों को ध्यान में धरने की सलाह देता है। उसका कहना है कि शंकर (भगवान शिव) को नित्य ध्यान करो, क्योंकि आपका समय कभी भी काल के लिए नहीं होता। शक्ति के रूप को समझना महत्त्वपूर्ण है। जब शक्ति चली जाती है, तो मन पछताता है। जिनको जन्म-मरण की छुट्टी चाहिए, वे भगवान की शक्ति को समझने की कोशिश करें।
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की महिमा को स्तुति करता है। इसमें उनकी शक्ति का महत्त्व बताया गया है। योगी, देवताएं और मुनि भी उन्हें पुकारते हैं, क्योंकि उनके बिना कोई भी योग सम्भव नहीं होता। भगवान शंकर ने भी उनकी आराधना की और तपस्या की, और उन्होंने काम और क्रोध जैसी भावनाओं को जीत लिया।
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ।
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो।
यह श्लोक भगवान शिव के उपासकों को समझाता है कि वे निरंतर उन्हें ध्यान में रखें। क्योंकि कोई समय भी काल (मृत्यु) के बिना आपका ध्यान नहीं कर सकता है। शक्ति के रूप को समझना बहुत महत्त्वपूर्ण है। जब शक्ति चली जाती है, तब मन पछताता है।
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की स्तुति करता है। वह उन्हें शरणागत लोगों की कीर्ति कहती हैं और जगदम्बा को जय-जयकार करती हैं। वे प्रसन्न हो गईं हैं, जगदम्बा ने दया दिखाई और किसी भी शक्ति का विलम्ब नहीं किया।
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावे।
मोह मदादिक सब विनशावै॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की प्रार्थना करता है। यहां व्यक्ति अपनी दुखों को लेकर चिंतित है और माँ की शरण में आया है। उनके बिना कोई भी मेरा दुःख नहीं हर सकता। आशा, तृष्णा और मोह जैसी भावनाएं व्यक्ति को सताती हैं, और इन सब बुराइयों को दूर करने में माँ की कृपा चाहिए।
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी।।
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ॥
यह श्लोक माँ भवानी (दुर्गा) की प्रार्थना करता है। वह शत्रुओं का नाश करने वाली महारानी हैं। उन्हें याद करने से ही सब कुछ हो सकता है। प्रिय माँ, कृपा करें, दयालु माँ, सिद्धि-रिद्धि दें और हमें आनंदित करें।
जब लगि जियउं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश में सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
यह श्लोक माँ दुर्गा की महिमा और कृपा के प्रति श्रद्धालुता व्यक्त करता है। जब तक मैं जीता हूं और ध्यान में रहूं, मुझे उनकी कृपा और अनुभव करने का अवसर मिलता है। मैं हमेशा उनकी महिमा का गुणगान करता हूं। जो व्यक्ति माँ दुर्गा की चालीसा नित्य ही गाता है, उसे सब सुख और परमपद (अनंत आनंद) प्राप्त होता है। देवीदास अपने आपको माँ दुर्गा की शरण में रखता है और उनसे कृपा की प्रार्थना करता है।