Pitru Paksha Katha 2025: अद्भुत पौराणिक कथा | पांच अंश भोजन किसे और क्यों? जाने संपूर्ण जानकारी

Pitru Paksha Katha:पितृपक्ष की पौराणिक कथा

Pitru Paksha Katha: महाभारत काल में युद्ध के समय जब दानवीर कर्ण की मृत्यु हुई, तो उनके दान-पुण्य के फलस्वरूप उन्हें स्वर्गलोक भेजा गया। वहां उनका खूब स्वागत-सत्कार हुआ, लेकिन भोजन के समय उन्हें सोना-चांदी और आभूषण परोसे गए। कर्ण इस व्यवहार को समझ न सकें, और उन्होंने देवराज इंद्र से पूछा कि ‘हे स्वर्गाधिपति! यहां मुझे भोजन में सोना-चांदी और आभूषण परोसे गए हैं, लेकिन मैं इनका सेवन नहीं कर सकता। मेरे साथ इस व्यवहार का क्या कारण है?

Pitru Paksha Katha

तब देवराज इंद्र ने उन्हें बताया कि ‘हे कर्ण! आपने जीवनपर्यन्त दानधर्म का पालन किया है, और आपके जैसा दानी तीनों लोकों में कोई नहीं होगा। लेकिन आपने सिर्फ सोना-चांदी और आभूषण जैसी भौतिक वस्तुओं का ही दान किया है। कभी अपने किसी पितृदेव को भोजन का दान नहीं दिया, इसलिए आपके पितृ आपसे असंतुष्ट है, और आपको स्वर्ग में भोजन का सुख नहीं मिल पा रहा है।’

यह सुनकर कर्ण निराश हो गए, और उन्होंने इंद्रदेव को कहा कि “मैं आजीवन अपने पितरों से अनभिज्ञ रहा हूँ, इसीलिए मुड़ासे यह भूल हुई है। कृपया अब आप मुझे इसका उपाय बताइये।” तब इंद्र ने कहा कि आपको अपने पुण्यकर्मी के कारण सोलह दिनों का समय दिया जाता है। इन 16 दिनों में पृथ्वीलोक पर जाकर अपने पितरों को भोजन का दान करें। उनका पिण्डदान करें और तर्पण करके उन्हें सतुंष्ट करें। इससे आपको स्वर्ग में हर तरह की सुख-सुविधा के साथ भोजन का सुख भी मिलेगा।

कर्ण ने ऐसा ही किया, और इन 16 दिनों में पृथ्वीलोक पर विचरण कर रहे अपने पितरों को सभी तरह के भोजन का दान किया।

यह पितृ पक्ष की अवधि थी, इसलिए इन 16 दिनों में हम सभी मनुष्यों को यह सौभाग्य प्राप्त होता है, कि हम अपने मृत पूर्वजों को भोजन का दान करें और उनके पिंडदान और तर्पण की विधि को पूरा करें। इन सोलह दिनों का श्राद्ध पक्ष आपके लिए भी पुण्यकाल सिद्ध होगा।

Pitru Paksha Katha: पांच अंश भोजन का पंचतत्व से संबंध |

पितृ पक्ष के सोलह दिनों के दौरान पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में पूर्वज पितृलोक से पृथ्वी पर आते हैं, और अपने वंशजों द्वारा किए गए पिंडदान तर्पण आदि से तृप्त होकर उन्हें आशीष देते हैं। कहा जाता है कि पितृ पशु-पक्षियों के रूप में आते हैं, इसलिए पितृ पक्ष में कुछ पशु-पक्षियों को भोजन कराने का विधान है।

Pitru Paksha Katha: इस लेख में आप जानेंगे

1. क्या है पंचबलि क्रिया

2. पितृपक्ष में पंचबलि कैसे देते हैं

3. पांच अंश भोजन का पंचतत्व से संबंध

1. क्या है पंचबलि क्रिया

पितृ पक्ष में श्राद्ध के समय पशु-पक्षियों के भोजन का अंश निकाला जाता है। मान्यता है कि भोजन का अंश निकाले बिना श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है। पितरों के निमित्त निकाले जाने वाले भोजन के इस पांच अंश को ही पंचबलि कहते हैं।

2. पितृपक्ष में पंचबलि कैसे देते हैं

भोजन की पहली तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है। फिर इस भोजन को अलग-अलग पांच अंशों में बांटा जाता है। इनमें गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर भोजन निकालने का विधान है, जबकि कौवे का एक अंश भूमि पर रखा जाता है। इसके बाद श्राद्ध करने वाला व्यक्ति अपने पितरों से प्रार्थना करता है कि वे आकर भोजन ग्रहण करें, और प्रसन्न होकर सभी परिजनों को आशीष दें।

3. पांच अंश भोजन का पंचतत्व से संबंध

पितृपक्ष में पितरों के निमित्त निकाले जाने वाले इस भोजन का संबंध पंचतत्वों से माना गया है। जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि, पितृपक्ष में पितर गाय, कुत्ता, कौवा और चीटियों के माध्यम से हमारे पास आते हैं, और अपने वंशजों द्वारा दिया गया भोजन ग्रहण करते हैं।

Pitru Paksha Katha

पितरों का श्राद्ध करते समय भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं, जो गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए होते हैं। पुराणों के अनुसार कुत्ता ‘जल तत्त्व’ का प्रतीक माना जाता है, चींटी को ‘अग्नि तत्व’ का प्रतीक, कौवा को ‘वायु तत्व’, गाय को ‘पृथ्वी तत्व’, और देवताओं को ‘आकाश तत्व’ का प्रतीक माना गया है।

यही पंचतव ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के कारक माने जाते हैं। इस तरह से इन पांच जीवों के लिए निकाला गया भोजन पंचतत्वों के प्रति आभार व्यक्त करने के समान माना जाता है। आप भी अपने पितरों की तृप्ति और कृपा पाने के लिए पितृ पक्ष के दौरान इन कर्मों का पालन करें।

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