पितृ पक्ष 2025 : तिथियाँ, महत्व और पितरों से जुड़ी प्रेरक कथा

परिचय
हिंदू पंचांग में पितृ पक्ष 2025 पूर्वजों को स्मरण और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का पवित्र समय है। मान्यता है कि इस काल में पितृ पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान के द्वारा हम उन्हें तृप्त कर अपनी वंश परंपरा को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दिला सकते हैं।

पितृ पक्ष 2025

पितृ पक्ष 2025 : कब से कब तक?

प्रारंभ: 08 सितम्बर 2025, सोमवार (भाद्रपद पूर्णिमा)
समापन: 21 सितम्बर 2025, रविवार (अश्विन अमावस्या / सर्वपितृ अमावस्या)

पितृ पक्ष 2025 : प्रमुख तिथियाँ और मुहूर्त

तिथि/दिन
मुहूर्त (कुतुप – रौहिण – अपराह्न)
07 सितम्बर
पूर्णिमा श्राद्ध
11:31 – 03:41
08 सितम्बर
प्रतिपदा श्राद्ध
11:30 – 03:40
09 सितम्बर
द्वितीया श्राद्ध
11:30 – 03:39
10 सितम्बर
तृतीया-चतुर्थी श्राद्ध
11:30 – 03:38
11 सितम्बर
महा भरणी व पंचमी श्राद्ध
11:30 – 03:38
12 सितम्बर
षष्ठी श्राद्ध
11:29 – 03:37
13 सितम्बर
सप्तमी श्राद्ध
11:29 – 03:36
14 सितम्बर
अष्टमी श्राद्ध
11:29 – 03:35
15 सितम्बर
नवमी श्राद्ध
11:28 – 01:07
19 सितम्बर
मघा व त्रयोदशी श्राद्ध
11:27 – 03:31
20 सितम्बर
चतुर्दशी श्राद्ध
11:27 – 03:30
21 सितम्बर
सर्वपितृ अमावस्या
11:26 – 03:29

पितृ पक्ष का महत्व

आशीर्वाद प्राप्ति: मान्यता है कि पितृ इस अवधि में धरती पर आते हैं और श्राद्ध करने वालों को आशीर्वाद देते हैं।
पितृ दोष निवारण: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिनकी कुंडली में पितृ दोष है, उनके लिए यह समय दोष निवारण का उत्तम अवसर है।
कृतज्ञता का समय: यह अवधि हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है, हमें स्मरण कराती है कि हमारी प्रगति में पूर्वजों का योगदान अमूल्य है।
धार्मिक व आध्यात्मिक शांति: श्राद्ध और तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और घर-परिवार में सौभाग्य बढ़ता है।

पितृ पक्ष से जुड़ी प्रेरक कथा

महाभारत में वर्णन आता है कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया –
“जो मनुष्य अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता, उसके घर में लक्ष्मी का वास नहीं होता और परिवार पर विपत्तियाँ आती हैं। श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे वंशजों को दीर्घायु, संतान-सुख और समृद्धि का आशीष देते हैं।”

पितृ पक्ष 2025

एक अन्य कथा करकती नामक ब्राह्मण की मिलती है। वह अपने पूर्वजों का श्राद्ध नहीं करता था। धीरे-धीरे उसके घर में दरिद्रता, रोग और कलह बढ़ने लगे। तब किसी साधु ने उसे पितृ पक्ष में श्राद्ध करने की सलाह दी। जब उसने तर्पण और पिंडदान किया, तो उसके पितर प्रसन्न हुए और उसके जीवन की सारी बाधाएँ दूर हो गईं।

👉 इस कथा से यह संदेश मिलता है कि पितरों का स्मरण और तर्पण केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन की समृद्धि और मानसिक शांति का मार्ग है।

पितृ पक्ष 2025 की 3 सबसे महत्वपूर्ण तिथियाँ

भरणी श्राद्ध (11 सितम्बर 2025)
नवमी श्राद्ध (15 सितम्बर 2025)
सर्वपितृ अमावस्या (21 सितम्बर 2025)

इन तिथियों पर विशेष रूप से श्राद्ध और तर्पण करना अत्यधिक पुण्यदायी माना गया है।

निष्कर्ष

पितृ पक्ष 2025 हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का श्रेष्ठ अवसर है। इस दौरान श्राद्ध और तर्पण करने से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि परिवार पर उनके आशीर्वाद की वर्षा भी होती है।
धार्मिक मान्यता है कि “पितरों की तृप्ति ही देवताओं की तृप्ति है” – अतः इस पावन काल में अपने पूर्वजों का स्मरण अवश्य करें।

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पितृ पक्ष 2025

 

 

 

 

FAQ – पितृ पक्ष 2025

1. पितृ पक्ष 2025 कब से कब तक है?

उत्तर: पितृ पक्ष 2025 की शुरुआत 08 सितम्बर 2025 (सोमवार) से होगी और इसका समापन 21 सितम्बर 2025 (रविवार) को सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा।

2. पितृ पक्ष क्यों मनाया जाता है?

उत्तर: पितृ पक्ष पूर्वजों को स्मरण करने और उनका आशीर्वाद पाने का पावन समय है। मान्यता है कि इस अवधि में पितर पृथ्वी पर आते हैं और श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान के द्वारा तृप्त होकर वंशजों को सुख-समृद्धि और सुरक्षा का आशीर्वाद देते हैं।

3. पितृ पक्ष में कौन-सी 3 तिथियाँ सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं?

उत्तर:पितृ पक्ष में तीन तिथियों का विशेष महत्व है –
भरणी श्राद्ध (11 सितम्बर 2025)
नवमी श्राद्ध (15 सितम्बर 2025)
सर्वपितृ अमावस्या (21 सितम्बर 2025)

4. पितृ पक्ष में क्या करना चाहिए?

उत्तर: पितृ पक्ष में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण व गरीबों को भोजन कराना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही सत्कर्म जैसे दान, गौ सेवा और जरूरतमंदों की सहायता करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

5. पितृ पक्ष में किन कामों से बचना चाहिए?

उत्तर: पितृ पक्ष में मांस-मदिरा का सेवन, विवाह या मांगलिक कार्य, बाल कटवाना और नए कपड़े खरीदना अशुभ माना जाता है। इस समय साधारण जीवन, सत्कर्म और पूर्वजों का स्मरण करना ही श्रेष्ठ माना गया है।

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