Kalki Dwadashi 2025: कल्कि द्वादशी कब है? और जाने कल्कि द्वादशी की सम्पूर्ण जानकारी

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को कल्कि द्वादशी Kalki Dwadashi के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि की पूजा का विधान है। विष्णु पुराण के अनुसार भगवान् विष्णु के दशवें अवतार के रूप में कल्कि का जन्म होगा, जिनके द्वारा कलयुग की समाप्ति होगी। आज हम आपको कल्कि अवतार से जुड़े कुछ विशेष तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं-

Kalki Dwadashi

1. कल्कि द्वादशी Kalki Dwadashi कब है?

कल्कि द्वादशी 2025

तिथि – 04 सितंबर 2025, बृहस्पतिवार (भाद्रपद, शुक्ल द्वादशी)

द्वादशी तिथि प्रारम्भ 04 सितंबर को 04:21 ए एम

द्वादशी तिथि समाप्त 05 सितंबर को 04:08 ए एम

Kalki Dwadashi 2025: शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त – 04:08 ए एम से 04:54 ए एम

प्रातः सन्ध्या – 04:31 ए एम से 05:40 ए एम

अभिजित मुहूर्त – 11:32 ए एम से 12:22 पी एम

विजय मुहूर्त – 02:02 पी एम से 02:53 पी एम

गोधूलि मुहूर्त – 06:14 पी एम से 06:37 पी एम

सायाह्न सन्ध्या – 06:14 पी एम से 07:22 पी एम

अमृत काल- 05:10 पी एम से 06:49 पी एम

निशिता मुहूर्त – 11:34 पी एम से 12:20 ए एम, 05 सितंबर

2. कल्कि (Kalki Dwadashi ) अवतार का उद्देश्य

भगवान विष्णु का कल्कि अवतार आज भी एक रहस्य बना हुआ है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के नी अवतारों का प्राकट्य हो चुका है, अब कलियुग में वे कल्कि के रूप में अपना दसवां अवतार लेंगे। ये उनका अंतिम अवतार होगा। भगवान विष्णु के इस अवतार का उद्देश्य धर्म की पुनर्स्थापना और पापियों का सर्वनाश करना रहेगा।

पुराणों में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार बहुत ही आक्रामक बताया गया है। कहा जाता है कि भगवान कल्कि देवदत्त नामक सफेद घोड़े पर सवार होकर, हाथ में तलवार लिए पापियों का संहार करने आएंगे। मान्यता है कि कल्कि अवतार होने के बाद कलियुग का अंत होगा, और सत्य युग प्रारंभ हो जाएगा।

3. कल्कि (Kalki Dwadashi ) स्वरूप की पूजा विधि

इस दिन सबसे पहले प्रातःकाल स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।

पूजा के स्थान को साफ सुथरा कर ले।

भगवान कल्कि की प्रतिमा या मूर्ति को गंगाजल से नहला कर वस्त्र पहनाएं।

अब पूजा स्थान पर एक चौकी रखकर उस पर लाल कपड़ा फैलाकर भगवान कल्कि को स्थापित करें।

उन्हें धूप, दीप, अक्षत नैवेद्य और पुष्प आदि अर्पित करें।

अंत में सभी भक्तजनों को प्रसाद वितरित करें।

तो यह थी कल्कि जयंती से संबंधित संपूर्ण जानकारी, आशा करते है कि हम सब भगवान विष्णु की कृपा बनी रहे और हम लोग सदैव नैतिकता के मार्ग पर चलते रहें।

4. अवतरण से पहले ही क्यों होती है पूजा

अभी भगवान विष्णु के दसवें अवतार का प्राकट्य नहीं हुआ है, लेकिन भगवान का ये एकमात्र ऐसा अवतार है, जिसकी पूजा अर्चना उनके जन्म से पहले से ही की जा रही है। पुराणों में विष्णु जी के दसवें अवतार के रूप में कल्कि के जन्म की पुष्टि की गई है। यही कारण है कि जन्म से पहले ही भगवान कल्कि की उपासना की जाती है। आपको बता दें कि कल्कि अवतार से पहले ही हमारे देश में भगवान कल्कि के कई मंदिर स्थित हैं, जहाँ बड़ी संख्या में भक्त पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं।

5. कहां हो सकता है कल्कि (Kalki Dwadashi ) का जन्म

भगवान कल्कि के जन्मस्थान की बात करें, तो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् विष्णु के कल्कि अवतार का जन्म उत्तरप्रदेश के संभल गांव में होगा। कहा जा रहा है कि भगवान का ये अवतार एक विष्णु भक्त दंपत्ति के घर होगा। भगवान् विष्णु के राम अवतार की तरह ही कल्कि भी चार भाई होंगें, वे सब मिलकर पापियों का नाश करेंगे, और पुनः धर्म की स्थापना करेंगे।

ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए ‘धार्मिक सुविचार’ के साथ

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